Bangladesh Violence: शेख हसीना (Sheikh Hasina) को अपनी सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध के बाद प्रधानमंत्री पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. हालांकि, बांग्लादेश में इस तरह की घटना पहली बार नहीं है.
05 August, 2024
Bangladesh Violence: बांग्लादेश इस समय हिंसा अपने चरम पर है. सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ छात्रों और विपक्षी दलों का आंदोलन उग्र रूप ले चुका है. स्वतंत्रता सेनानी परिवारों के बच्चों को आरक्षण के खिलाफ भड़की हिंसा में अब तक 300 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. सेना के अल्टीमेटम बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) ने इस्तीफा दे दिया. इसके साथ ही देश भी छोड़ दिया है. सेना प्रमुख ने उनके इस्तीफे की पुष्टि कर दी है. हालांकि, बांग्लादेश में इस तरह की घटना पहली बार नहीं है.
हिंसा और तख्तापलट का लंबा इतिहास
बांग्लादेश में हिंसा और तख्तापलट का लंबा इतिहास रहा है. बांग्लादेश में पहली बार तख्तापलट साल 1975 में हुआ था. साल 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद बांग्लादेश एक स्वतंत्र देश बना. शेख हसीना के पिता और प्रथम प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर रहमान ने देश बनते ही सत्ता पर बैठे. बाद में 1975 में एक सैन्य अभियान में शेख मुजीबुर रहमान की हत्या कर तख्तापलट किया गया. इसके बाद साल 1990 तक देश में सैन्य शासन कायम रहा. इसके बाद साल 1990 तक लोकतंत्र धीरे-धीरे बहाल हो गया था.
2009 में फिर से भड़की हिंसा
इसके बाद साल 2009 में एक बार फिर से हिंसा भड़क गई. बांग्लादेश राइफल्स (विघटित) के अधिकारियों ने विद्रोह कर दिया. विद्रोह में बांग्लादेश राइफल्स के प्रमुख सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों और सेना के परिवारों की हत्या कर दी गई. दरअसल, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी के शासन के दौरान कई जमात सदस्यों को बांग्लादेश राइफल्स में रैंक-एंड-फाइल कर्मियों के रूप में भर्ती किया गया था. दावा किया गया की कथित तौर पर दंगे भड़काने के लिए पाकिस्तान की ओर उनका इस्तेमाल किया गया था. हालांकि सेना के कई जवानों को कई तरह की अपने वेतन संबंधी दिक्कतों का सामना कर पड़ रहा था. वह वार्षिक समारोह के दौरान के अपनी शिकायत लेकर उच्च अधिकारियों के पास पहुंचे.
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भारत ने 1 हजार सैनिकों को किया तैनात
इसी दौरान एक सदस्य ने अपनी बंदूक उठाई और वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों पर तान दिया. फिर क्या था अधिकारियों का सबसे भयानक नरसंहार शुरू हो गया. सेना के इस कदम से प्रधानमंत्री शेख हसीना डर गई. उन्होंने भारत से मदद मांगी. पड़ोसी प्रथम की नीति के चलते भारत को उनके पक्ष में हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य होना पड़ा. भारतीय सेना ने तीन तरफ से पश्चिम बंगाल के कलाईकुंडा, जोरहाट और अगरतला की सीमाओं पर तैनात थे. भारत ने 1 हजार से ज्यादा सैनिकों को तैनात किया था. हालांकि, भारतीय सेना को ऑपरेशन शुरू करने का आदेश नहीं मिला. वहीं शेख हसीना अपनी बात पर अड़ी रही और सभी की बात सुनी. नजीतन विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई की. लगभग 200 विद्रोहियों को गिरफ्तार कर लिया गया और बांग्लादेश राइफल्स को भंग कर दिया गया.
अब्दुल कादिर मुल्ला की फांसी से दहला देश
साल 2013 में एक बार फिर से हिंसा भड़क गई. दरअसल, जमात-ए-इस्लामी के नेता अब्दुल कादिर मुल्ला को 13 दिसंबर को फांसी दे दी गई. इसके बाद बड़े पैमाने पर हिंसा फैल गई. अवामी लीग पार्टी के शासन में राजनीतिक हिंसा में लगभग 100 लोग मारे गए. दरअसल, बांग्लादेश में 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान मानवता विरोधी अपराध के लिए जमात-ए-इस्लामी का नेता अब्दुल कादिर मुल्ला को दोषी ठहराया गया था. 65 साल का अब्दुल कादिर मुल्ला मीरपुर के कसाई के तौर पर बदनाम था. बांग्लादेश में इसके अलावा कई बार दंगे भड़क चुके हैं. कई लोगों की मौत भी हो चुकी है.
आतंकी समूह इस्लामिक स्टेट का हमला
इसके अलावा साल 2016 में आतंकी समूह इस्लामिक स्टेट ने बांग्लादेश की राजधानी ढाका के राजनयिक क्षेत्र में एक महंगे रेस्तरां पर हमला किया. हमले में 20 बंधकों की मौत हो गई. मारे गए बंधकों में अधिकांश विदेशी थे. मृतकों में इटली, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के नागरिक शामिल थे. 12 घंटे तक आंतकी हमला करते रहे. फिर सुरक्षा बलों ने किसी तरह हालात को काबू किया और सभी आतंकी मारे गए. इसके अलावा साल 2021 में बांग्लादेशी चरमपंथियों ने अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाया. हमले में कम से कम छह लोगों की हत्या कर दी गई. उनके घरों को जला दिया गया.
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