Introduction
Interesting Facts About Manmohan Singh: कहा जाता है कि राजनीति में सतही लोग तिकड़म करके जल्द कामयाब हो जाते हैं और फिर छा जाते हैं, लेकिन महान राजनेता की काबिलियत को जमाना उसके दुनिया से जाने के बाद दशकों-सदियों तक याद करता है. लगातार 10 साल तक प्रधानमंत्री पद संभाल चुके डॉ. मनमोहन सिंह को आने वाली सदियां याद करेंगी. 20वीं सदी के 1990 के दशक में उन्होंने बतौर वित्तमंत्री देश को उदारीकरण का तोहफा दिया, जिसका लाभ आज भी देश उठा रहा है. देश के 14वें प्रधानमंत्री रहे मनमोहन भले ही बेहद कम बोलते थे, लेकिन उन्होंने कई ऐसे काम किए, जिसे हमेशा याद किया जाएगा. आधार, मनरेगा, RTI और राइट टु एजुकेशन जैसी स्कीमें मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही लॉन्च हुईं, जो आज बेहद कारगर साबित हो रही हैं. इन स्कीमों का लाभ वर्तमान में करोड़ों लोग उठा रहे हैं.
देश की इकोनॉमी को नाजुक दौर से निकालने का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है. एक दौर था जब देश की आर्थिक हालत काफी खराब थी और नई नौकरियां पैदा नहीं हो रही थीं. ऐसे में बतौर वित्तमंत्री मनमोहन सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के समक्ष उदारीकरण का ऐसा खाका पेश किया, जिसके बाद देश की सूरत ही बदल गई. इसके बाद देश में विदेशी कंपनियों की एक-एक कर एंट्री हुई और नौकरियां पैदा होनी शुरू हो गईं. बेशक वह 10 साल तक (2004 से 2014) तक प्रधानमंत्री रहे, लेकिन उनकी पहचान राजनेता से ज्यादा अर्थशास्त्री के तौर पर ही रही. अध्ययन के साथ अध्यापन में भी रुचि रखने वाले मनमोहन सिंह ने विदेश की कई यूनिवर्सिटीज में अध्ययापन किया है. उनका सम्मान बराक ओबामा समेत कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष करते थे. इस स्टोरी में हम बता रहे हैं डॉ. मनमोहन सिंह के बारे में अहम बातें.
Table of Content
- खुद को कहते थे आम आदमी
- एक चुनाव लड़ा वह भी हार गए
- क्यों पहनते थे नीली पगड़ी
- सोनिया गांधी के खिलाफ जाकर साइन की न्यूक्लियर डील
खुद को कहते थे आम आदमी
बेहद सादा जीवन जीने वाले डॉ. मनमोहन सिंह मिलनसार शख्सियत थे. वह शालीनता के लिए जाने जाते थे. अपनी ‘चुप्पी’ के लिए मशहूर मनमोहन सिंह ने सार्वजनिक जीवन में हमेशा शुचिता, गरिमा और शालीनता का ख्याल रखा. उन्होंने मंच पर भाषण के दौरान कभी अपशब्दों का इस्तेमाल नहीं किया. सही मायने में 10 साल बतौर पीएम मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद को वह ऊंचाई दी है, जिसके आसपास तक पहुंच पाना भी आने वाले पीएम के लिए करीब-करीब नामुमकिन होगा. बहुत ही कम लोगों को इस बारे में जानकारी होगी कि डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री आवास में रहने के बावजूद खुद को आम आदमी कहते थे. उन्हें सरकारी BMW से ज्यादा अपनी मारुति 800 पसंद थी, इसलिए उनके पास हमेशा कार रही. इंडियन ऑटो मार्केट में मारुति सुजुकी का हमेश ही दबदबा रहा है. मनमोहन सिंह की मौजूदगी में वर्ष 1994 में मारुति सुजुकी ने अपनी नई सिडैन लॉन्च की थी.
एक चुनाव लड़ा वह भी हार गए
ब्यूरोरोक्रेसी में लंबी पारी खेलने के बाद राजनीति में सक्रिय हुए तो पीएम के पद तक पहुंचे, जिस भारत में सर्वोच्च पद माना जाता है. डॉ. मनमोहन सिंह ने 53 साल तक काम किया. इस दौरान वह भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर भी रहे. वह वर्ष 1971 में पहली बार केंद्र सरकार के सलाहकार बने और 2004 में प्रधानमंत्री बनकर देश का नेतृत्व किया. वह 10 वर्ष तक पीएम के पद पर रहे. इस बीच वह 2024 तक राज्यसभा सदस्य भी रहे. 1985 से 1987 योजना आयोग के प्रमुख और 1982 से 1985 रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे. वर्ष 1991 में मनमोहन सिंह ने भारतीय राजनीति में कदम रखा. राजनीति के पहले पायदान पर ही कामयाबी मिली और वित्त मंत्री बने तो उन्होंने राज्यसभा के जरिए संसद जाने का रास्ता चुना. 33 सालों तक राज्यसभा का ही प्रतिनिधित्व करते रहे.
अपने राजनीतिक जीवन में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सिर्फ एक बार ही चुनावी मैदान में उतरे थे, लेकिन खाते में जीत नहीं आई. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने कई दिग्गज नेताओं को चुनाव लड़ाने का निर्णय लिया था. मनमोहन सिंह भी सोनिया के कहने पर चुनाव लड़ने के लिए राजी हो गए. कांग्रेस ने वर्ष 1999 में मनमोहन सिंह के लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए दक्षिण दिल्ली संसदीय सीट का चयन किया. ऐसा इसलिए क्योंकि इस सीट पर समीकरण कांग्रेस के साथ था.
दरअसल, मुस्लिम और सिख समुदाय के वोटों के समीकरण के मद्देनजर कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को दक्षिण दिल्ली लोकसभा सीट से उतारा. ऐसा कहा जाता है कि मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण कौर उनके चुनाव लड़ने के खिलाफ थीं. सोनिया गांधी के आदेश के चलते मनमोहन सिंह चुनाव लड़ने का निर्णय टाल नहीं सके. इस तरह पत्नी की इच्छा के खिलाफ जाकर चुनावी मैदान में उतर गए. यह अलग बात है कि उन्हें हार का सामना करना पड़ा. मनमोहन सिंह 1999 का चुनाव करीब 30 हजार वोटों से हार गए थे. दक्षिण दिल्ली लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार विजय मल्होत्रा को 261230 वोट मिले थे और कांग्रेस के मनमोहन सिंह को 231231 वोट मिले थे. यह दुर्भाग्य था कि अर्थशास्त्र का ज्ञाता राजनीति के चुनावी मैदान में ढेर हो गया. इसके बाद उन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा. वह राज्यसभा से ही संसद पहुंचे और 10 साल तक तो उन्होंने बतौर पीएम देश की सेवा की.
क्यों पहनते थे नीली पगड़ी
सिख समुदाय के लिए पगड़ी उनके धर्म से जुड़ा एक अहम हिस्सा है. ऐसी मान्यता है कि पगड़ी को गुरु गोबिंद सिंह ने बैसाखी के दिन लोगों को उपहार में दिया था. यही वजह है कि सिख पगड़ी को गुरु का उपहार माना जाता है. सिख पगड़ी की बात करें तो अमृतधारी सिख यानी खालसा पहनते हैं. सिखों से जुड़े जानकारों का मानना है कि सिख पगड़ी, आस्था, सम्मान, स्वाभिमान, आध्यात्मिकता, पवित्रता और साहस का प्रतीक है. मनमोहन सिंह हमेशा नीली पगड़ी पहनते थे. वह हमेशा नीली पगड़ी क्यों पहनते थे? इसके पीछे एक ठोस वजह है. इसका रहस्य उन्होंने 11 अक्टूबर, 2006 को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में खोला था. दरअसल, मनमनोहन सिंह को ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग, प्रिंस फिलिप ने डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया था. इस दौरान अपने संबोधन में प्रिंस फिलिप ने कहा था- ‘आप उनकी पगड़ी के रंग पर ध्यान दे सकते हैं.’ इस पर मनमोहन सिंह ने कहा कि नीला रंग उनके अल्मा मेटर कैम्ब्रिज का प्रतीक है. कैम्ब्रिज में बिताए मेरे दिनों की यादें बहुत गहरी हैं. ऐसे में हल्का नीला रंग मेरा पसंदीदा है, इसलिए यह अक्सर मेरी पगड़ी पर दिखाई देता है. इसके बाद यह सबके सामने आया कि वह नीली पगड़ी क्यों पहनते थे.
सोनिया गांधी के खिलाफ जाकर साइन की न्यूक्लियर डील
बेशक उन्होंने आर्थिक उदारीकरण के दौरान कई कठिन फैसले लिए थे. इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव की मौन सहमति थी. कहा जाता है कि ज्ञान इंसान को मौन बना देता है. मनमोहन सिंह इसके उदाहरण थे. बावजूद इसके अपनी चुप्पी और सार्वजनिक मंचों पर अपनी बात एक राजनेता की तौर पर नहीं रखने वाले मनमोहन सिंह को कठपुतली प्रधानमंत्री के तौर पर जाना जाता है. आर्थिक उदारीकरण को धरातल पर लाने वाले मनमोहन सिंह की आर्थिक उदारीकरण के बाद दूसरी बड़ी उपलब्धि अमेरिका के साथ परमाणु करार थी. यह अलग बात है कि जनवरी, 2014 में आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मनमोहन सिंह ने इसे अपने कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया था. वर्ष 2006 में डॉ. मनमोहन सिंह ने वॉशिंगटन में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के साथ न्यूक्लियर डील साइन की. यह अलग बात है कि उन्होंने यह डील सोनिया गांधी की इच्छा के विरुद्ध जाकर की थी.
Conclusion
मनमोहन सिंह ने 1990 के दशक में उदारीकरण की नीतियों को अपनाकर देश को नई दिशा दी थी. लगातार 10 साल तक प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह ने राजनीतिक मोर्चे पर कई प्रयोग किए जो कई काफी हद तक सफल रहे.
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