SC ST Creamy Layer: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से सियासत शुरू हो चुकी है. हालांकि, इस मामले पर केंद्र सरकार ने अपना रूख साफ नहीं किया है और कांग्रेस भी चुप है.
07 August, 2024
धर्मेन्द्र कुमार सिंह, नई दिल्ली: देश में जब-जब बड़े फैसले लिये जाते हैं. तब-तब राजनीतिक भूचाल आता है. दलित और आदिवासी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ऐसा ही लग रहा है. आरक्षण में क्रीमीलेयर (Creamy Layer) को लेकर देश में चर्चा जोरों पर है. हालांकि, देश में जाति जनगणना और जिसकी जितनी आबादी उतना हक की बात हो रही है लेकिन, दलित और आदिवासी समुदाय लोगों को आरक्षण का लाभ पूर्ण रूप से अभी तक नहीं मिल पाया है. हालांकि, यह आरक्षण लंबे वक्त से लागू है. देश की न्याय प्रणाली व्यवस्था इतनी धीमी है कि न्याय देने में सालों लग जाते हैं. वहीं राजनीतिक व्यवस्था ऐसी है जो वोट के लिए चाहकर भी आरक्षण व्यवस्था में छेड़छाड़ नहीं करना चाहती है. देर से सही सुप्रीम कोर्ट ने दलित और आदिवासी के आरक्षण में कोटा देने का निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अब राज्यों के भीतर नौकरियों में आरक्षण देने के लिए कोटा में कोटा (SC ST Creamy Layer) दिया जा सकता है. कोर्ट ने साफ कहा कि ST-ST आरक्षण के तहत कुछ ही ऐसी जातियां हैं जो इसका लाभ उठा पा रही हैं. ऐसे में अन्य जातियों को भी इसका फायदा मिलना चाहिए. इस कारण इसमें उप वर्गीकरण किया जा सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा है कि क्रीमीलेयर की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें आरक्षण से बाहर लाने की नीति बनाई जानी चाहिए. यह क्रीमीलेयर पिछड़ी जातियों के आरक्षण में पहले से लागू है. बता दें कि, जातियों का वर्गीकरण कई राज्यो में नहीं है. जबकि OBC आरक्षण के वर्गीकरण को लेकर गठित रोहिणी कमीशन ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को सौंप दी है. आयोग ने OBC आरक्षण को तीन से चार हिस्सों में बांटने के सुझाव दिए हैं. इसमें पिछड़ा, अति पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा के तौर पर बांटा जा सकता है.
75 साल बाद न्याय मिला
जाहिर है कि देश में दलित समुदाय के लोगों के लिए 15 फीसदी और आदिवासी के लिए 7.5 फीसदी आरक्षण लागू है. कोर्ट ने कोटे के अंदर कोटे की अनुमति राज्य सरकारों को दे दी है लेकिन कोर्ट ने साफ कर दिया है कि राज्य अपनी मर्जी और राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए फैसले नहीं ले सकते हैं. अगर ऐसा होता है कोर्ट उनके फैसले की समीक्षा कर सकता है. कोर्ट के फैसले के बाद देश में राजनीतिक हड़कंप मच गया है. कोर्ट के फैसले के बाद विरोध के स्वर भी आ रहे हैं. दरअसल, जो इसका लगातार फायदा ले रहे थे, अब उनके आरक्षण पर कैंची चल सकती है. कोटा में कोटे का काम सबसे पहले पंजाब में शुरू हुआ था. पंजाब में दलित के आरक्षण में कोटे का वर्गीकरण किया गया था. इसके बाद हरियाणा और आंध्र प्रदेश में भी दलितों के आरक्षण में वर्गीकरण किया गया है.
कोर्ट के फैसले के बाद राजनीति शुरू
आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित अब एकजुट हो रहे हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर ‘#21_अगस्तभारतबंद’ ट्रेंड कर रहा है. दलित संगठनों और दलित नेताओं का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला भेदभावपूर्ण है. BSP सुप्रीमो मायावती भी इस फैसले के खिलाफ खुलकर सामने आ गई हैं. मायावती ने इस फैसले पर असहमति जताई है. उन्होंने कहा हमारी पार्टी हालिया फैसले से पूरी तरह असहमत है. यह पूरी तरह से असंवैधानिक है. मायावती ने केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए उचित संशोधन करना चाहिए. इसी के साथ केंद्र सरकार में मंत्री चिराग पासवान ने भी अपनी आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया है. चिराग ने कहा है कि उनकी पार्टी दलित और आदिवासी आरक्षण में वर्गीकरण के सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपील करेगी. हमारी पार्टी सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध करेगी कि वह इस फैसले की समीक्षा करे. उन्होंने कहा है कि हम अदालत में समीक्षा याचिका दायर करेंगे.
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मोदी सरकार में दूसरे मंत्री रामदास अठावले ने भी विरोध किया है. उन्होंने कहा कि SC-ST आरक्षण जाति पर आधारित है. SC-ST के लिए आरक्षण में क्रीमीलेयर के मानदंड लागू करने के किसी भी कदम का हमारी पार्टी कड़ा विरोध करेगी. वहीं दूसरी ओर NDA के ही घटक दल ‘हम’ पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने चिराग पासवान पर ही निशाना साधा है. उन्होंने कहा है कि कोर्ट के फैसले पर सवाल स्वार्थ के लिए उठाया जा रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि 76 सालों से सिर्फ चार जातियां ही आरक्षण का लाभ उठाती रही हैं. अब इन बयानों से समझा जा सकता है NDA में ही दरार है. यह साफ दिख रहा है कि जिसे आरक्षण का लाभ मिल रहा है, वह विरोध कर रहे हैं. वहीं, जो वंचित हैं, वह समर्थन में आवाज उठा रहें हैं. यूपी के नगीना से सांसद चंद्रशेखर ने उन्होंने कहा कि जिन जजों ने यह ऑर्डर दिया, उसमें SC-ST समुदाय के कितने लोग हैं. यह बहुत जरूरी है कि अगर आप वर्गीकरण करना ही चाह रहे हैं तो सुप्रीम कोर्ट से इसकी शुरुआत हो. हालांकि, इस मामले पर केंद्र सरकार ने अपना रूख साफ नहीं किया है और कांग्रेस भी चुप है.
कौन निगल रहा है गरीबों का हक?
दलित और आदिवासियों के आरक्षण में किस जाति को कितनी नौकरी मिली, इससे जुड़ा कोई आंकड़ा अधिकारिक रूप से जारी नहीं किया गया है. हालांकि कुछ अध्ययनों में दावा किया गया है कि दलित और आदिवासी में खास जातियों का ज्यादा लाभ हुआ है. दावा इस बात का भी है कि जिस परिवार को इसका लाभ मिला है उनको लगातार लाभ मिला है. वहीं दलित और आदिवासी में गरीब और कमजोर लोगों को कम फायदा मिल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इसी बिंदु को ध्यान में रखकर फैसला लिया है. उत्तर प्रदेश में दावा किया जाता है कि आरक्षण का सबसे ज्यादा जाटव जाति को मिलता है. यही वजह है मायावती नाराजगी जाहिर कर रही हैं. गौरतलब है कि मायावती खुद जाटव जाति से आती हैं. ऐसे में जाटव जाति का सबसे ज्यादा वोट उन्हें ही मिलता है. बिहार में पासवान जाति को इसका ज्यादा फायदा मिलता है. तभी जीतन मांझी सवाल उठा रहें हैं. बता दें कि, बिहार में साल 2007 में नीतीश कुमार की सरकार ने दलितों में भी सबसे ज्यादा पिछड़ी जातियों के लिए महादलित कैटेगरी बनाई थी. इनके लिए सरकारी योजनाएं लाई गई लेकिन नौकरी में इस तरह का प्रावधान नहीं किया गया. वहीं महाराष्ट्र दलित में महार और चर्मकार प्रमुख जातियां हैं. लेकिन दावा किया जाता है कि आरक्षण का ज्यादा फायदा महार समुदाय के लोग उठाते हैं. अन्य राज्यों में कमोबेश यही हाल है. ऐसे में अब यह देखना अहम होगा कि केंद्र सरकार इस पर क्या फैसला लेती है.
धर्मेन्द्र कुमार सिंह (इनपुट एडिटर, लाइव टाइम्स)
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