Introduction
Donald Trump: 2024 देश-दुनिया के लिए चुनावों का वर्ष रहा. दुनिया के सबसे पुराने अमेरिका और सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में भी आम चुनाव संपन्न हुए. इसके अलावा दुनिया के ताकतवर देशों में शुमार रूस में भी आम चुनाव हुए. रूस में हुए चुनाव में जहां राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने वापसी की तो अमेरिका ने तख्ता पलट में हो गया. पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी हुए आम चुनाव में सत्तापक्ष ने वापसी की, लेकिन बांग्लादेश में तख्तापलट ने लोकतंत्र की गरिमा को ठेस पहुंचा दी. भारत की बात करें तो नरेन्द्र मोदी सरकार ने भी सत्ता में वापसी की. कुल मिलाकर भारत, अमेरिका और रूस समेत 70 से अधिक देशों में वर्ष 2024 में चुनाव हुए.
Table of Content
- अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप की वापसी
- लोगों के गुस्से को डोनाल्ड ट्रंप ने भुनाया
- अश्वेत पुरुषों ने किया डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन
- डोनाल्ड ट्रंप को मिले पॉपुलर वोट
- सत्ता विरोधी लहर का मिला लाभ
- क्यों होती है मंगलवार को वोटिंग?
- अमेरिकी चुनाव की प्रक्रिया क्या है?
- 20 जनवरी को होगा सत्ता का हस्तांतरण
अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप की वापसी
अमेरिका में 2024 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरे कार्यकाल के लिए ऐतिहासिक जीत दर्ज की. इसके साथ ही
78 वर्षीय डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के सबसे उम्रदराज राष्ट्रपति बन गए. इसके साथ ही रिपब्लिकन ने सीनेट में भी बहुमत हासिल कर लिया. लगातार कई सालों से विवादों और जानलेवा हमले से बचने के बाद डोनाल्ड ट्रंप की वापसी अमेरिकी इतिहास में अहम पल है. दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप अपनी प्रतिद्वंद्वी डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस को हराकर अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति चुने गए. अमेरिकी इतिहास में ये दुर्लभ पल है, जिसमें वह एक कार्यकाल के अंतराल के बाद दूसरे कार्यकाल के लिए जीते हैं. रिपब्लिकन ने 52 सीटों के साथ सीनेट पर नियंत्रण हासिल किया. यहां पर रोचक यह है कि ट्रंप का अभियान, अवैध प्रवास और आर्थिक सुधारों पर केंद्रित था, जो उनके विभाजनकारी बयानों और विवादों के बावजूद गूंजता रहा.
लोगों के गुस्से को डोनाल्ड ट्रंप ने भुनाया
सुहास सुब्रमण्यम (डेमोक्रेट कांग्रेसी, वर्जीनिया) का मानना है कि अमेरिका के लोग महंगाई और अर्थव्यवस्था को लेकर बेहद नाराज थे, जिसका एक बड़ा कारण कोराना वायरस महामारी थी. ऐसे में जब हम उससे उबरने की कोशिश कर रहे थे तब भी लोग इस बात से नाराज थे कि किराने का सामान और गैस की कीमत अब भी ऊंची थी. इसका असर यानी लोगों का गुस्सा चुनाव के दौरान मतदान में दिखा. सुहास सुब्रमण्यम ने बताया कि जब वह राज्य विधानमंडल में थे तो यही सुन रहे थे. उन्होंने टोल लागत और दवा की लागत समेत दूसरी बढ़ती कीमतों को कम करने के लिए बहुत काम किया और अब भी बहुत काम करना बाकी है. ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि वह डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के साथ मिलकर ऐसा करेंगे, लेकिन अंत में ये बहुत ही मुश्किल माहौल था और मुझे लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप ने इसका फायदा उठाया.
अश्वेत पुरुषों ने किया डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन
जानकारों का कहना है कि बेरोजगारी और महंगाई पर ध्यान केंद्रित करने वाले डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी अभियान ने युवा मतदाताओं और अश्वेत समुदाय को प्रभावित किया, क्योंकि रिपब्लिकन नेता ने अश्वेत और युवा मतदाताओं के समर्थन में काफी इजाफा देखा. यह भी अहम बात है कि अमेरिका में युवा अश्वेत पुरुषों में डोनाल्ड ट्रंप की हिस्सेदारी लगभग दोगुनी हो गई है, जिससे उन्हें बढ़त हासिल करने में मदद मिली. चुनावी आंकडा साफ-साफ बताता है कि 45 साल से कम उम्र के लगभग 30 प्रतिशत अश्वेत पुरुषों ने डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन किया जो 2020 की संख्या से लगभग दोगुना है.
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इतिहास बनाने की अपनी कोशिश में कमला हैरिस, पेंसिल्वेनिया और विस्कॉन्सिन जैसे कांटे की टक्कर वाले राज्यों में हार गईं. विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक प्रदर्शन और अवैध अप्रवासियों का निर्वासन डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन का मुख्य फोकस होगा, जिसका भू-राजनैतिक असर काफी अहम होगा.
डोनाल्ड ट्रंप को मिले पॉपुलर वोट
दिलीप सिन्हा (पूर्व राजनयिक) का कहना है कि वैसे हिस्पैनिक लोगों का समर्थन बहुत असामान्य नहीं है, क्योंकि हिस्पैनिक और अफ्रीकी-अमेरिकी एक-दूसरे के साथ नहीं मिलते. सच्चाई यह भी है कि अमेरिका में डेमोकेट्स उम्मीदवार कमला हैरिस ने खुद को अफ्रीकी-अमेरिकियों के साथ बहुत करीब से जोड़ा था, जिसका मतलब था कि हिस्पैनिक लोगों के पास डोनाल्ड ट्रंप की ओर मुड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं था.
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दूसरा मुद्दा यह है कि मुझे लगता है कि अमेरिका में कानूनी रूप से रहने वाले कई हिस्पैनिक लोगों को लगता है कि किसी व्यक्ति के लिए अवैध आव्रजन को रोकना अच्छा है, जो हिस्पैनिक लोगों को बदनाम करता है. मुझे लगता है कि ये कारक कुछ अश्वेतों के लिए भी अहम रहा होगा कि डोनाल्ड ट्रंप के लिए अश्वेत वोट बहुत अधिक नहीं रहे हैं, लेकिन कुछ वोट मिले हैं, कुछ लोग उनके पक्ष में चले गए हैं. डोनाल्ड ट्रंप 2004 के बाद से पॉप्युलर वोट जीतने वाले पहले रिपब्लिकन भी बन गए. उनकी जीत ने 2020 के चुनाव की यादें भी ताज़ा कर दीं, जहां जो बाइडेन से हार मानने से इन्कार करने के कारण शुरू में कैपिटल हिल पर छह जनवरी की हिंसा हुई. यह ऐसा पल था, जिसके साथ उनका पहला कार्यकाल खत्म हुआ था.
सत्ता विरोधी लहर का मिला लाभ
दिलीप सिन्हा (पूर्व राजनयिक) का यह भी कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप को 6 जनवरी को हिंसा भड़काने वाले व्यक्ति के रूप में देखा गया. डेमोक्रेट्स को ऐसे लोगों के रूप में देखा जाता है जो लोगों के दैनिक जीवन में हिंसा के प्रति नरम हैं. कैलिफोर्निया में, हमें बताया जाता है कि पुलिस 900 डॉलर से कम की चोरी के मामले में रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है.
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यह हास्यास्पद है कि जिसका मतलब है कि चोरी होती है. पुलिस मामले दर्ज नहीं करती है. अवैध अप्रवासियों को अधिकार और विशेषाधिकार दिए जा रहे हैं, जिनका भुगतान करदाताओं द्वारा किया जा रहा है. यह सब मतदाताओं को पसंद नहीं आया, इसलिए उन्हें लगा कि डोनाल्ड ट्रंप और उनकी खामियां, डेमोक्रेट्स की खामियों से कम गंभीर हैं और किसी तरह कमला हैरिस को डेमोक्रेटिक पार्टी की सभी कमज़ोरियों का प्रतीक माना गया. जीत के बाद अपने भाषण में डोनाल्ड ट्रंप ने “राष्ट्र को मजबूत करने” और “स्वर्ण युग” की शुरुआत करने की कसम खाई. उन्होंने खुद पर हुए जानलेवा हमले में बचने को भगवान की देन बताया.
क्यों होती है मंगलवार को वोटिंग?
अमेरिका में हर 4 साल बाद नवंबर के पहले सोमवार के बाद वाले मंगलवार को ही वोटिंग होती है. अगर नवंबर की शुरुआत का पहला दिन मंगलवार है, तो भी इस दिन चुनाव नहीं कराए जाते है. दरअसल, अमेरिका में जब 1845 में सभी राज्यों में एक साथ चुनाव कराने का कानून बना था, तब ज्यादातर लोग खेती-किसानी करते थे. नवंबर के शुरुआती दिनों में किसानों के पास फुर्सत रहती थी, इसलिए वोटिंग के लिए नवंबर महीना तय कर दिया गया. यह दशकों से होता रहा है कि नवंबर में ही अमेरिका में चुनाव होता है वह भी मंगलवार को. वोटिंग के दिन पर चर्चा हुई तो रविवार को ज्यादातर लोग चर्च में प्रे करने जाते थे. इसलिए रविवार का दिन रिजेक्ट कर दिया गया. बुधवार को मार्केट बंद रहती थीं. इसलिए इस दिन भी चुनाव नहीं कराए जाने का फैसला लिया गया. आखिरकार मंगलवार को चुनाव कराने पर सहमति बनी.
अमेरिकी चुनाव की प्रक्रिया क्या है?
अमेरिका के संविधान के अनुच्छेद 2 में राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है. ‘इलेक्टोरल कॉलेज’ के जरिये अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव की व्यवस्था है. चुनाव प्रक्रिया ‘प्राइमरी’ के साथ चुनावी साल के पहले महीने यानी जनवरी में शुरू होती है और फिर जून महीने तक चलती है.
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इस दौरान राजनीतिक दल अपने उन उम्मीदवारों की सूची जारी करते हैं, जो राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव मैदान में आना चाहते हैं. इसके बाद दूसरे दौर में अमेरिका के 50 राज्यों के वोटर पार्टी प्रतिनिधि ( पार्टी डेलिगेट) चुनते हैं. प्राइमरी में चुने गए पार्टी प्रतिनिधि दूसरे दौर में पार्टी के सम्मेलन (कन्वेंशन) में हिस्सा लेते हैं. कन्वेनशन में ये प्रतिनिधि पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चुनाव करते हैं. इसी दौर में नामांकन की प्रक्रिया होती है.
अमेरिका चुनाव में इलेक्टोरल एक ‘इलेक्टोरल कॉलेज’ बनाते हैं, जिसमें कुल 538 सदस्य होते हैं. ‘इलेक्टर’ चुनने के साथ ही आम जनता के लिए चुनाव दरअसल, समाप्त हो जाता है. चुनाव प्रक्रिया के अंत में ‘इलेक्टोरल कॉलेज’ के सदस्य मतदान के जरिए अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं. अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के लिए कम से कम 270 इलेक्टोरल मत जरूरी होते हैं. अमेरिका में ‘विनर टेक्स ऑल’ यानी नंबर-1 पर रहने वाले को राज्य की सभी सीटें मिलने का नियम है. इसी वजह से 2016 के चुनाव में हिलेरी क्लिंटन से 28.6 लाख कम वोट पाकर भी डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बन गए थे, लेकिन 2024 के अमेरिकी चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप में भारी जीत दर्ज की है.
Conclusion
राष्ट्रपति चुने गए डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान अपने प्रशासन द्वारा लागू किए जाने वाले कई उपायों की भी घोषणा की है। इनमें आव्रजन से लेकर कर और संघर्ष तक शामिल है. डोनाल्ड ट्रंप आधिकारिक तौर पर 20 जनवरी, 2025 को संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालेंगे.
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