Lok Sabha Speaker : लोकसभा में स्पीकर का पद काफी अहम होता है या यूं कहे कि एक तरह से सदन का मुखिया स्पीकर ही माना जाता है. स्पीकर के पास कुछ ऐसे अधिकार भी होते हैं, जिनमें सुप्रीम कोर्ट भी दखल नहीं देता है.
07 June, 2024
Lok Sabha Speaker : नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में लगातार तीसरी बार सरकार बनने जा रही है. नरेन्द्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री सरकार की अगुवाई करेंगे. इसके साथ ही नई सरकार बनने के साथ ही स्पीकर पद को लेकर NDA में जोर-शोर से चर्चा है. BJP, जनता दल यूनाइटेड और तेलुगु देशम पार्टी (TDP) तीनों घटक दल की महत्वपूर्ण पार्टियां इस पद को अपने पास रखना चाहती है. वहीं, BJP किसी भी कीमत पर इस पद को अपने पास ही रखना चाहेगी. आईए आपको बताते हैं कि आखिर स्पीकर पद इतना महत्वपूर्ण क्यों होता है? राजनीतिक पार्टियां इस पद को अपने पास क्यों रखना चाहती हैं? और स्पीकर का संवैधानिक अधिकार क्या है?
संवैधानिक अधिकार
आपको बता दें कि लोकसभा में स्पीकर का पद काफी अहम होता है या यूं कहे कि एक तरह से सदन का मुखिया स्पीकर ही माना जाता है. आइए आपको बताते हैं कि स्पीकर का संवैधानिक अधिकार क्या-क्या होता है? य़हां पर बता दें कि स्पीकर के पास कुछ ऐसे अधिकार भी होते हैं, जिनमें सुप्रीम कोर्ट भी दखल नहीं देता है.
स्पीकर के पास शक्तियां
- स्पीकर का मुख्य काम होता है सदन में अनुशासन को बनाकर रखना. यही नहीं जो लोकसभा सदस्य मर्यादा का उल्लंघन करते हैं उनको दंड देने का काम भी स्पीकर ही करता है.
- दलबदल कानून के तहत स्पीकर के पास पावर है कि वो अपने विवेक के हिसाब से दल बदलने वाले सांसद को अयोग्य घोषित कर सकता है।
- स्पीकर का काम उस समय ज्यादा अहम हो जाता है जब सदन में बहुमत परीक्षण का समय होता है.
- स्पीकर अनुच्छेद 108 के तहत संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक भी कर सकता है. इतना ही नहीं स्पीकर ही लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता देने का फैसला भी करता है.
- स्पीकर ही सदन के सभी संसदीय समिति के अध्यक्षों की नियुक्ति करता है और उनके कार्यों पर निगरानी रखता है.
- दोनों पक्षों का वोटिंग करने के बाद से अगर मतदान बराबर हो तो स्पीकर को अधिकार होता है कि वह खुद मताधिकार का प्रयोग करके किसी भी पार्टी को विजयी बना सकता है.
अटल सरकार में दिखी थी स्पीकर की ताकत
स्पीकर को अधिकार है कि दो पक्षों का वोटिंग के बाद अगर मतदान बराबर हो तो खुद मताधिकार का प्रयोग करके किसी भी पार्टी को विजयी बना सकता है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण अटल बिहारी वाजपेई की सरकार का है. 1999 में अटल बिहारी की सरकार एक वोट से गिर गई. उस वक्त लोकसभा स्पीकर थे तेलुगु देशम पार्टी यानी टीडीपी के जीएमसी बाल योगी. जिन्होंने गिरधर गमांग को वोट डालने का अधिकार दिया था.
1985 में राजीव गांधी ने दल-बदल कानून ला कर दी थीं स्पीकर को काफी शक्तियां
1985 में राजीव गांधी की सरकार दल बदल कानून लाई थी, जिसने स्पीकर को काफी शक्तियां प्रदान की थीं. इसी वजह से सारी राजनीतिक पार्टियों इस पद को अपने पास रखना चाहते हैं. अब देखना यह है कि BJP यह पद अपने पास रखने में सफल होगी या टीडीपी और JDU अपने हिस्से में ले जाएंगे.
इनपुट – प्रशांत त्रिपाठी
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