चालीस सालों में महासागरों के गर्म होने की दर काफी बढ़ गई है. एक रिपोर्ट के अनुसार महासागरों का पानी चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है. इस घटना ने पूरे विश्व को चिंता में डाल दिया है.
Global Warming: चालीस सालों में महासागरों के गर्म होने की दर काफी बढ़ गई है. एक रिपोर्ट के अनुसार महासागरों का पानी चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है. इस घटना ने पूरे विश्व को चिंता में डाल दिया है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि बढ़ने की दर को रोका नहीं गया तो इससे मानव जीवन खतरे में पड़ जाएगा.
बताया जाता है कि 1980 के दशक के उत्तरार्ध में महासागरों का तापमान हर दशक करीब 0.06 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रहा था, लेकिन अब इसमें वृद्धि की यह दर प्रति दशक 0.27 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गई है. यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के नेशनल सेंटर फॉर अर्थ ऑब्जर्वेशन से जुड़े वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि पिछले 40 वर्षों में महासागरों का तापमान चार गुना से भी ज्यादा बढ़ गया है, जो मानव जीवन के लिए चिंता का विषय है.
जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुए हैं अध्ययन के नतीजे
इस अध्ययन के नतीजे 28 जनवरी 2025 को जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुए हैं. अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि 2023-2024 की शुरुआत में समुद्र का तापमान रिकॉर्ड ऊंचाई पर क्यों पहुंच गया था. अध्ययन से जुड़े प्रमुख वैज्ञानिक और रीडिंग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर क्रिस मर्चेंट ने प्रेस विज्ञप्ति में बाथटब का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर महासागर बाथटब की तरह होते तो 1980 के दशक में गर्म पानी धीरे-धीरे आता था, जिससे हर दशक में समुद्र थोड़ा-थोड़ा गर्म होता था, लेकिन अब वही गर्म पानी बहुत तेजी से आ रहा है और समुद्र ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है. ऐसे में इसे धीमा करने के लिए हमें गर्म नल को बंद करना होगा यानि कि कार्बन उत्सर्जन में कटौती करके नेट-जीरो की दिशा में बढ़ना होगा.
बिगड़ रहा है पृथ्वी का ऊर्जा संतुलन
वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि पृथ्वी का ऊर्जा संतुलन तेजी से बिगड़ रहा है.यह वातावरण में मौजूद कहीं अधिक ग्रीनहाउस गैसों के कारण हो रहा है, जिससे समद्र तेजी से गर्म हो रहा है. वैज्ञानिकों ने बताया कि पृथ्वी सूर्य से मिलने वाली जितनी ऊर्जा अंतरिक्ष में छोड़ रही है,उससे कहीं अधिक अवशोषित कर रही है.
2010 के बाद से यह ऊर्जा असंतुलन करीब दोगुना हो गया है और स्थिति कहीं ज्यादा बदतर हो गई है, जो पृथ्वी के लिए खतरनाक है.अध्ययन के मुताबिक 2023 और 2024 की शुरुआत में महासागरों का तापमान लगातार 450 दिनों तक रिकॉर्ड ऊंचाई पर रहा. इसका एक कारण प्रशांत महासागर में घटी अल नीनो की घटना थी. वैज्ञानिकों ने इस अल नीनो की घटना की तुलना 2015-16 में आए ऐसे ही अल नीनो से की है. उन्होंने पाया कि पिछले दस वर्षों में महासागर बहुत तेजी से गर्म हुए हैं.
वास्तव में रिकॉर्ड गर्मी का 44 फीसदी हिस्सा महासागरों द्वारा अधिक गर्मी को तेजी से अवशोषित करने से आया है. वैज्ञानकों के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि हाल के दशकों में महासागरों का तापमान बड़ी तेजी से बढ़ रहा है.पिछले 40 वर्षों के दौरान तापमान में जो बढ़ोतरी देखी गई है, वह अगले महज दो दशकों में फिर से हो सकती है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि महासागर तेजी से गर्म हो रहे हैं, इसका असर पूरे ग्रह पर पड़ रहा है. ऐसे में यह जलवायु के लिए बेहद मायने रखते हैं. इसे धीमा करने और जलवायु को स्थिर रखने के लिए हमें जीवाश्म ईंधन के बढ़ते उपयोग को सीमित करने की जरूरत है.
क्या है जीवाश्म ईंधन
जीवाश्म ईंधन एक प्रकार का कई वर्षों पहले बना प्राकृतिक ईंधन है. यह लगभग 65 करोड़ वर्ष पूर्व जीवों के जल कर उच्च दाब और ताप में दबने से हुई है. यह ईंधन पेट्रोल,डीजल आदि के रूप में होता है. इसका उपयोग वाहन चलाने,खाना पकाने, रोशनी करने आदि में किया जाता है.
जीवाश्म ईंधन से निकलती है कार्बन डाइऑक्साइड ( CO2) गैस
मालूम हो कि कार्बन डाइऑक्साइड जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न होने वाली गैस है. यह कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस के जलने के दौरान बनती है, लेकिन जैव ईंधन के जलने से भी बनती है. CO2 उत्सर्जन ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है और जलवायु परिवर्तन पर इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है.
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