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Turban Tradition In India: राजस्थान की इस परंपरा से बढ़ता है लोगों का रुतबा, जानिए साफा बांधने की दिलचस्प कहानी?

by Live Times
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Turban Tradition In India: राजस्थान में पारंपरिक तरीके से साफा या पगड़ी बांधना सीखने के लिए 01 जुलाई को महिलाएं और पुरुष जोधपुर के भूतनाथ महादेव मंदिर के लॉन में जमा हुए और सबने पारंपरिक तरीके से साफा बांधना सीखा.

3 July, 2024

Turban Tradition In India : भारत में अलग-अलग संस्कृति के लोग रहते हैं. सभी लोग अपने तौर-तरीकों से जीते हैं और अपने रीति-रिवाजों को फॉलो करते है. ऐसे में राजस्थान का भी एक अलग ही ट्रेडिशन है जिसे वहां के लोग खूब प्यार से फॉलो करते हैं और वो है पगड़ी पहनने का रिवाज. अब अपनी इसी संस्कृति को बनाए रखने के लिए राजस्थान के जोधपुर के लोगों ने अनोखा कदम उठाया है. दरअसल, जोधपुर के भूतनाथ मंदिर में महिलाओं और पुरुषों को पारंपरिक तरीके से साफा बांधना सिखाया गया. पहले सभी लोग मंदिर के लॉन में एकत्रित हुए, फिर बारी-बारी साफा बांधा.

क्या होती है साफा (Turban ) बांधने की रस्म ?

साफा और पगड़ी रस्म एक सामाजिक समारोह है, जो भारत के उत्तरी भाग के हिंदुओं में ज्यादा प्रचलित है. वैसे मुस्लिम समाज में भी साफा बांधा जाता है. हालांकि, मुस्लिम समाज में ऐसा सिर्फ तभी होता है, जब कोई शख्स दूल्हा बनता है. हालांकि, राजस्थान में हिन्दू समाज के लोग यह समारोह सबसे बड़े पुरुष सदस्य की मृत्यु पर आयोजित करते हैं. इसमें परिवार का सबसे बड़ा जीवित पुरुष विस्तारित परिवार या कबीले की उपस्थिति में सिर पर पगड़ी या साफा बांधता है.

पगड़ी से बढ़ता है रुतबा (Status)

साफा प्रेमियों का कहना है कि पगड़ी राजस्थान के लोगों की पहचान का प्रतीक है. पगड़ी न केवल राज्य और देश में, बल्कि विदेश में भी मशहूर हो रही है. राजस्थान में यह चलन राजे-रजवाड़ों के समय से चलता आ रहा है. लोगों का कहना है कि पगड़ी और साफे से रुतबा कायम रहता है. वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि वक्त के साथ साफा पहनने की परंपरा में भी कई बदलाव हुए हैं, जैसे साफा आमतौर पर शादियों, त्योहारों और सांस्कृतिक या धार्मिक कार्यक्रमों के दौरान पहना जाता था. लेकिन राजस्थान में लोग इसे मृत्यु में भी शामिल करने लगे हैं. यहां के लोगों का मानना है कि साफों का सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक महत्व होता है.

अलग-अलग धर्मों में साफा बांधने (Turban Tradition ) का प्रचलन

आम दिनों में राजपूत समाज के बुजुर्ग लोग खाकी रंग का गोल साफा सिर पर बांधते थे. वहीं, विभिन्न समारोहों में पचरंगा, चुंदड़ी, लहरिया आदि रंग-बिरंगे साफों का उपयोग होता था. सफेद रंग का साफा शोक का प्रतीक माना जाता है. इसलिए राजपूत समाज में सिर्फ शोकग्रस्त व्यक्ति ही सफेद साफा पहनता है. मुगलों ने भी अफगानी, पठानी और पंजाबी साफा अपनाया था.

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