Home Politics Mathura Lok Sabha Election 2024 : यूपी में 10,000 से अधिक महिलाएं क्यों नहीं करेंगी मतदान? सामने आई चौंकाने वाली वजह

Mathura Lok Sabha Election 2024 : यूपी में 10,000 से अधिक महिलाएं क्यों नहीं करेंगी मतदान? सामने आई चौंकाने वाली वजह

by Live Times
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Mathura Lok Sabha Election 2024

Mathura Lok Sabha Election 2024 : लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabah Elections 2024) के अंतर्गत भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दल अपना दम-खम दिखा रहे हैं. चुनावी मौसम में हर नेता जनता को लुभाने की कोशिश में जुटा है.

07 April, 2024

Mathura Lok Sabha Election 2024 : लोकसभा चुनाव 2024 के लिए प्रत्येक राजनीतिक दल वोटर्स को साधने में लगे हैं. चुनाव प्रचार के दौरान हर नेता और हर पार्टी डोर-टू-डोर कैंपेन के साथ जनता को लुभाने का काम बखूबी कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश की मथुरा लोकसभा सीट पर दूसरे चरण में 26 अप्रैल को वोटिंग होनी है. इसके साथ ही वृंदावन, गोवर्धन और राधा कुंड में 10 से 12 हजार विधवाएं रहती हैं. जो इस चुनावी माहौल से कोसों दूर हैं. वृंदावन की इन विधवाओं को पहले परिवार ने छोड़ा, और अब नेता भी सुध नहीं ले रहें हैं.

मथुरा सीट पर वोटिंग नहीं करेंगी विधवाएं

दरअसल, उत्तर प्रदेश के मथुरा लोकसभा सीट की विधवाओं के वोट न डालने के पीछे यह भी कारण है कि इनकी कोई आइडेंटिटी नहीं है. पहले इन्हें परिवार ने छोड़ दिया और इनमें से ज्यादातर रजिस्टर्ड वोटर भी नहीं हैं. घर-बार छोड़ने के साथ उन्होंने अपनी पहचान भी छोड़ दी है. राजनीतिक रूप से नजरंदाज किए जाने से ज्यादातर विधवाएं बेपरवाह हैं. उनका मानना ​​है कि सत्ता में कोई भी आए, उनकी हालत में सुधार नहीं होगा. कुछ महिलाओं को लोकतंत्र के सबसे बड़े त्योहार का हिस्सा न होने का मलाल भी है. हकीकत ये है कि 140 करोड़ आबादी वाले देश में करीब 97 करोड़ वोटर हैं. विधवाओं का यह भी मानना है कि इनमें से कुछ की किस्मत शायद कभी नहीं बदलेगी. लिहाजा, इस बार केंद्र में सरकार चाहे जिसकी बने, लेकिन महिलाओं की जिंदगी में शायद ही कोई बदलाव आए.

वृंदावन में कैसे गुजारा कर रही हैं विधवा महिलाएं?

ज्यादातर महिलाएं या तो भीख मांगती हैं या मंदिर के बाहर ‘भंडारे’ का इंतजार करती हैं या फिर महज 20 रुपये के लिए घंटों भजन गाती हैं. वह मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और झारखंड से आई हैं. उन्हें घर वालों ने छोड़ दिया. वृंदावन में उन्हें जिंदा रहने के लिए भारी संघर्ष करना पड़ता है. विधवाएं संगठन के रूप में लामबंद नहीं हैं. लिहाजा ये राजनीतिक दलों का वोट बैंक भी नहीं हैं. उम्र के आखिरी पड़ाव पर उनमें वोटर आईडी कार्ड बनवाने की भी ताकत नहीं बची है. कह सकते हैं कि उन्हें बची हुई जिंदगी बिना किसी पहचान के बितानी पड़ रही है.

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