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‘कोर्ट बच्चे को चल संपत्ति नहीं मान सकता’, सुप्रीम कोर्ट बोला- मानवीय आधार पर करना होगा कार्य

by Sachin Kumar
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Court consider child movable property Supreme Court work humanitarian basis

Supreme Court News : मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी जिसमें तकनीकी रूप से फैसला दिया गया था. शीर्ष अदालत ने कहा कि इसमें मानवीयता को नहीं देखा गया है.

06 September, 2024

Supreme Court News : नाबालिग के मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण केस (Habeas Corpus Case) से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतें बच्चों को चल संपत्ति नहीं मान सकती है. हिरासत में किसी प्रकार का व्यवधान पड़ने वाले प्रभाव पर विचार किए बिना किसी भी नाबालिग को ट्रांसफर नहीं कर सकती है. न्यायमूर्ति ए एस ओका और न्यायमूर्ति ए जी मसीह की बेंच ने कहा कि ऐसे मुद्दों पर तकनीकी रूप से फैसला नहीं लिया जा सकता है, बल्कि इन संवेदनशील मामलों पर मानवीय आधार पर कार्य करना होगा. बता दें कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में एक ऐसे व्यक्ति को कोर्ट में पेश किया जाता है जिसे अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है.

बच्चों को नहीं माना जा सकता चल संपत्ति

शीर्ष अदालत ने कहा कि जब किसी नाबालिग को बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में कोर्ट में विचार करने के लिए पेश किया जाता है तो कोर्ट बच्चों को चल संपत्ति नहीं मान सकती है. साथ ही हिरासत के दौरान बच्चे पर पड़ने प्रभाव पर विचार किए बिना उसे ट्रांसफर नहीं कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने दो साल और 7 महीने की एक बच्ची की हिरासत से संबंधित मामले में अपना फैसला सुनाया. बता दें कि बच्चे की मां की दिसंबर 2022 में अप्राकृतिक कारणों से मौत हो गई थी और वह वर्तमान में अपनी मौसी के पास है. वहीं, साल 2023 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दर्ज करवाई गई थी. इस याचिका में कहा गया कि बच्चे की हिरासत को मौसी से लेकर पिता और दादा-दादी को सौंप देनी चाहिए.

मां की मृत्यु के बाद हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला

पिछले साल ही सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले में रोक लगा दी. अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय उस मामले में फैसला सुना रहा था जिसमें बच्चे के जन्म के 11 महीने बाद मां की मृत्यु हो गई. SC ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हाई कोर्ट ने इस पक्ष पर विचार नहीं किया जिसमें बच्चे का पालन-पोषण हो रहा है. हाई कोर्ट ने बस उन तकनीकी मामलों पर विचार किया जिसमें बायलॉजिकल रूप से वह बच्चे का पिता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक बच्चे के ट्रांसफर का मामला है उसमें सबसे ज्यादा महत्व कल्याण पर रखा जाना चाहिए था और अन्य पक्ष को कल्याण से ज्यादा रिश्ते पर जोर नहीं दिया जा सकता है. हमारा सिर्फ यही कहना है कि बच्चे की उम्र और उसके कल्याण को ध्यान में रखते हुए मामले पर सुनवाई होनी चाहिए थी.

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