Introduction
Death In 2024: वर्ष 2024 कई उपलब्धियों के लिए तो याद किया ही जाएगा पर उसके साथ ही उन दिग्गजों के लिए भी जाना जाएगा जिनका साथ बस इसी साल तक का था. यह साल आने वाले समय में इतिहास में याद किया जाएगा. जाकिर हुसैन, श्याम बेनेगल से लेकर मनमोहन सिंह तक, देश ने इस साल अपने सीने पर कई घावों को झेला है. अब वो महज एक तारीख में ही याद रह गए हैं. राजनीति से लेकर संगीत, सिनेमा, साहित्य समेत कई और क्षेत्रों ने अपने दिग्गजों को अंतिम विदाई दी. आइए जानते हैं किन-किन महान शख्सियत ने 2024 में दुनिया को अलविदा कहा.
Table Of Content
- जाकिर हुसैन ( 9 मार्च 1951- 16 दिसंबर 2024)
- रतन टाटा ( 28 दिसंबर 1937- 9 अक्टूबर 2024)
- शारदा सिन्हा ( 1अक्टूबर 1952- 5 नवंबर 2024)
- पंकज उधास (17 मई 1951- 26 फरवरी 2024)
- मनमोहन सिंह (26 सितंबर 1932 – 26 दिसंबर 2024)
जाकिर हुसैन ( 9 मार्च 1951- 16 दिसंबर 2024)
दिग्गज तबला वादक जाकिर हुसैन अल्लारक्खा कुरैशी दुनिया में नहीं हैं. 6 दशक से बज रही ताल अब वीरान हो गई है. जाकिर हुसैन का सैन फ्रांसिस्को (अमेरिका) के एक अस्पताल में निधन हो गया. उन्होंने 73 वर्ष की उम्र में आखिरी सांस ली. उनके परिवार की मानें तो उनकी मृत्यु की वजह इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस थी. 16 दिसंबर, 2024 को दुनिया को अलविदा कह दिया. जाकिर हुसैन ने कथक नृत्यांगना और शिक्षिका एंटोनिया मिनेकोला से शादी रचाई थी. उनकी दो बेटियां अनीसा कुरैशी और इसाबेला कुरैशी हैं. जाकिर हुसैन को अपने करियर में 4 ग्रैमी अवॉर्ड मिले, जिनमें से तीन इस साल की शुरुआत में 66वें ग्रैमी पुरस्कार में शामिल हैं.
कहां से प्राप्त की शिक्षा?
जाकिर हुसैन अल्लारखा कुरेशी का जन्म 9 मार्च, 1951 को मुंबई (महाराष्ट्र) में तबला मास्टर अल्ला रक्खा कुरेशी के यहां हुआ था. जाकिर हुसैन ने 7 साल की उम्र से ही संगीत कार्यक्रमों में प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था. 12 साल की उम्र से ही दौरा करना शुरू कर दिया था. उन्होंने माहिम (महाराष्ट्र) में सेंट माइकल हाई स्कूल में पढ़ाई की और सेंट जेवियर्स कॉलेज (मुंबई) से स्नातक किया .
पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और ग्रैमी अवॉर्ड
उस्ताद जाकिर हुसैन एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने भारतीय ताल वाद्य तबले से पूरी दुनिया को अपना दीवाना बनाया था. जाकिर हुसैन ने अपने जीवन में कई अवॉर्ड जीते. महान तबला वादक ने अपने संगीत के करियर में 4 ग्रैमी पुरस्कार हासिल किए.
भारत के सबसे प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतकारों में से एक जाकिर हुसैन को साल 1988 में पद्मश्री, साल 2002 में पद्मभूषण और साल 2023 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था.
रतन टाटा ( 28 दिसंबर 1937- 9 अक्टूबर 2024)
देश के रतन कहे जाने वाले रतन टाटा ने साल 2024 में 86 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया. रतन टाटा बीमार चल रहे थे और रूटीन चेकअप के लिए अस्पताल गए थे. अचानक बिगड़ी तबीयत के बाद उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. अरबपति कारोबारी रतन टाटा अपनी दरियादिल के लिए जाने जाते थे. उनका जाना एक युग के अंत से कम नहीं है. रतन टाटा के निधन की खबरों ने सोशल मीडिया की दुनिया में सुनामी ला दी थी. उन्होंने साल 1991 से 2012 तक टाटा समूह और टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में काम किया और अक्टूबर 2016 से फरवरी 2017 तक उन्होंने अंतरिम अध्यक्ष का पद संभाला.
शिक्षा में भी हमेशा रहे फर्स्ट
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर, 1937 को एक पारसी परिवार में हुआ था. वह नवल टाटा के पुत्र थे. वर्ष 1948 में, जब रतन टाटा 10 साल के थे तब उनके माता-पिता अलग हो गए. उनका पालन-पोषण नवाजबाई टाटा, उनकी दादी और रतनजी टाटा की विधवा ने किया. इसके बाद उन्हें गोद ले लिया. रतन टाटा ने अपनी पढ़ाई मुंबई के कैंपियन स्कूल में 8वीं कक्षा तक की. उन्होंने साल1955 में स्नातक किया. हाई स्कूल के बाद रतन टाटा ने कॉर्नेल विश्वविद्यालय में दाखिला लिया. उन्होंने साल 1962 में वास्तुकला में स्नातक की डिग्री हासिल की. इसके बाद वर्ष 1975 में रतन टाटा ने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम में दाखिला लिया.
यह भी पढ़ें: Former PM Manmohan Singh: कैसा रहा है पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का सफरनामा?
मिले कई पुरस्कार
यहां बता दें कि रतन टाटा को साल 2000 में पद्म भूषण और 2008 में पद्म विभूषण मिला, जो भारत सरकार की ओर से दिया जाने वाला तीसरा और दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है. रतन टाटा को महाराष्ट्र में सार्वजनिक प्रशासन में उनके काम के लिए वर्ष 2006 में महाराष्ट्र भूषण और असम में कैंसर मरीजों की देखभाल को आगे बढ़ाने में उनके योगदान के लिए 2021 में असम बैभव जैसे विभिन्न राज्य नागरिक सम्मान भी मिले. इसके अलावा उन्हें उल्लेखनीय योगदान के लिए भी कई पुरस्कार मिले थे.
शारदा सिन्हा ( 1अक्टूबर 1952- 5 नवंबर 2024)
भोजपुरी गायिका शारदा सिन्हा का 72 साल की उम्र में दिल्ली के एम्स में निधन हो गया. अपनी आवाज से देश-विदेश में मशहूर हुई शारदा सिन्हा ने कई गाने गाए हैं. बिहार से ताल्लुक रखने वाली शारदा ने मुख्य रूप से मैथिली और भोजपुरी में गाना गाया. उन्हें बिहार कोकिला और बिहार की कोयल भी कहा जाता था. शारदा सिन्हा ने शादियों के लिए, छठ गीत सहित कई लोक गीत गाए हैं. उनकी मौत की वजह सेप्टिसीमिया थी, जिसकी वजह से उन्हें रिफ्रैक्टरी शॉक आया. इसकी वजह से उनका निधन हो गया. सेप्टिसीमिया एक ऐसा स्थिति है जहां शरीर के खून में बैक्टीरिया का असर होना लगता है.
छठ गीतों से हुई मशहूर
शारदा सिन्हा अपने छठ भक्ति गीतों के लिए जानी जाती हैं. साल 2018 में वह एक दशक के बाद छठ पर गाने लेकर आई थी जिन्होंने लोगों के मन में अपनी जगह बनाई. ‘सुपवो ना मिले माई… और ‘पहिले पहिल छठी मैया’ जैसे गीतों से लोगों को बिहार आने का आग्रह किया. छठ के दौरान बजाए जाने वाले अन्य गीतों में ‘केलवा के पात पर उगलन सूरजमल झाके झुके, ‘हे छठी मईया’, ‘हो दीनानाथ’, ‘बहंगी लचकत जाए’, ‘रोजे रोजे उगेला’, ‘सुना छठी माई’, ‘जोड़े जोड़े सुपवा’ और ‘पटना के घाट’ पर शामिल हैं.
पुरस्कार से हुईं सम्मानित
शारदा सिन्हा ने अपने करियर के दौरान कई पुरस्कार प्राप्त किए. इसमें से साल 1991 में पद्म श्री, साल 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 2018 में पद्म भूषण शामिल हैं.
पंकज उधास (17 मई 1951- 26 फरवरी 2024)
जाने माने गजल गायक पंकज उधास ने 72 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया. इसकी जानकारी उनकी बेटी नायाब उधास ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए दी थी. लंबे समय से चल रही बीमारी की वजह से देहांत हो गया. उन्होंने साल 1980 में ‘आहट’ गजल एल्बम के साथ अपने करियर की शुरुआत की थी. उसके बाद साल 1981 में ‘मुकर्रर’ , 1982 में ‘तरन्नुम’, 1983 में ‘महफिल’, साल 1984 में पंकज उधास लाइव एट रॉयल अल्बर्ट हॉल, 1985 में नायाब और 1986 में आफरीन जैसी कई हिट फिल्में में गाना गाया. अपनी बुलंद आवाज की वजह से उन्होंने देश-विदेश में भी अपनी पहचान बनाई है. उन्होंने लोगों के बीच अपनी पहचान ‘चिट्ठी आई है’ गाने से बनाई. इसके बाद से उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में अपनी आवाज दी है.
पंकज उधास के मशहूर गाने
पंकज उधास ने कई हिट फिल्मों और एल्बम को अपनी आवाज दी. उनके सबसे मशहूर गानों में ‘चिट्ठी आई है’, ‘दिल से दिल मिला’, फिर कैसा गिला, चाँदी जैसा रंग है समेत कई गाने हैं. उन्होंने आहट,नशा, टैरान,नबील, महफिल समेत कई एल्बम भी गाएं हैं. पंकज उधास अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे थे. उनके सबसे बड़े भाई मनहर उधास भी बॉलीवुड फिल्मों के मशहूर गायक रहे हैं.
कई पुरस्कारों ने नवाजें गए पंकज उधास
वर्ष 1985 में पंकज उधास को सर्वश्रेष्ठ गजल गायक के लिए केएल सहगल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उसके बाद से साल 1990, 1993. 1994, 1996 और 1998 में अपने गायन के लिए पुरस्कार मिलते रहे हैं. उन्हें आखिरी पुरस्कार साल 2024 में सम्मान लोकमत सुर ज्योत्सना राष्ट्रीय संगीत दिग्गज पुरस्कार मिला था.
रोहित बल (8 मई 1961- 1 नवंबर 2024)
रोहित बल एक मशहूर फैशन डिजाइनर थे, जिन्होंने वर्ष 2024 में दुनिया को अलविदा कर दिया. उन्होंने अपना आखिरी शो दुनिया को अलविदा कहने के एक हफ्ते पहले ही किया था. वहीं, अपने आखिरी शो के पहले भी वह आईसीयू में भर्ती थे. उन्होंने दिल्ली के आश्लोक अस्पताल में आखिरी सांस ली है. दिल का दौरा पड़ने से रोहित बल का निधन हो गया. रोहित बल सिर्फ 63 साल के ही थे. वह सिर्फ एक देश के मशहूर फैशन डिजाइनर ही नहीं, बल्कि फैशन डिजाइन काउंसिल ऑफ इंडिया के संस्थापक सदस्य भी थे. पारंपरिक पैटर्न और आधुनिक संवेदनाओं के लिए वह बॉलीवुड में मशहूर थे. रोहित बल दिल की बीमारी से भी पीड़ित थे.
यह भी पढ़ें: RIP Manmohan Singh Live: मनमोहन के निधन पर देश में एक सप्ताह का राष्ट्रीय शोक
कहां से की पढ़ाई?
रोहित बल का जन्म 8 मई, 1961 को जम्मू और कश्मीर के श्रीनगर में एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था. रोहित ने अपनी शिक्षा श्रीनगर के वुडलैंड्स हाउस स्कूल और बर्न हॉल स्कूल से ली. वर्ष 1970 के बाद से उनका परिवार नई दिल्ली में बस गया. उन्होंने मथुरा रोड स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल में अपनी शिक्षा पूरी की. बाद में उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से इतिहास में स्नातक की डिग्री हासिल की. इसके साथ उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी में एक लघु पाठ्यक्रम के माध्यम से फैशन का अध्ययन किया, और बाद में संस्थान में अतिथि संकाय के रूप में छात्रों को पढ़ाया.
मनमोहन सिंह (26 सितंबर 1932 – 26 दिसंबर 2024)
भारतीय अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और अर्थशास्त्र के ज्ञाता कहे जाने वाले मनमोहन सिंह ने दुनिया को अलविदा कह दिया. वर्ष 1990 के दशक में बतौर वित्तमंत्री मनमोहन सिंह ने देश को कई सौगात दी, जिसे लोग कभी भुला नहीं पाएंगे. देश के 14वें प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद से उन्हें कई उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा. उन्होंने ब्यूरोक्रेसी में रहने से लेकर प्रधानमंत्री तक का पद तय किया. उस दौरान उन्होंने वित्त मंत्री के अलावा भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर तक का पद भी संभाला. उन्होंने अपनी नीतियों से बता दिया कि आर्थिक हालात को बदला जा सकता है.
कहां से की पढ़ाई?
मनमोहन सिंह ने राजनीति में आने से पहले शिक्षा के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की हैं. वर्ष 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास की. उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वो पंजाब से निकलकर ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय पहुंच गए, जहां उन्होंने साल 1957 में अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी की ऑनर्स डिग्री हासिल की. इसके बाद मनमोहन सिंह ने 1962 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नफिल्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डीफिल की डिग्री हासिल की. उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय और प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाकर अपना करियर शुरू किया. उन्होंने UNCTAD सचिवालय में कुछ समय के लिए काम भी किया और बाद में 1987 और 1990 के बीच जिनेवा में दक्षिण आयोग के महासचिव बने.
कई पुरस्कारों से हुए सम्मानित
गौरतलब है कि मनमोहन सिंह को उनके पूरे जीवन में कई पुरस्कार मिले. इसमें से भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण भी शामिल है. उन्हें यह पुरस्कार साल 1987 में दिया गया था. इसके साथ साल 1995 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी पुरस्कार भी मनमोहन सिंह को दिया गया था. वित्त मंत्री के लिए एशिया मनी पुरस्कार को साल 1993 और साल में दिया गया था. साल 1955 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का एडम स्मिथ पुरस्कार और कैम्ब्रिज में सेंट जॉन्स कॉलेज में अपने उल्लेखनीय प्रदर्शन के लिए राइट पुरस्कार दिया गया था. मनमोहन सिंह कैम्ब्रिज और ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालयों समेत कई विश्वविद्यालयों से उपाधियां हासिल कर चुके हैं.
Follow Us On: Facebook | X | LinkedIn | YouTube | Instagram