Home Entertainment Suchitra Sen Birth Anniversary: 1975 में आई थी एक ‘आंधी’ जिससे इंदिरा गांधी को था एतराज, जानें रोमा से सुचित्रा सेन बनने की कहानी

Suchitra Sen Birth Anniversary: 1975 में आई थी एक ‘आंधी’ जिससे इंदिरा गांधी को था एतराज, जानें रोमा से सुचित्रा सेन बनने की कहानी

by Preeti Pal
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Suchitra Sen Birth Anniversary: 1975 में आई थी एक आंधी जिससे इंदिरा गांधी को था एतराज, जानें रोमा से सुचित्रा सेन बनने की कहानी

Suchitra Sen Birth Anniversary: सुचित्रा सेन हिंदी सिनेमा का वो नगीना थीं जिसकी चमक आज भी बरकरार है. यही वजह है उन्हें ‘महानायिका’ भी कहा जाता था. आज (06 अप्रैल) को उनका जन्मदिन है. इस मौके पर जानते हैं सुचित्रा के बारे में दिलचस्प बातें.

06 April, 2024

Suchitra Sen Birth Anniversary: एक वक्त था जब हिंदी सिनेमा में सुचित्रा सेन जैसा रुतबा किसी का नहीं था. लोग उनकी अदाकारी और खूबसूरती की तारीफ करते नहीं थकते थे. दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड को हिंदी सिनेमा का सबसे बड़ा अवॉर्ड माना जाता है, लेकिन सुचित्रा ने इसे लेने से इन्कार कर दिया था. बात सिर्फ इतनी थी कि सुचित्रा सेन को अवॉर्ड लेने के लिए इवेंट में जाना पड़ता जो उन्हें मंजूर नहीं था. सुचित्रा सेन का जन्म 6 अप्रैल, 1931 को बंगाल के पबना जिले में हुआ था. कम ही लोग जानते हैं कि उनका असली नाम रोमा दासगुप्ता था. हालांकि, जब वो पहली बार स्क्रीन टेस्ट के लिए आईं तो निर्देशक नितीश राय ने इसे बदलकर सुचित्रा सेन कर दिया.

15 साल की उम्र में हुई शादी

रोमा (सुचित्रा सेन) के पिता करुणामॉय दासगुप्ता स्कूल के हेडमास्टर थे. सुचित्रा ने इंग्लैड जाकर समरविले कॉलेज ऑफ ऑक्सफोर्ड से ग्रेजुएशन की थी. 15 साल की उम्र में रोमा की शादी हो गई थी. पिता ने उनकी शादी बिजनेसमैन आदिनाथ सेन के बेटे दीबानाथ सेन से करवा दी. वो तब ऐसी पहली एक्ट्रेस थीं, जिन्होंने शादी और मां बनने के बाद फिल्मों में अपना करियर बनाया. इसमें पति और ससुर का उन्हें साथ मिला. 50 का दशक सुचित्रा के करियर का गोल्डन पीरियड था, मगर इसी दौरान सुचित्रा और दीबानाथ के रिश्ते में खटास आने लगी और उनके पति अमेरिका में रहने लगे. 1969 में दीबानाथ की एक एक्सीडेंट में मौत हो गई. इसके बाद सुचित्रा ने कभी दूसरी शादी के बारे में नहीं सोचा. उन्होंने बेटी मुनमुन की परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी. मुनमुन भी अपने दौर की बड़ी एक्ट्रेस बनीं.

पहली हिंदी फिल्म

बंगाली फिल्म ‘शेष कोथाई’ (1952) के साथ सुचित्रा सेन ने अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन ये मूवी कभी रिलीज नहीं हुई. इसके बाद उन्हें बंगाली फिल्मों के सुपरस्टार उत्तम कुमार का ऐसा साथ मिला कि दोनों ने अगले 20 सालों में कई हिट फिल्में दीं. सुचित्रा ने बिमल राय की हिंदी फिल्म ‘देवदास’ (1955) में पारो का रोल निभाया. हालांकि, बिमल राय इस किरदार के लिए मीना कुमारी या मधुबाला को साइन करना चाहते थे, लेकिन ऐसा हो ना सका.

इंदिरा गांधी को लगा था डर

साल 1975 में एक ऐसी ‘आंधी’ आई कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी डर गईं. दरअसल, साल 1975 में सुचित्रा सेन और संजीव कुमार की फिल्म ‘आंधी’ रिलीज हुई थी. उस वक्त देश में इमरजेंसी का दौर था. मूवी में सुचित्रा के किरदार को लोगों ने इंदिरा गांधी से जोड़ दिया. विवाद इतना बढ़ गया कि फिल्म पर बैन लगा दिया गया. माहौल ऐसा हो गया कि जब इमजेंसी हटी तभी फिल्म को रिलीज किया गया. इसके बाद समीक्षकों ने कहना शुरू कर दिया कि सुचित्रा ने इंदिरा गांधी को डरा दिया. फिल्म की कहानी एक ऐसी महिला राजनेता पर थी, जिसके संबंध फाइव स्टार होटल के मालिक के साथ होते हैं.

खूबसूरती देख फिल्म में किया गया कास्ट

पति की मदद से 1952 में शेष कोठाय नाम की बंगाली फिल्म ‘शेष कोठाय’ में सुचित्रा सेन को गाने का मौका मिला, मगर शूटिंग पूरी होने से पहले ही हीरोइन फिल्म छोड़कर चली गई. फिल्ममेकर सुकमार दासगुप्ता ने सुचित्रा का हुनर और खूबसूरती देखकर स्क्रीन टेस्ट लिया, जिसके बाद उन्हें फिल्म 7 नंबर कोयदी के लिए साइन कर लिया गया. इस फिल्म की रिलीज से पहले ही सुचित्रा को और 3 बंगाली फिल्मों (सारे चौतोर, कजोरी, भगवान श्री कृष्णा) के लिए साइन कर लिया गया था. उत्तम कुमार के साथ फिल्म शारे चोतोर हिट होते ही सुचित्रा बंगाली फिल्मों की बड़ी एक्ट्रेसेस में शामिल हो गईं.

नॉमिनेशन से बाहर

देवदास फिल्म 30 दिसंबर, 1955 को रिलीज हुई और पर्दे पर छा गई. फिल्म के कलाकार दिलीप कुमार को बेस्ट एक्टर का और वैजयंतीमाला को बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवॉर्ड दिया गया, लेकिन चौथे फिल्मफेयर अवॉर्ड में सुचित्रा का नाम नॉमिनेशन तक में नहीं था. दूसरी तरह वैजयंतीमाला ने इस अवॉर्ड को ये कहकर ठुकरा दिया कि वो इस फिल्म में सपोर्टिंग रोल में नहीं थीं.

कदमों में बैठे राज कपूर

मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि एक बार राज कपूर सुचित्रा सेन के पास फिल्म का ऑफर लेकर उनके घर पहुंचे थे. सुचित्रा जैसे ही सोफे पर बैठीं तो उनके कदमों के पास बैठकर राज कपूर उन्हें फूल देने लगे, ये देखकर एक्ट्रेस ने फिल्म का ऑफर रिजेक्ट कर दिया. सुचित्रा को राज कपूर का पैरों में बैठना और उनका तरीका जरा भी पसंद नहीं आया. इस बात का जिक्र सुचित्रा की बायोग्राफी आमर बोंधु सुचित्रा सेन में भी किया गया है, जिसे अमिताभ चौधरी ने लिखा है. सुपरस्टार दिलीप कुमार भी सुचित्रा की तारीफ किया करते थे.

एक कमरे को बनाया पूरी दुनिया

सुचित्रा सेन की बंगाली फिल्म प्रनय पाशा साल 1978 में रिलीज हुई, लेकिन इसका फ्लॉप होना उन्हें बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने फिल्मों से संन्यास ले लिया. हालांकि, तब सुचित्रा राजेश खन्ना के साथ फिल्म ‘नाती बिनोदिनी’ की शूटिंग कर रही थीं. इस फिल्म को भी उन्होंने अधूरे में ही छोड़ दिया. इसके बाद सुचित्रा रामकृष्ण मिशन आश्रम से जुड़ गईं. कुछ ही दिनों नें उन्होंने एक कमरे को ही अपनी पूरी दुनिया बना लिया. इस दौरान भी सुचित्रा को कई फिल्मों के ऑफर मिले लेकिन उन्होंने सारे ठुकरा दिए. लोगों के कई खत भी आया करते थे लेकिन सुचित्रा ने उन्हें कभी खोला ही नहीं. उन्हें अकेलापन रास आने लगा था. इसी दौरान उन्हें दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड दिया जाना था, लेकिन उन्होंने ये कहकर इसे ठुकरा दिया कि अगर अवॉर्ड देना है तो घर आकर दो, मैं लोगों के बीच नहीं आऊंगी’.

दुनिया को कहा अलविदा

सुचित्रा सेन को लंग इन्फेक्शन हुआ और उन्हें 24 दिसंबर 2013 को हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया. फिर 17 जनवरी 2014 को हार्ट अटैक के कारण सुचित्रा का अस्पताल में ही निधन हो गया. 82 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांसें लीं.

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