-अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर पांच जजों की पीठ ने तीन फैसले दिए ।
-राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य की ओर से केंद्र की ओर से लिए गए हर फैसले को चुनौती नहीं दी जा
सकती।
-जम्मू-कश्मीर के पास देश के अन्य राज्यों से अलग आंतरिक संप्रभुता नहीं।
-जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग, यह संविधान के अनुच्छेद 1 और 370 में स्पष्ट है।
-संविधान का अनुच्छेद 370 अस्थायी था, इसे रद्द करने की राष्ट्रपति की शक्ति अभी भी मौजूद है।
-राज्य में युद्ध की स्थिति के कारण अनुच्छेद 370 अंतरिम व्यवस्था थी।
-जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को कभी भी स्थायी निकाय बनाने का इरादा नहीं था।
-जब जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त हो गया, तो जिस विशेष शर्त के लिए अनुच्छेद
370 लागू किया गया था उसका भी अस्तित्व समाप्त हो गया
-राष्ट्रपति की ओर से राज्य की नहीं बल्कि संघ की सहमति की मांग वैध है, भारतीय संविधान के सभी
प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू हो सकते हैं।
-केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए।
-जम्मू कश्मीर में जल्द चुनाव के लिए कदम उठाए जाएं। 30 सितंबर 2024 तक जम्मू कश्मीर में चुनाव
हों।
-कम से कम 1980 के दशक से मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच, रिपोर्ट करने और शांति बहाली के
उपायों की सिफारिश करने के लिए एक निष्पक्ष समिति की स्थापना की सिफारिश।
-हम संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए संवैधानिक आदेश जारी करने की राष्ट्रपति की
शक्ति के प्रयोग को वैध मानते हैं।
-हम जम्मू-कश्मीर से केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख बनाने के फैसले की वैधता को बरकरार रखते हैं।
राष्ट्रपति की शक्ति के प्रयोग के लिए परामर्श और सहयोग के सिद्धांत का पालन करना आवश्यक नहीं
था।
-अनुच्छेद 370 का उद्देश्य धीरे-धीरे जम्मू-कश्मीर को अन्य भारतीय राज्यों के बराबर लाना था।
-जम्मू-कश्मीर के संविधान में संप्रभुता का कोई जिक्र नहीं था। हालांकि, भारत के संविधान की प्रस्तावना में
इसका उल्लेख मिलता है।
-आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर के संघ के साथ संवैधानिक एकीकरण के लिए था और यह विघटन के लिए
नहीं था और राष्ट्रपति घोषणा कर सकते हैं कि अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो गया है।
-आर्टिकल 370 हटाने का फैसला बरकरार रहेगा। इसे हटाना संवैधानिक तौर पर सही है। राष्ट्रपति के पास
फैसले लेने का अधिकार है।
दरअसल, केंद्र सरकार के प्रस्ताव को जम्मू-कश्मीर के कुछ दलों और दूसरे लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
दी थी। जिसपर 16 दिन की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 5 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया
था। आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर से संविधान के आर्टिकल
370 को हटाने के लिए एक विधेयक संसद से पेश किया था, जिसे मंजूरी मिलने के बाद आर्टिकल 370
निरस्त कर दिया गया था।
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