Introduction Of Deep State
Deep State: नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक दिन बाद अमेरिका के राष्ट्रपति के पद की शपथ ग्रहण करेंगे. इसके साथ ही वह सत्ता संभालने के पहले दिन से ही डीप स्टेट कहे जाने वाले सिस्टम को ध्वस्त करने की योजना पर काम कर सकते हैं. माना जाता है कि मौजूदा समय में इस डीप स्टेट में 50 हजार से अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं. ऐसे में यह जानना अहम है कि डीप स्टेट क्या है और इससे कैसे कई देशों के लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था को खतरा है.
Table Of Content
- क्या डोनाल्ड ट्रंप पर हमले के पीछे था डीप स्टेट?
- कहां से निकली है डीप स्टेट की परिभाषा?
- CIA का क्या है डीप स्टेट से रिश्ता?
- जॉन एफ कैनेडी की हत्या में क्या था डीप स्टेट का रोल?
- डीप स्टेट पर कब हुआ था बड़ा खुलासा?
- भारत में क्या है डीप स्टेट को लेकर राय?
क्या डोनाल्ड ट्रंप पर हमले के पीछे था डीप स्टेट?
दरअसल, अमेरिका में चुनाव प्रचार अभियान के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने Deep State को खुद अमेरिका और दुनियाभर के लोकतांत्रिक देशों के लिए गंभीर और बड़ा खतरा बताया था. गौरतलब है कि 13 जुलाई को पेनसिल्वेनिया के बटलर में जब डोनाल्ड ट्रंप पर हमला हुआ, तब भी दावा किया गया था कि इसके पीछे डीप स्टेट का हाथ है.
𝐓𝐫𝐮𝐦𝐩 𝐀𝐬𝐬𝐚𝐬𝐬𝐢𝐧𝐚𝐭𝐢𝐨𝐧 𝐀𝐭𝐭𝐞𝐦𝐩𝐭:
— Oli London (@OliLondonTV) July 14, 2024
8 bullets fired at President Trump, killing one bystander, and leaving Trump with an injury to his face.
The former President could be seen ducking as the crowd screamed as a shooter fired from a rooftop at the rally in… pic.twitter.com/DpcTwLmNl7
ऐसे में बड़ा सवाल बन जाता है कि क्या वाकई में डीप स्टेट नाम का सिस्टम है या सिर्फ एक थ्योरी है, जिससे सरकारें अपनी नाकामी छिपाती हैं. डीप स्टेट का पहली बार इस्तेमाल साल 2017 में पहली बार डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के बाद सामने आया था. डीप स्टेट डोनाल्ड ट्रंप के विरोधियों के एक मुहावरा बन गया. हालांकि, बहुत पहले से डीप स्टेट सिस्टम की बात चली आ रही है.
कहां से निकली है डीप स्टेट की परिभाषा?
अमेरिकी इतिहासकार रेयान जिंजरस के एक लेख के मुताबिक Deep State तुर्की के अतीत को परिभाषित करता है. दरअसल, तुर्की देश की स्थापना ओटोमन साम्राज्य के अंदर ही हुई थी. ऐसे में डीप स्टेट भी तुर्की भाषा के शब्द डरिन देवेलेट से आया है, जिसका अर्थ है गहरा राज्य. तुर्की देश की स्थापना और विकास में सरकारी षड्यंत्रों की गहरी छाप देखने को मिलती है. तुर्की के संस्थापक मुस्तफा कमाल अतातुर्क को CUP यानी कमिटी ऑफ यूनियन एंड प्रोग्रेस के प्रमुख सदस्यों में गिना जाता था.
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साल 1908 से लेकर 1923 तक जब ओटोमन साम्राज्य पतन की ओर बढ़ रहा था, तब CUP के नेताओं ने तुर्की देश की मांग के लिए गुप्त हथियारों के जरिए प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सीरियाई रेगिस्तान में लगभग दस लाख अर्मेनियाई लोगों की सामूहिक हत्या कर दी और इस्लामीकरण किया था. इसे अर्मेनियाई नरसंहार भी कहते हैं. और यहीं से डीप स्टेट की षड्यंत्र और तोड़फोड़ की संस्कृति का जन्म हुआ. साथ ही साल 1960 में हुए पहले तख्तापटल ने इसे और पुख्ता कर दिया.
साल 1996 की सुसुरलुक घटना ने डीप स्टेट की गहरी जड़ों को उजागर कर दिया. दरअसल, तुर्की के सुसुरलुक में एक रोड एक्सडेंट हुआ था. इसमें एक राजनेता, एक पुलिस अफसर, और एक माफिया डॉन मारा गया था. इस हादसे ने स्पष्ट कर दिया कि देश की सरकार, रक्षा तंत्र और माफिया के बीच गहरे रिश्ते हो सकते हैं. साल 2002 में न्याय और विकास पार्टी के नेता रेसेप तैयप एर्दोगन ने डीप स्टेट को जड़ से उखाड़ फेंकने की कसम खाई थी.
CIA का क्या है डीप स्टेट से रिश्ता?
अमेरिका के पर्ल हार्बर नेवल बेस पर 7 दिसंबर, 1941 को जापान के हमले को भी Deep State से जोड़कर देखा जाता है. कई विदेशी मामलों के जानकारों का मानना है कि पर्ल हार्बर नेवल बेस पर हमले के बाद देश को सुरक्षित रखने के लिए एक इंटेलिजेंस एजेंसी की जरूरत पड़ी.
इसके बाद अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट, बिल डोनोवेन ने विश्व युद्ध को जीतने के लिए साल 1942 में OSS यानी ऑफिस ऑफ स्ट्रेटेजिक सर्विस की शुरुआत की. OSS ने अमेरिका की जीत के लिए सभी रणनीति अपनाई. बाद में इसे खत्म कर दिया गया. बाद में उस वक्त के अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने इसे विघटित कर दिया.
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इसके बाद शीत युद्ध के समय अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनाव अपने चरम पर था. हैरी ट्रूमैन ने CIA यानी सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी की शुरूआत कर दी. शीत युद्ध के समय CIA ने के कई देशों में शासन परिवर्तन, चुनावों में धांधली और कोवर्ट ऑपरेशन को अंजाम दिया. इस समय तक CIA शक्तिशाली बन चुका था. इसके बाद से CIA पर अपने ही लोगों पर जासूसी जैसे गंभीर आरोप लगे. डीप स्टेट इस अवस्था में धीरे-धीरे पनप रहा था.
जॉन एफ कैनेडी की हत्या में क्या था डीप स्टेट का रोल?
जॉन एफ कैनेडी की हत्या को लेकर कहा जाता है कि अमेरिका में पहली बार Deep State का इस्तेमाल हुआ था. दरअसल, साल 1962 में क्यूबन मिसाइल क्राइसिस के समय सभी को उम्मीद थी कि जॉन एफ कैनेडी क्यूबा पर बड़े और सीधे हमले का आदेश देंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं. वह हमले के आदेश के बजाए एक कॉकटेल पार्टी में गए, जहां पर कई शक्तिशाली लोगे थे, जो सत्ता में न होकर भी सरकार चलाने या गिराने की शक्ति रखते थे. यहीं पर जॉन एफ कैनेडी ने CIA के साथ चर्चा कर क्यूबा पर पूरे हमले की बजाए उसकी नाकाबंदी कर दी.
अमेरिकी नौसेना ने रूसी जहाजों को क्यूबा तक पहुंचने से रोकने के लिए समुद्र पर कब्जा कर लिया और बाद में अमेरिका और रूस दोनों को पीछे हटना पड़ा. इस दौरान डीप स्टेट ने जनता को यह विश्वास दिलाया कि सब काबू में है. बाद में जॉन एफ कैनेडी की हत्या कर दी गई. दावा किया जाता है कि अमेरिका और क्यूबा के कई माफिया सरगनाओं ने मिलकर इस हत्या की साजिश रची थी. दरअसल, जॉन एफ कैनेडी के फैसले से क्यूबा के साथ अमेरिका के संबंध में कड़वाहट की वजह से माफियाओं को काफी नुकसान हुआ था
डीप स्टेट कब हुआ था बड़ा खुलासा?
कई मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 11 सितंबर 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले ने CIA के सीक्रेट इंटेलिजेंस ऑफिसर्स और ब्यूरोक्रेट्स फिर से पहले की तरह करने की अनुमति दे दी गई. ऐसे में Deep State एक बार फिर से दोबारा से शक्तिशाली हो गया था. अमेरिकी-रूसी जासूस एडवर्ड स्नोडेन ने साल 2013 में बताया था कि CIA और NSA के ऑफिसर्स र्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल, ब्राजील के राष्ट्रपति समेत दुनिया के कई बड़े नेताओं की जासूसी कर रहे थे.
सारी बड़ी टेक कंपनियां CIA को यूजर्स का डाटा शेयर कर रही थी. एडवर्ड स्नोडेन के खुलासे ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी. एडवर्ड स्नोडेन ने दावा किया अमेरिका की इंटेलिजेंस एजेंसियां दुनियाभर में अपने जियोपॉलिटिकल एजेंडा को पूरा कर रही हैं. दावा यहां तक है कि दुनियाभर में कई जगहों पर युद्ध कराकर डीप स्टेट से जुड़ी लॉबी खूब सारा पैसा कमाती है.
भारत में क्या है डीप स्टेट को लेकर राय?
जॉन एफ कैनेडी की हत्या और एडवर्ड स्नोडेन के खुलासे ने साफ कर दिया कि Deep State सरकार नहीं, बल्कि कोई खुफिया तंत्र है, जो सरकार से भी कहीं ज्यादा ताकतवर है. कई जानकारों का मानना है कि डीप स्टेट लोकतांत्रिक सरकार के साथ सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखता है. कई जियोपॉलिटिकल एक्सपर्ट ने हालिया घटनाक्रमों को देखते हुए कहा था कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और सीरिया में सत्ता परिवर्तन के पीछे बड़े पैमाने पर डीप स्टेट का हाथ है.
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अगर भारत की बात करें तो BJP यानी भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने कई बार दावा किया है कि डीप स्टेट अपनी साजिशों में लगा हुआ है. यहां तक की अमेरिकी कारोबारी जार्ज सोरोस का नाम भी इस मामले में सामने आ चुका है, जो गुप्त तरीके से कई देशों समेत भारत में अस्थिरता लाने के लिए फंडिंग कर रहा है. डीप स्टेट देशों में होने वाले घरेलू चुनावों में दखल देती हैं. कुछ दिनों पहले उपराष्ट्रपति ने राज्य सभा में इस बात का जिक्र किया था कि हम किसी भी कीमत पर भारत के लोकतंत्र को डीप स्टेट के हाथों खत्म होने नहीं देंगे.
"Hon'ble Members,
— Vice-President of India (@VPIndia) December 5, 2024
We cannot allow the largest democracy to be made dysfunctional by deep state anywhere else. This House should be united in neutralising any trend, any initiative that is pernicious and dangerous to our sovereignty.
I will give time. This is a very serious… pic.twitter.com/OHNcDYCxNf
अमेरिकी शॉर्ट-सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने 15 जनवरी को अपनी कंपनी को बंद करने का एलान कर दिया. लेकिन हिंडनबर्ग रिसर्च के तार कहीं न कहीं डीप स्टेट से जुड़ते हुए देखे गए थे. हिंडनबर्ग रिसर्च पर भारत और चीन जैसे कई विकासशील देशों में व्यवसायियों पर बड़े पैमाने पर अकाउंटिंग धोखाधड़ी, स्टॉक मूल्य में हेरफेर और उन देशों के स्टॉक मार्केट को अस्थिर करने का आरोप लगा. साथ ही इससे होने वाले टैक्स हेवन का फायदा उठाया. कई मीडिया रिपोर्ट में इसे डीप स्टेट से जोड़कर बताया.
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Conclusion Of Deep State
कई जियोपॉलिटल जानकारों का मानना है कि Deep State अमेरिकन इंटेलिजेंस एजेंसी का नेटवर्क है, जिस में CIA, FBI, NSA शामिल हैं. दावा यहां तक किया जाता है कि अमेरिका की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार से भी ज्यादा शक्ति डीप स्टेट के पास है और दुनियाभर में जो भी हो रहा है यानी सरकारें गिर रही हैं, युद्ध हो रहे हैं उनके पीछे अमेरिकी सरकार से ज्यादा डीप स्टेट का एजेंडा छिपा हुआ है.
डीप स्टेट को लेकर भारतीय जानकारों के अलग-अलग राय हैं. नीरज कौशल ने अपने एक लेख में कहा कि डीप स्टेट की षड्यंत्र हास्यास्पद है. साथ ही उन्होंने इसे सिरे से खारिज किया. भारत में डीप स्टेट को लेकर उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच आपसी सहयोग एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए हैं.
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हरीश चंद्र बर्णवाल का दावा है कि डीप स्टेट दो विचारधाराओं का संघर्ष दिखाता है. इसमें लेफ्ट लिबरल विंग और राइट विंग की विचारधारा लड़ाई शामिल है. उन्होंने कहा कि अमेरिका में लंबे समय से लेफ्ट लिबरल के सत्ता में रहने से लेफ्ट विचारधारा का ईकोसिस्टम ही अमेरिका का डीप स्टेट है, जो मीडिया, न्यायपालिका, सरकारी संस्था और व्यापार समूह है. यह समूह अमेरिका समेत पूरे विश्व में लेफ्ट लिबरल विचारधारा के लिए जमीन तैयार करने का काम करता है.
दावा यह भी है कि रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने डीप स्टेट के चेहरे को बेनकाब कर दिया. अब ऐसे में नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संकेत दे दिया है कि वह पदभार ग्रहण करने के बाद ही डीप स्टेट कहे जाने वाले सिस्टम को ध्वस्त करने की योजना पर काम करना शुरू कर देंगे.
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