ISRO Proba-3 Mission: इस मिशन को एक दिन पहले ही लॉन्च किया जाना था, लेकिन किसी वजह से PSLV-C59/प्रोबा-3 को बुधवार को लॉन्च नहीं किया गया.
ISRO Proba-3 Mission: ISRO यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने प्रोबा-3 मिशन को गुरुवार को लॉन्च कर दिया. ISRO ने इसे PSLV यानी पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल से शाम 4.08 बजे लॉन्च किया गया.
बता दें कि इस मिशन को एक दिन पहले ही लॉन्च किया जाना था, लेकिन किसी वजह से PSLV-C59/प्रोबा-3 को बुधवार को लॉन्च नहीं किया गया.
ISRO के साथ ग्लोबल मिशन की हुई शुरुआत
ISRO ने प्रोबा-3 मिशन गुरुवार की सुबह 8 बजे फिर से उल्टी गिनती शुरू की. 8.5 घंटे की उल्टी गिनती के बाद इसे शाम 4.08 बजे लॉन्च कर दिया गया. एक दिन पहले इसे जैसे ही लॉन्च किया जा रहा था, तभी यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के अनुरोध पर इसे गुरुवार के लिए रिशेड्यूल कर दिया गया.
ISRO ने लॉन्चिग से पहले ही एक बयान जारी कर कहा था कि प्रोबा-3 अंतरिक्षयान में तकनीकी दिक्कत के कारण PSLV-C59/प्रोबा-3 के लॉन्चिंग को पुनर्निर्धारित किया गया. इसके बाद गुरुवार को मिशन के सफलतापूर्वक लॉन्च होने पर ISRO के आधिकारिक X हैंडल पर बयान जारी कर बधाई दी गई.
ISRO के पोस्ट में लिखा गया कि लॉन्चिंग सफल रहा. बयान में कहा गया कि PSLV-C59 ने सफलतापूर्वक आसमान में उड़ान भरी. साथ ही कहा गया कि इस मिशन से ISRO की तकनीकी विशेषज्ञता के साथ साथ NSIL यानी न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड के नेतृत्व में ESA यानी यूरोपियन स्पेस एजेंसी के पहले PROBA-3 उपग्रहों को लॉन्च
करने के लिए एक ग्लोबल मिशन की शुरुआत हुई.
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कोरोना के सूर्य के सतह से भी गर्म होने का खुलेगा राज
ISRO ने इसे अंतरराष्ट्रीय सहयोग और भारत की अंतरिक्ष उपलब्धियों के तालमेल का जश्न मनाने का एक गौरवपूर्ण क्षण बताया. बता दें कि प्रोबा-3 यानी प्रोजेक्ट फॉर ऑनबोर्ड एनाटॉमी में दो सैटेलाइट कोरोनाग्राफ (310 किलोग्राम) और ऑकुल्टर (240 किलोग्राम) लगे हुए हैं.
दोनों ही सैटेलाइट एक साथ उड़ान भरेंगे और सूर्य के बाहरी वायुमंडल यानी कोरोना का अध्ययन करने के लिए एक मिलीमीटर तक सटीक कोऑर्डिनेशन रखेंगे. ISRO से मिली जानकारी के मुताबिक वैज्ञानिक यह पता लगाना चाहते हैं कि कोरोना (सूर्य की सबसे बड़ी परत) सूर्य की सतह से अधिक गर्म क्यों है और सौर हवा किस कारण तेज होती है.
बता दें कि ISRO और ESA समेत कई स्पेस एजेंसियों का मामना है कि कोरोना से ही स्पेस वेदर की उत्पत्ति होती है. इसके साथ ही दोनों सैटेलाइट से मिलने वाली रिपोर्ट स्पेस वेदर के बारे में समझ को भी बढ़ाने में मदद करेगी. साथ ही दो सैटेलाइट के बेहतर तालमेल से ISRO का एडवांस्ड फॉर्मेशन-फ्लाइंग टेक्नोलॉजी भी सबसे मजबूत हो जाएगा.
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