Home Latest क्या है ISRO का SpaDeX मिशन? जानें क्यों भारत के लिए है जरूरी, कैसे खुलेगा भविष्य का रास्ता

क्या है ISRO का SpaDeX मिशन? जानें क्यों भारत के लिए है जरूरी, कैसे खुलेगा भविष्य का रास्ता

by Divyansh Sharma
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ISRO SpaDeX Mission Launch: चंद्रमा पर यान को भेजना, चंद्रमा से नमूने वापस लाना और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण जैसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स के लिए महत्वपूर्ण है.

ISRO SpaDeX Mission Launch: ISRO यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन एक बार फिर से इतिहास रचने जा रहा है. ISRO अपने प्रक्षेपण केंद्र श्रीहरिकोटा सोमवार की रात 10 बजे स्टेशन SpaDeX मिशन को लॉन्च करने वाला है. ISRO ने इस बात की जानकारी अपने आधिकारिक X हैंडल पर दी है. ISRO इस मिशन के जरिए स्पेस में बुलेट की स्पीड से दस गुना ज्यादा तेजी से ट्रैवल कर रहे दो स्पेसक्राफ्ट्स को आपस में जोड़ा जा सकता है, जिसे डॉकिंग कहते हैं.

पृथ्वी की निचली कक्षा में होगी डॉकिंग

ISRO से मिली जानकारी के मुताबिक इसे बेहद कम कीमत में लॉन्च किया जाना है. साथ ही यह मिशन चंद्रमा पर भारत के यान को भेजना, चंद्रमा से नमूने वापस पृथ्वी लाना और BAS यानी भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण समेत कई भारत के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स के लिए महत्वपूर्ण है. ISRO ने बताया कि अंतरिक्ष में डॉकिंग तकनीक सबसे जरूरी है और इसकी जरूरत तब पड़ती है, जब सामान्य मिशन की सफलता के लिए कई रॉकेट्स को लॉन्च करने की आवश्यकता होती है.

ISRO का यह मिशन अगर सफल होता है, तो भारत भारत स्पेस डॉकिंग तकनीक रखने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा. ISRO के मुताबिक स्पैडेक्स मिशन के दौरान पृथ्वी की निचली कक्षा में दो छोटे अंतरिक्ष यान को जोड़ने का काम किया जाएगा. इसमें से एक यान का नाम है SDX01, जिसे चेजर भी कहा जाता है, दूसरे का नाम है SDX02, जिसे टारगेट नाम दिया गया है. दोनों अंतरिक्ष यानों का वजन 220 किलो है. इससे स्पेस में AI और रोबोटिक्स की क्षमता का भी प्रदर्शन किया जाएगा.

क्यों जरूरी है मिशन

•चंद्रमा पर यान को भेजना
•चंद्रमा से नमूने वापस लाना
•भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण

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चंद्रयान-4 मिशन के लिए खुलेगा रास्ता

दोनों अंतरिक्ष यानों को एक ही साथ ISRO के PSLV-C60 से पृथ्वी की कक्षा में लॉन्च किया जाएगा. टारगेट और चेजर एक ही स्पीड से पृथ्वी की कक्षा में अलग-अलग दाखिल होंगे, जिनके बीच की दूरी 20 किमी होगी. इसके बाद स्पेस में ही दोनों यानों को जोड़ने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. डॉकिंग के बाद अनडॉकिंग की प्रक्रिया को भी स्पेस में ही अंजाम दिया जाएगा. साथ ही दोनों के बीच इलेक्ट्रिक पावर को भी ट्रांसफर किया जाएगा. यह पूरी प्रक्रिया 470 किमी की ऊंचाई पर होने वाली है. बता दें कि इस दौरान दोनों की गति करीब 28,800 किलोमीटर प्रति घंटे होगी, जो बुलेट ट्रेन की स्पीड से 10 गुना ज्यादा है.

इसके अलावा यानों के पेलोड में हाई रिजॉल्यूशन कैमरा लगाए गए हैं, जो हाई रिजाल्यूशन तस्वीरें और नेचुरल रिसोर्स की मॉनिटरिंग करेंगे. इसके जरिए भविष्य में चंद्रयान-4 जैसे मिशनों के लिए डॉकिंग की प्रक्रिया की जाएगी. बता दें कि इस मिशन के जरिए चंद्रयान-4 से चांद से मिट्टी लाने की को प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा. इस प्रयोग के बाद भारत ISRO अंतरिक्ष यान के हिस्सों के वापस लाने में भी सफल हो जाएगा. इस मिशन से ही स्पेस में सर्विसिंग और रीफ्यूलिंग का विकल्प भी मिल जाएगा.

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