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Shyam Benegal: ‘अंकुर’ से लेकर ‘मंथन’तक… श्याम बेनेगल ने सार्थक सिनेमा को रखा जिंदा

by Divyansh Sharma
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Introduction

Shyam Benegal: श्याम बेनेगल की फिल्में इंसानियत को अपने मूल स्वरूप में तलाशती हैं. दिग्गज फिल्म निर्माता सत्यजीत रे के निधन के बाद श्याम बेनेगल ने उनकी विरासत को संभाला है. यह शब्द हैं भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के, जिन्होंने श्याम बेनेगल की तारीफ में कही थी. वहीं, हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के एक इंटरव्यू में श्याम बेनेगल ने भी बड़ी कमाल की बात कही थी. इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि मैंने हमेशा महसूस किया है कि भारतीय ग्रामीण इलाकों को भारतीय स्क्रीन पर कभी भी ठीक से प्रस्तुत नहीं किया गया, लेकिन अगर आप वास्तव में भारतीय मानस को समझना चाहते हैं, तो आपको ग्रामीण भारत को देखना होगा. हालांकि, यह सच था और उनकी फिल्मों, डॉक्यूमेंट्री और टेलीविजन शो में यह देखने को मिला भी.

‘भारत एक खोज’ और ‘संविधान’ जैसे अहम और ज्वलंत मुद्दों को समेट कर उन्होंने फिल्में, डॉक्यूमेंट्री और टेलीविजन शो बनाए, जिन्होंने भारतीय सिनेमा के इतिहास में नई दिशा को जन्म दिया. श्याम बेनेगल को लेकर एक बात मशहूर है कि वह समानांतर सिनेमा के अग्रणी थे. उनकी कहानियों ने देश की सिनेमाई पहचान को एक नया आकार दिया. श्याम बेनेगल ने ही शबामा आजमी और स्मिता पाटिल जैसी शानदार एक्ट्रेसेज को बॉलीवुड इंडस्ट्री में एक खास मुकाम दिलाया. श्याम बेनेगल के प्रतिभा की पहचान उनके पहली ही फिल्म से देखने को मिली. उनकी पहली फिल्म ‘अंकुर’ ने रिलीज होने के बाद ही 40 से ज्यादा अवॉर्ड अपने नाम किए. इनमें से 3 राष्ट्रीय पुरस्कार भी शामिल हैं.

Table Of Content

  • अंकुर (1974)
  • मंथन (1976)
  • भूमिका (1977)
  • कलयुग (1981)
  • मंडी (1983)
  • भारत एक खोज (1988)
  • सूरज का सातवां घोड़ा (1992)
  • सरदारी बेगम (1996)
  • जुबैदा (2001)
  • नेताजी सुभाष चंद्र बोस: द फॉरगॉटन हीरो (2005)
  • मुजीब: द मेकिंग ऑफ ए नेशन (2023)

बहुत दुख की बात है कि सार्थक सिनेमा का प्रमुख चेहरा अब हमारे बीच नहीं है. श्याम बेनेगल अपने पीछे रोती-बिलखती बीवी नीरा बेनेगल, इकलौती बेटी पिया और अपनी फिल्मों के जरिए लोगों के दिलों पर अमिट छाप हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ गए. उनकी बेटी पिया ने श्याम बेनेगल के निधन की जानकारी दी. पिया ने बताया कि वह लंबे समय से किडनी की बीमारी से पीड़ित थे और उन्हें बार-बार अस्पताल जा कर डायलिसिस कराने की जरूरत पड़ती थी. उनका निधन सोमवार की शाम 6.38 बजे हुआ. इस खबर में हम सामानांतर सिनेमा के अग्रणी और भारत में 8 बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने वाले श्याम बेनेगल की ओर से बनाई गई उन फिल्मों का जिक्र करेंगे, जिन्होंने सिर्फ श्याम बेनेगल को ही नहीं, बल्कि सामानांतर सिनेमा को भी नई पहचान दी.

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अंकुर (1974)

भारतीय सिनेमा में यह दौर था 1970 का दशक का. हिंदी सिनेमा में गीत-संगीत और रोमांटिक कहानियों के एक्टर्स का जमाना अब मारधाड़ और एक्शन की तरफ बढ़ रहा था. एंग्री यंग मैन के नाम से मशहूर अमिताभ बच्चन सिनेमा प्रेमियों के दिलों-दिमाग पर छा चुके थे. इस बीच श्याम बेनेगल ने एक सामान्य सी स्टोरी लिखी. उन्होंने शबाना आजमी और अनंत नाग के साथ ‘अंकुर’ फिल्म को पर्दे पर उतारा. दोनों की यह पहली फिल्म थी. ‘अंकुर’ फिल्म हैदराबाद की एक सच्ची घटना पर आधारित मानी जाती है.

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इस फिल्म को पूरी तरह से लोकेशन पर ही फिल्माया गया था. फिल्म में सामाजिक ड्रामा दिखाया गया है, जिसमें एक अमीर जमींदार का बेटा सूर्या (अनंत नाग) अपने पिता की विरासत को संभालता है. अपनी तय शादी में देरी के बीच वह उनके घर में काम करने वाली दलित महिला लक्ष्मी (शबाना आजमी) से साथ संबंध बना लेता है. लक्ष्मी की शादी एक मूक-बधिर कुम्हार से हुई है. इसके बाद उसके जीवन में कठिनाइयों का दौर शुरू हो जाता है. इस फिल्म ने सामंतवाद और यौन उत्पीड़न जैसे ज्वलंत मुद्दों को दुनिया के सामने रखा था. श्याम बेनेगल की पहली फिल्म को 40 से ज्यादा अवॉर्ड मिले. इस फिल्म को 24वें बर्लिन अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में गोल्डन बियर के लिए नामांकित किया गया था.

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मंथन (1976)

‘मंथन’ फिल्म बनाने के लिए गुजरात के पांच लाख डेयरी किसानों ने 2-2 रुपये का योगदान दिया. 134 मिनट की यह फिल्म वर्गीस कुरियन के अग्रणी दूध सहकारी आंदोलन से प्रेरित थी. ‘मंथन’ देश की पहली क्राउड-फंडेड फिल्म है और रिलीज के 48 साल बाद इसी साल इसे प्रतिष्ठित कान फिल्म फेस्टिवल में दिखाया भी गया. इस फिल्म को स्टैंडिंग ओवेशन तक मिला. यह उनकी फिल्मों का जादू था, जो अभी भी लोगों के सिर पर चढ़ के बोल रहा है.

इस फिल्म के लिए संयुक्त राष्ट्र ने श्याम बेनेगल और वर्गीज कुरियन को खास तौर सम्मानित करने के लिए बुलाया था. इस फिल्म में भी जाति के नाम पर भेदभाव को प्रमुखता से दिखाया गया है. नसीरुद्दीन शाह, अमरीश पुरी, गिरीश कर्नाड और स्मिता पाटिल जैसे सितारों से सजी इस फिल्म को लोगों ने जमकर सराहा. इस फिल्म को साल 1977 में हिंदी की सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था. इसके साथ ही इस फिल्म के शीर्षक गीत ‘मेरो गाम कथा परे’ के लिए सिंगर प्रीति सागर को भी फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था.

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भूमिका (1977)

70 के दशक में हिंदी सिनेमा में पुरुषों का वर्चस्व अपने पीक पर था, उस समय श्याम बेनेगल महिलाओं की स्थिति पर कहानी लिख रहे थे. उन्होंने मराठी अभिनेत्री हंसा वाडकर के जीवन से प्रेरित एक फिल्म बनाई. इस फिल्म का नाम था ‘भूमिका’. इस फिल्म में मराठी अभिनेत्री के सामाजिक अपेक्षाओं और व्यक्तिगत उथल-पुथल को दिखाया है, जो अपने लिए स्वतंत्रता की खोज करती है. इस फिल्म में स्मिता पाटिल , अमोल पालेकर , अनंत नाग , नसीरुद्दीन शाह और अमरीश पुरी मुख्य किरदार में दिखाए गए हैं. इसमें दिखाया गया है कि कैसे पुरुष उसकी जिंदगी में आते हैं और इस कारण उसकी जिंदगी में किस तरह के बदलाव आते हैं. ‘भूमिका’ को फिल्म समीक्षकों ने खूब सराहा. इसी फिल्म से स्मिता पाटिल के दमदार अभिनय के लिए जाना गया. साथ ही इस फिल्म ने फिल्म और फिल्मफेयर समेत कई अंतराराष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार अपने नाम किए.

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कलयुग (1981)

राज बब्बर, शशि कपूर, सुप्रिया पाठक, अनंत नाग, रेखा, कुलभूषण खरबंदा, सुषमा सेठ जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ श्याम बेनेगल ने ‘कलयुग’ फिल्म का निर्माण किया. इस फिल्म में कलयुगी परिवार के बीच कारोबार को लेकर होने लेकर बढ़ते विवाद और दुश्मनी को दिखाया गया था. इस फिल्म के जरिए श्याम बेनेगल ने पूंजीवाद और मानवीय कमजोरी की आलोचना को दर्शकों के सामने रखा. ‘कलयुग’ को फिल्मफेयर का बेस्ट फिल्म अवार्ड मिला. इसके साथ ही ‘कलयुग’ उन तीन भारतीय फिल्मों में से एक थी जिन्हें अकादमी पुरस्कारों में नामित किया गया था.

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मंडी (1983)

हिंदी सिनेमा में तवायफों के जीवन को हमेशा ही बहुत ग्लैमराइज तरीके से दिखाया गया था. इस बीच श्याम बेनेगल ने साल 1983 में ‘मंडी’ फिल्म बनाकर तवायफों के जीवन के सच को दिखाया. इस फिल्म में शबाना आजमी, कुलभूषण खरबंदा, सईद जाफरी, नसीरुद्दीन शाह, और ओम पुरी का जबरदस्त अभिनय देखने को मिला. वेश्यालय पर आधारित इस फिल्म में समाज के कई चेहरों को उजागर करती है. श्याम बेनेगल की इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया था.

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भारत एक खोज (1988)

क्या आप एक टेलीविजन सीरीज में भारत के पांच हजार साल के इतिहास को देख सकते हैं, इसका जबाव है हां. 53 एपिसोड की भारतीय टेलीविजन सीरीज का नाम है ‘भारत एक खोज’. यह श्याम बेनेगल ने भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की किताब ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ पर आधारित है. इस किताब में जवाहरलाल नेहरू ने भारत के पांच हजार साल के इतिहास को लिखा और इसे टेलीविजन पर श्याम बेनेगल ने उतारा. ‘भारत एक खोज’ जवाहरलाल नेहरू की जन्म दिवस के दिन यानी 14 नवंबर 1988 को दूरदर्शन चैनल पर ऑन एयर हुआ था. इसमें सलीम घोष ने कृष्ण, राम और टीपू सुल्तान, ओम पुरी ने सम्राट अशोक, दुर्योधन और औरंगजेब का रोल किया था.

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सूरज का सातवां घोड़ा (1992)

धर्मवीर भारती के उपन्यास ‘द सन्स सेवेंथ हॉर्स’ पर आधारित इस फिल्म की कहानी भी श्याम बेनेगल की अन्य फिल्मों की तरह पारंपरिक सिनेमाई संरचनाओं को चुनौती दी. कमर्शियल फिल्मों के इतर इस फिल्म में रजित कपूर, रघुवीर यादव, राजेश्वरी सचदेव, अमरीश पुरी, पल्लवी जोशी, नीना गुप्ता जैसे कलाकारों ने काल किया. श्याम बेनेगल के निर्देशन में बनी इस फिल्म ने साल 1993 में हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता था. फिल्म में आत्म-चिंतनशील शैली की है और इसमें कहानीकार मानेक मुल्ला अपने दोस्तों को तीन महिलाओं की तीन कहानियां सुनाता है. तीनों कहानियां एक ही कहानी के तीन अलग-अलग पहलू हैं. इस कहानी में बताया गया है कि सूर्य के रथ को खींचने वाले सात घोड़ों की एक निर्धारित भूमिका तय होती है, लेकिन जो सबसे कमजोर माना जाता है, वही भविष्य का प्रतिनिधित्व करता है. .यह वही घोड़ा है जो लोगों को जीने की उम्मीद देता है.

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सरदारी बेगम (1996)

‘सरदारी बेगम’ फिल्म के जरिए भी श्याम बेनेगल ने ठुमरी गायिका के जीवन को दिखाया है. फिल्म में सरदारी बेगम नाम की एक शास्त्रीय गायिका सामाजिक बंधनों और व्यक्तिगत आकांक्षाओं से जूझती है. यह फिल्म पितृसत्तात्मक समाज में अपनी अलग पहचान के लिए संघर्ष करती है. इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. फिल्म में किरण खेर , अमरीश पुरी , रजित कपूर और राजेश्वरी सचदेव मुख्य भूमिका में हैं. फिल्म में पारिवारिक रिश्तों, पीढ़ीगत और यौन राजनीति के साथ-साथ सामाजिक रीति-रिवाजों पर भी चोट किया गया है.

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जुबैदा (2001)

‘जुबैदा’ फिल्म एक आजाद ख्यालों से भरी औरत की दुखद कहानी है. इस फिल्म को भी राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था. यह फिल्म प्यार, त्याग और महत्वाकांक्षा की एक मार्मिक खोज है. इसमें करिश्मा कपूर के अलावा मनोज वाजपेयी, सुरेखा सीकरी, रजत कपूर, लिलेट दुबे, अमरीश पुरी, फरीदा जलाल और शक्ति कपूर ने भी काम किया है. इसी फिल्म के लिए ही करिश्मा कपूर को भी फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला.

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस: द फॉरगॉटन हीरो (2005)

श्याम बेनेगल की ओर से निर्देशित इस फिल्म में सचिन खेडेकर, कुलभूषण खरबंदा, राजित कपूर, आरिफ जकारिया और दिव्या दत्ता ने अभिनय किया है. फिल्म की शुरुआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से शुरुआत बोस के इस्तीफे के बाद शुरू होती है. वह इस दौरान अफगानिस्तान के बीहड़ इलाकों को पार करके यूरोप पहुंच जाते हैं. बर्लिन में एडॉल्फ हिटलर के साथ मुलाकात को बड़े ही जीवंत तरीके से दिखाया गया है.

जापान की यात्रा के अलावा बर्मा और भारत में लड़ाई को भी दिखाया गया है. फिल्म लाल किले में भारतीय राष्ट्रीय सेना यानी INA युद्ध नायकों के मुकदमे और भारत की स्वतंत्रता के साथ समाप्त होती है. इस फिल्म को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती के दौरान भारत के 51 वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में भी दिखाया गया था. इसमें सुभाष चंद्र बोस के जीवन से जुड़े विवादों को ऐतिहासिक सटीकता के साथ दर्शाया है. राष्ट्रीय एकता पर सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए नरगिस दत्त पुरस्कार इस फिल्म को दिया गया था.

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मुजीब: द मेकिंग ऑफ ए नेशन (2023)

‘वेलकम टू सज्जनपुर’, ‘वेल डन अब्बा’ के बाद श्याम बेनेगल की अंतिम फिल्म थी ‘मुजीब: द मेकिंग ऑफ ए नेशन’, जो साल 2023 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म में बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की जीवनी को सटीकता से दर्शाया गया है. बता दें कि सैकड़ों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजे गए जाने वाले श्याम बेनेगल को भारत सरकार की ओर से पद्म श्री और पद्म भूषण के अलावा साल 2005 में भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.

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Conclusion

श्याम बेनेगल ने अपनी फिल्मों के लेकर बेहद मुखर थे. उनका पूरा नाम श्याम सुंदर बेनेगल था. उनका जन्म 14 दिसंबर 1934 को हैदराबाद के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. श्याम बेनेगल की फिल्मों से ही नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, अमरीश पुरी, अनंत नाग, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल और सिनेमेटोग्राफर गोविंद निहलानी जैसे कलाकारों को खास पहचान मिली. श्याम बेनेगल ने अपने करियर में 24 फिल्में, 45 डॉक्यूमेंट्री और 15 एड फिल्मों को निर्माण किया था. दर्जनों बेहतरीन फिल्मों को उन्होंने खुद डायरेक्ट भी किया था. श्याम बेनेगल को अब तक 8 नेशनल अवॉर्ड मिले हैं, जो एक रिकॉर्ड है. वह मशहूर एक्टर और फिल्ममेकर गुरुदत्त के चचेरे भाई हैं. श्याम बेनेगल के निधन पर दुख जताने वाले हस्तियों ने कहा है कि वह भारतीय सिनेमा के इतिहास में हमेशा जिंदा रहेंगे.

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