Introduction
Political Journey of Lalu-Nitish : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और वर्तमान सीएम नीतीश कुमार का राजनीति में काफी पुराना याराना रहा है. दोनों नेता एक समय एक-दूसरे को भाई मानते थे और आज भी जब मिलते हैं तो एक-दूसरे का काफी सम्मान करते हैं भले ही राजनीतिक मंचों से आरोप लगाते रहते हों. साल 1974 के जेपी आंदोलन की उपज लालू प्रसाद और नीतीश कुमार का सफर बिहार की राजनीति की कहानी को बयां करती हैं. RJD के प्रमुख लालू प्रसाद पहली बार साल 1977 में लोकसभा के सांसद चुने गए और नीतीश कुमार पहली बार पदार्पण 1985 में विधायक बनकर हुआ था. जहां एक तरफ लालू प्रसाद यादव केंद्र की राजनीति में काफी सक्रिय रहते तो वहीं नीतीश कुमार राज्य की राजनीति में जमीनी स्तर पर काम कर रहे थे. नीतीश ने 70 के दशक में बिहार राज्य छात्र महासंघ के सदस्य के रूप में अपना राजनीतिक करियर की शुरुआत की और उसके बाद जनता दल में शामिल हो गए. नीतीश कुमार के लिए राजनीति में साल 1989 काफी अहम था, इस साल वह 9वीं लोकसभा के लिए सांसद चुनकर पार्लियामेंट पहुंचे और इसके बाद 1990 में कृषि एवं सहकारी विभाग का केंद्रीय राज्य मंत्री बनाया गया यह उनके करियर का मील का पत्थर साबित हुआ. साल 1991 में 10वीं लोकसभा इलेक्शन में वह दूसरी बार लोकसभा के सांसद के रूप में चुन लिए गए. इसी वर्ष उन्हें जनता दल का महासचिव भी चुन लिया गया और संसद में जनता दल का उपनेता बनाया गया. लालू और नीतीश एक ऐसी शख्सियत हैं जिनके इर्द-गिर्द बिहारी पूरी राजनीति घूमती रही है. यह दोनों नेता बीते 3 दशक से बिहार में अपना झंडा गाढ़े हुए हैं.
Table of Content
- बिहार की राजनीति में लालू का कद
- संघर्ष भरा रहा लालू का जीवन
- नीतीश का जीवन और राजनीतिक करियर
बिहार की राजनीति में लालू का कद
लालू यादव प्रसाद बिहार की राजनीति में एक अलग पहचान रखते हैं और उनके बिना राज्य में अधूरापन सा लगता है. उनका जन्म 11 जून, 1948 को बिहार के गोपालगंज में एक यादव परिवार के यहां पर हुआ था. वह राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख हैं और पहली बार 1990-97 तक बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. अपने मजाकिया अंदाज में विरोधियों पर तंज कसने के लिए लालू पूरी दुनिया में जाने जाते हैं. छात्र आंदोलन से लेकर संसद की राजनीति तक उन्होंने कई बड़े उतार-चढ़ाव देखें जहां वह साल 1974 में पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की नीतियों का विरोध करने के लिए सड़क पर उतरे और 1977 में आपातकाल हटने के बाद हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार 29 वर्ष की उम्र में सांसदी का चुनाव जीतकर पार्लियामेंट की दहलीज पर कदम रखा. साल 1980 में लालू जनता पार्टी से अलग हो गए और वीपी सिंह की अगुवाई वाली जनता दल से जुड़ गए. वहीं, 1990 में जनता पार्टी की बिहार विधानसभा सीटों पर भारी संख्या में जीत दर्ज की और हाई कमान ने राज्य की कमान लालू प्रसाद यादव को सौंपी और वह 1990 से 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. चारा घोटाले में आरोप लगने के बाद लालू ने जनता पार्टी का साथ छोड़ दिया और अपनी एक नई पार्टी RJD बना ली जहां उन्होंने अपनी पत्नी रबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया. बताया जाता है कि साल 2004 में UPA सरकार के दौरान रेल मंत्री रहते हुए लालू प्रसाद ने रेलवे को जबरदस्त मुनाफा पहुंचाया और 2.5 बिलियन रुपये का मुनाफा हुआ था.
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संघर्ष भरा रहा लालू का जीवन
लालू यादव का जीवन बचपन में काफी संघर्ष भरा है और उन्होंने गरीबी में रहकर प्राथमिक स्कूल में पढ़ाई की. उसके बाद पटना यूनिवर्सिटी से राजनीति शास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन और एलएलबी की. साथ ही उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘गोपालगंज टू रायसीना’ में अपनी आर्थिक स्थिति का जिक्र किया है. वह इस किताब में बताते हैं कि बचपन में उन्हें खाने के लिए पेट भर भोजन तक नसीब तक नहीं होता था. पहनने के लिए कपड़े नहीं थे और वह गांव में भैंस को चारा खिलाने का काम करते थे. लेकिन उनकी जिंदगी की एक घटना ने पूरा जीवन बदलने का काम किया था. बात यूं हुई कि लालू यादव बचपन में काफी शरारती थे और उन्होंने एक बार हींगवाले का झोला कुएं में फेंक दिया था इसके बाद हींगवाले ने पूरे गांव में जमकर हंगामा किया. उनकी शैतानियों से तंग आकर उनके घरवालों ने उन्हें पटना भेज दिया और वह अपने भाई के साथ वहां पर पढ़ने लगे. यही पर राह थी जब उन्होंने पटना के बीएन कॉलेज से एलएलबी और राजनीति विज्ञान मास्टर की उपाधि ली. पढ़ाई पूरी करने के बाद लालू ने पटना के बिहार पशु चिकित्सा कॉलेज में क्लर्क की नौकरी करना शुरू कर दिया और उसी कॉलेज में उनके बड़े भाई चपरासी का काम करते थे.
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नीतीश का जीवन और राजनीतिक करियर
नीतीश कुमार का नाम लिए बिना बिहार की राजनीति काफी अधूरी सी लगती है वह राज्य में लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने वाले पहले शख्स हैं. साल 2000 में वह पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने और विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाने को लेकर उनकी सरकार 7 दिनों में ही गिर गई. इसके बाद साल 2005 में उन्होंने NDA के साथ मिलकर लालू की सरकार में जंगलराज को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ा और पहली बार वह पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब हुए और इस बार नीतीश कुमार राज्य के दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए. 2005 के बाद नीतीश कुमार साल 2010 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए. लेकिन नीतीश कुमार इस बार पांच साल तक अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए क्योंकि साल 2013 में भारतीय जनता पार्टी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी (वर्तमान प्रधानमंत्री) को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में घोषित कर दिया था जिसके बाद नीतीश कुमार काफी नाराज हो गए और उन्होंने BJP से नाता तोड़ लिया. नीतीश 2014 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गए हालांकि उनको इस चुनाव में ज्यादा कामयाबी नहीं मिली जिसके बाद नीतीश ने सीएम पद छोड़ दिया और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया और इस दौरान मांझी ने बचा हुआ कार्यकाल पूरा किया जहां वह एक साल तक इस पद बने रहे.
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1994 में नीतीश ने पकड़ी अलग राह
लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार पहली बार जयप्रकाश नारायण (JP) के समाजवादी आंदोलन के दौरान एक साथ आए. इंदिरा गांधी के खिलाफ देश भर में विरोध-प्रदर्शन हो रहा था और एक ऐसी स्थिति पैदा हो गई कि जब लालू-नीतीश को एक साथ आना पड़ा था. लालू यादव शुरू से ही हिंदुत्व विचाराधारा के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे उस दौरान वह युवा नेता नीतीश कुमार जैसे समाजवादी नेता को अपने साथ रखना चाहते थे. जब इंदिरा के खिलाफ जेपी आंदोलन सफल हुआ तो इन दोनों नेता के लिए यह सफलता की बात थी. वहीं, 1990 में बिहार विधानसभा में जनता दल की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी और मुख्यमंत्री की दौड़ में नीतीश कुमार ने लालू की पूरी मदद की जिसके बाद लालू प्रसाद पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. हालांकि, 2 साल बाद ही नीतीश और लालू के बीच में मतभेद होना शुरू हो गए. दोनों के बीच मतभेद का कारण लालू की तरफ से एक जाति को प्राथमिकता देना और ट्रांसफर-पोस्टिंग में भ्रष्टाचार बना था. इसके बाद साल 1994 में नीतीश कुमार ने समता पार्टी बनाकर लालू से अलग हो गए. लेकिन साल 1995 में विधानसभा के चुनाव में नीतीश कुमार पूरे राज्य में मात्र 7 सीट ही जीत पाए और लालू प्रसाद यादव एक बार फिर सरकार बनाने में कामयाब हो गए. इसके बाद 1996 में लालू की राजनीतिक करियर पर भूचाल आ गया जहां पटना हाई कोर्ट ने चारा घोटाले में CBI जांच का आदेश दिया और उसके बाद उन्हें जेल जाना पड़ा, लेकिन लालू ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपनी पकड़ बनाए रखी और उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया और अगले साल भी चुनाव बाजी लेकर चले गए.
Conclusion
लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति को गहरे रूप से प्रभावित किया है. दोनों ही नेता के पास पर्याप्त जनाधार है, बीते तीन दशक की बिहार की राजनीति पर निगाह डालें तो लालू और नीतीश में से एक के समर्थन के बिना कोई सरकार ही नहीं बना सका. एक तरफ जहां लालू की अपील पिछड़ों वर्गों के लिए वकालत में निहित है. वहीं, नीतीश कुमार की सरकार शासन और विकास पर जोर देने का काम करती है. उनका रिश्ता बीते तीन दशकों में गठबंधन और प्रतिद्वंद्विता का मिश्रण रहा है. इस दौरान दोनों नेताओं ने बिहार और राष्ट्रीय स्तर पर बदलते राजनीतिक माहौल के अनुसार अपना स्टैंड लिया है. लेकिन लालू की अगुवाई वाली RJD ज्यादातर कांग्रेस के नेतृत्व वाले UPA (वर्तमान I.N.D.I.A.) का समर्थक रहा है जबकि नीतीश की पार्टी JDU ज्यादातर NDA का समर्थन करती रही है. यही एक वजह हो सकती है दोनों नेता राष्ट्रीय स्तर पर दो पार्टियों को लुभाने के लिए अलग-अलग धाराओं में बह रहे हैं. नीतीश कुमार साल 2015 में विधानसभा का चुनाव RJD के मिलकर लड़ा था लेकिन कुछ दिनों बाद ही वह UPA को छोड़कर NDA में शामिल हो गए. 90 के दशक से पहले एक मंच पर एक साथ दिखने वाले लालू-नीतीश वर्तमान में दो ध्रुव पर खड़े है और दोनों ही एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते रहे हैं.
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