Temple in Delhi: ये मंदिर दिल्ली की राजधानी नई दिल्ली में स्थित है. इस मंदिर की खास बात ये है कि इसका उद्घाटन महात्मा गांघी द्वारा किया गया था. आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कुछ विशेष बातें.
19 April, 2024
Delhi Birla Temple: दिल्ली के बिड़ला मंदिर का नाम देश के मुख्य आकर्षण केंद्रों में आता है. इस मंदिर के दर्शन करने के लिए देशी-विदेशी से लोग भारी संख्या में आते हैं. ये मंदिर दिल्ली की राजधानी नई दिल्ली में स्थित है. इस मंदिर की खास बात ये है कि इसका उद्घाटन महात्मा गांघी द्वारा किया गया था. चलिए आज हम आपको बताएंगे दिल्ली के बिड़ला मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें.
मंदिर का निर्माण
बिड़ला मंदिर का निर्माण भारत के पुराने बिजनेसमैन बिड़ला परिवार द्वारा सन 1939 में कराया गया था. ये मंदिर सेंट्रल दिल्ली के फेमस कनॉट फ्लेस में गोल मार्केट के पास स्थित है. इस मंदिर की कास बात ये है कि उसका उद्घाटन महात्मा गांधी द्वारा किया गया था. बापू सभी धर्मों का समान आदर करते थे इसी के चलते उनसे इस मंदिर का उद्घाटन कराया गया. लेकिन मंदिर का उद्घाटन करने के लिए बापू ने एक शर्त रखी थी.
बापू की शर्त
महात्मा गांधी द्वारा ये शर्त रखी गई थी की इस मंदिर में हर धर्म और जाति के लोग प्रवेश कर सकेंगे. इस मंदिर की वास्तुकला नागारा शेली के अनुसार बनाई गई थी. दिल्ली का बिड़ला मंदिर एक तीन मंजिला है.
मूर्ति
बिड़ला मंदिर श्री हरि विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित है जो दिल्ली के सबसे खूबसूरत मंदिरों में से एक है. इसके अलावा इस मंदिर के चारों तरफ, भगवान गणेश, श्रीकृष्ण, भलेनाथ, बुद्ध और हनुमानजी को समर्पित छोटे-छोटे मंदिर भी मौजूद हैं. साथ ही यहां मां शक्ति दुर्गा को समर्पित एक मंदिर स्थित है. इस मंदिर को लक्ष्मी नारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.
आकर्षण का केंद्र
बिड़ला मंदिर दिल्ली के आकर्षक स्थलों में से एक है. यहां पर जन्माष्टमी और दिवाली जैसे कई बड़े त्योहारों में भारी संख्या में लोग दर्शन के लिए आते हैं. यहां की खूबसूरत मूर्तियां आकर्षण का केंद्र हैं.
कारीगरी
इस मंदिर को बनवाने का कार्य आचार्य विश्वनाथ शास्त्री की अध्यक्षता में संपन्न हुआ था. मंदिर की मूर्तियों की नक्काशी बनारस के लगभग 100 कुशल कारीगरों द्वारा की गई थी. मूर्तियों में इस्तेमाल होने वाले संगमरमर को जयपुर से लाया गया था. इसके अलावा मंदिर को बनवाने में आगरा, कोटा, जैसलमेर और मकराना के पत्थरों का उपयोग हुआ था.
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