कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में 8 जून को सोनिया गांधी को दल का नेता चुना गया. इस दौरान पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की ओर से रखे गए प्रस्ताव पर सबने मुहर लगाई. कांग्रेस ने एक बार फिर सोनिया गांधी को बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी. यानी सोनिया गांधी मोदी 3.0 सरकार में एक बार फिर से संकटमोचक की भूमिका में.
09 June, 2024
सोनिया गांधी को 8 जून को सर्वसम्मति से कांग्रेस संसदीय दल (CPP) का अध्यक्ष चुन लिया गया. साथ ही मल्लिकार्जुन खड़गे ने संसदीय दल के अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसे बैठक में पास कर दिया गया. इस ऐतिहासिक पल के दौरान पार्टी के कई नेता भावुक भी दिखाई दिए और सभी ने खुशी से उन्हें एक बार फिर CPP का अध्यक्ष चुन लिया. ये पहली बार नहीं है जब सोनिया गांधी को ये पद मिला हो, इससे पहले भी वह कई बड़े पद संभाल चुकी हैं.
ऐसे रखा था राजनीति में कदम
साल 1991 में पति राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने की घोषणा कर दी. इस फैसले से सोनिया अवाक थीं. उन्होंने फैसला स्वीकार नहीं किया. तब उन्होंने राजनीति प्रति अपनी झिझक और अविश्वास को इन शब्दों में व्यक्त किया था. सोनिया ने कहा था, ‘मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूँगी, परंतु मैं राजनीति में कदम नहीं रखूंगी.’ और वाकई लंबे समय तक वो राजनीति में नहीं आई. इधर कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार गिर रहा था. प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव के शासन काल में कांग्रेस ने 5 साल का कार्यकाल तो पूरा किया, लेकिन 1996 का आम चुनाव हार गईं. इसकी वजह से कांग्रेस नेताओं को फिर से नेहरू-गांधी परिवार के एक सदस्य की जरूरत महसूस हुई. सोनिया गांधी अब भी माने को तैयार नहीं थी. कांग्रेस के सीनियर नेताओं के भारी दवाब के बीच उन्होंने 1998 में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ली और 1998 में कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं. लेकिन राजनीति में कदम रखते ही सोनिया के विदेशी मूल की होने की वजह से विरोध शुरू हो गया. विपक्ष, खासतौर पर BJP ने उनकी कमजोर हिन्दी को मुद्दा बनाया. उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगा. लेकिन कांग्रेस ने उनका साथ नहीं छोड़ा, बल्कि बीजेपी के विरोध का मजबूती से सामना किया.
वामपंथी दलों ने किया था सोनिया का समर्थन
अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान मंत्री बनेंगे पर सोनिया गांधी ने देश भर में घूमकर खूब प्रचार किया. वो साल था 2002. तब सबको लगता था, अटल बिहारी वाजपेयी वापस सत्ता में लौटेंगे, लेकिन कांग्रेस ने UPA नाम से जो गठबंधन बनाया था, उसने उस चुनाव में चौंका देने वाले नतीजे दिए. United Progressive Alliance को 200 से ज्यादा सीटें मिलीं. उस चुनाव में सोनिया गांधी खुद रायबरेली, उत्तर प्रदेश से सांसद चुनी गईं.
जब सोनिया गांधी ने ठुकराया प्रधानमंत्री का पद
2004 के चुनावी नतीजों के बाद जब ये तय हो गया कि सरकार UPA की बनेगी, तब सारे लोग ये मानकर चल रहे थे, कि प्रधानमंत्री सोनिया गांधी ही बनेंगी. इसको लेकर कांग्रेस वर्किंग कमेटी से लेकर तमाम सांसदों की भी यही राय थी. लेकिन सोनिया के प्रधानमंत्री बनने के सवाल पर उनके दोनों बच्चों- राहुल और प्रियंका गांधी सहमत नहीं थे. दोनों को लगता था कि अगर मां सोनियां पीएम बनीं, तो उन्हें भी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी की तरह निशाना बनाया जाएगा.
इधर, सोनिया के शपथ के लिए राष्ट्रपति भवन में तैयारियां शुरू हो चुकी थीं. लेकिन खुद सोनिया क्या चाहती थी, ये अब भी क्लीयर नहीं था. जिस दिन प्रधानमंत्री पद का शपथ होना था, उस दिन सोनिया गांधी अपने दोनों बच्चों को लेकर राजीव गांधी की समाधि पर पहुंची. तीनों ने थोड़ी देर तक प्रार्थना की. वो तारीख थी 18 मई 2004. उसी शाम 7 बजे संसद के सेंट्रल हॉल में कांग्रेस सांसदों की बैठक हुई.
उस बैठक में सोनिया गांधी ने अपना आखिरी फैसला सुनाया. सेंट्रल हॉल में बैठे अपने दोनों बच्चों राहुल और प्रियंका की तरफ देखकर जो बोला वो इतिहास के पन्नों में दर्ज है. सोनिया ने कहा, – ‘मेरा मकसद कभी प्रधानमंत्री बनना नहीं रहा. मैंने अपने लिये हमेशा के लिए ये तय कर लिया था कि अगर कभी ऐसे हालात हुए, तो मैं अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनूंगी. आज वो आवाज ये मुझसे कह रही है कि मैं ये पद स्वीकार न करूं.’
पीएम न बनने पर सोनिया का विरोध
सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री का पद ठुकराने का फैसला कर तो लिया, लेकिन कांग्रेस के अंदर ही बड़े पैमाने पर विरोध शुरू हो गया. सोनिया गांधी के आवास के सामने एक युवा तो अपनी कनपटी पर पिस्तौल लगा करके खड़ा हो गया. वो लगातार धमकी दे रहा था, कि अगर सोनिया गांधी ने अपना फैसला नहीं बदला, तो वो खुद को गोली मार देगा. लेकिन सोनिया अपने फैसले पर अडिग थी. हालांकि लंबे दौर के मान मुनौव्वल के बाद कांग्रेस नेताओं ने मान लिया, कि सोनिया गांधी अपना फैसला नहीं बदलेंगी, तब अगले विकल्प पर विचार हुआ. प्रधानमंत्री पद के लिए वो विकल्प थे मनमोहन सिंह, जिन्हें खुद सोनिया गांधी ने चुना था.