Charar-e-sharief Dargah : जम्मू कश्मीर के श्रीनगर में शनिवार को हजारों लोगों ने चदूरा से बड़गाम स्थित चरार-ए-शरीफ दरगाह तक मार्च किया. यहां के लोगों के लिए यह माफी मांगने वाली सदियों पुरानी एक परंपरा है.
29 July, 2024
Charar-e-sharief Dargah : जम्मू कश्मीर में कई दरगाहें ऐसी हैं, जो अमन-ओ-चैन का प्रतीक हैं. ऐसी ही एक दरगाह है चरार-ए-शरीफ दरगाह, जहां लोग मीलों दूर से अपनी सुख-शांति के लिए आते हैं. चरार-ए-शरीफ दरगाह को लेकर लोगों की आस्था ऐसी है, जैसे एक मां का बच्चों के लिए प्यार. जम्मू-कश्मीर के बड़गाम में स्थित यह चरार-ए-शरीफ दरगाह में हर साल जुलूस निकाला जाता है. इसमें बड़ी तादात में लोग हाजरी लगाने आते हैं.
मुसलमानों का 600 साल पुराना तीर्थस्थल
जुलूस में आने वाले लोगों ने बताया कि कश्मीर घाटी में फिलहाल तेज गर्मी पड़ रही है. लिहाजा उन्होंने इस दरगाह में बारिश के लिए प्रार्थना की है. जुलूस में पुलवामा और बडगाम जैसे पड़ोसी जिलों के लोग भी शामिल हुए. लोग बताते हैं कि जुलूस में लोक संगीत और लोक नाटकों का भी प्रदर्शन होता है. चरार-ए-शरीफ को भारत में मुसलमानों के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है. यह तीर्थस्थल लगभग 600 साल पुराना है.
चरार-ए-शरीफ ( Charar-e-sharief Dargah Detail In Hindi) की मान्यता?
इस दरगाह को लेकर लोगों का मानना है कि चरार-ए-शरीफ में हर साल होने वाले जुलूस से लोगों के बीच लंबे समय से चले आ रहे मनमुटाव खत्म हो जाते हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक यह दरगाह जम्मू और कश्मीर की घाटी में स्थित है. मुस्लिम समाज के लोगों के बीच इस दरगाह की मान्यता काफी बड़ी मानी जाती है. हजरत शेख नूर-उद-दीन वली के नाम से मशहूर यह पवित्र मुस्लिम स्थल सूफी संत शेख नूर-उद-दीन नूरानी को समर्पित है. वह कश्मीर में मुसलमानों के बड़े संत थे. अपने जीवनकाल के दौरान शेख ने अपने चारों ओर हिंदू और इस्लाम समुदाय देखे. ऐसा भी कहा जाता है कि ऐतिहासिक घटनाओं से प्रेरणा लेकर उन्होंने कई तरह की रचनाएं कीं. इससे आम लोगों में उनकी लोकप्रितया बढ़ने लगी. हजरत शेख नूर-उद-दीन वली ज्यातार एकता बनाए रखने के लिए रचनाएं किया करते थे.
यह भी पढ़ें: Chamliyal Mela 2024: भारत और पाकिस्तान की समान आस्था का प्रतीक है ‘चमलियाल मेला’, जानिए पूरा इतिहास