18 February, 2025
Introduction
Chhaava Real Story: एक्शन से भरपूर ऐतिहासिक ड्रामा फिल्म ‘छावा’ बॉक्स ऑफिस पर गदर मचा रही है. इस बीच आपके लिए संभाजी महाराज की असली कहानी लेकर आए हैं जिनका किरदार इस फिल्म में विक्की कौशल ने निभाया है. देखा जाए तो ये फिल्म, ‘जोधा अकबर’, ‘पद्मावत’ और ‘मुगल-ए-आजम’ जैसी फिल्मों का नया वर्जन है. लेकिन इसकी कहानी बिल्कुल नई है. यही वजह है कि विक्की कौशल, रश्मिका मंदाना और अक्षय खन्ना स्टारर फिल्म ‘छावा’ साल 2025 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनकर उभरी है. ‘छावा’ ने पहले वीकेंड में ही 116 करोड़ रुपये से ज्यादा की बंपर कमाई करके मेकर्स को खुश कर दिया. ‘छावा’ ने पहले दिन बॉक्स ऑफिस पर 31 करोड़ रुपये के साथ बंपर ओपनिंग की. दूसरे दिन कमाई में कुछ उछाल के साथ विक्की कौशल की फिल्म ने 37 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया. इसके अलावा रविवार को छावा ने 48 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार किया. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस फिल्म को लोग कितना पसंद कर रहे हैं. ऐसे में अगर आप भी इस एक्शन से भरपूर ऐतिहासिक टुकड़े को देखने के लिए सिनेमाघरों की ओर जा रहे हैं, तो पहले संभाजी महाराज के बारे में कुछ जानकारी ले लीजिए.
Table of Content
- कौन थे संभाजी महाराज?
- कब हुआ संभाजी का जन्म?
- पिता के साथ अच्छे नहीं थे संबंध
- शिवाजी के निधन के बाद खूनी लड़ाई
- मुगलों से आमना-सामना
- खूब लड़े संभाजी
- विश्वासघात ने ली जान
- फिर से जुटे मराठा सैनिक
- छावा का कलेक्शन
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कौन थे संभाजी महाराज?
लक्ष्मण उटेकर के डायरेक्शन में बनी फिल्म ‘छावा’ शिवाजी सावंत के 1980 के मराठी भाषा के उपन्यास पर बेस्ड है. विक्की कौशल ने इस फिल्म में छत्रपति संभाजी महाराज की भूमिका निभाई है, जो मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक थे. संभाजी महाराज के पिता छत्रपति शिवाजी महाराज मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे. शिवाजी महाराज के बारे में ज्यादातर लोगों को जानकारी है. हालांकि, मराठा साम्राज्य की रक्षा के लिए संभाजी महाराज का समर्पण भी उतना ही महत्वपूर्ण है. उन्होंने अपनी मातृभूमि और लोगों की रक्षा के लिए कई प्रयास किए. यही वजह है कि संभाजी महाराज को ‘स्वराज्य रक्षक’ की उपाधि भी दी गई. साल 1689 में संभाजी महाराज के निधन से साथ उनका 9 साल का शासनकाल खत्म हुआ. इन 9 सालों में संभाजी महाराज ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तरह से निभाया. इतना ही नहीं मरते दम तक उन्होंने मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके.
कब हुआ संभाजी का जन्म?
संभाजी महाराज का जन्म 14 मई, 1657 को पुरंदर किले (जो अब पुणे में है) में हुआ था. हालांकि, वहां वो सिर्फ दो सालों के लिए ही रहे. इसके बाद उनकी मां और शिवाजी महाराज की पहली पत्नी महारानी साईबाई का निधन हो गया. उनकी दादी जीजाबाई ने उनके पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी ली. दरबार के शाही रीति-रिवाजों के अनुसार, संभाजी महाराज को युद्ध के मैदान में लड़ना और दरबार की मशीनरी सिखाई गई.
पिता के साथ अच्छे नहीं थे संबंध
शिवाजी के सबसे बड़े बेटे और शाही उत्तराधिकारी होने के बावजूद, संभाजी के अपने पिता के साथ बहुत अच्छे संबंध नहीं थे. मुंबई के राइटर वैभव पुरंदरे की किताब ‘शिवाजी: भारत के महान योद्धा राजा’ में इस बात का जिक्र किया गया है. किताब के अनुसार, संभाजी महल में अपनी जगह से खुश नहीं थे. 21 साल की उम्र में उन्होंने सतारा छोड़कर पेडगांव जाने का फैसला किया, जहां वो अवध के गवर्नर दिलेर खान की कमान के तहत मुगल सेना में शामिल हो गए. अपने विद्रोह के बावजूद, संभाजी महाराज एक साल के अंदर ही यानी 1679 में अपने पिता के दरबार में लौट आए.
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शिवाजी के निधन के बाद खूनी लड़ाई
साल 1680 में शिवाजी महाराज के निधन के बाद सिंहासन के लिए उत्तराधिकार के लिए खूनी लड़ाई शुरू हो गई. वैसे तो संभाजी माराठा शासक के सबसे बड़े बेटे थे, लेकिन उनकी सौतेली मां सोयराबाई चाहती थीं कि उनका 10 साल का बेटा राजाराम प्रथम को छत्रपति शिवाजी महाराज की गद्दी पर बैठाया जाए. 9 महीनों तक इसके लिए संघर्ष चला, जो साल 1681 में संभाजी को छत्रपति का ताज पहनाए जाने के साथ खत्म हुआ. उस वक्त सोयराबाई, राजाराम के साथ-साथ उनके समर्थकों को भी जेल में डाल दिया गया था. कई इतिहासकारों ने इस बात की ओर इशारा किया है कि संभाजी महाराज कूटनीति और सैन्य रणनीति में माहिर थे. हालांकि, वो शिवाजी महाराज से बिल्कुल अलग थे. इतिहासकारों की मानें तो संभाजी अपने शासन में काफी क्रूर और आक्रामक थे.
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मुगलों से आमना-सामना
हम कई फिल्मों में देख चुके हैं और किताबों में भी पढ़ चुके हैं कि मुगल मराठों के सबसे कट्टर दुश्मन थे. दोनों के झगड़े ने तब और भी भयानक रूप ले लिया जब संभाजी और उनकी सेना ने साल 1681 में मुगलों की आर्थिक राजधानी बुरहानपुर पर हमला किया और उसे लूट लिया. उसी साल संभाजी महाराज ने औरंगजेब के बेटे शहजादे अकबर को शरण देने की पेशकश की जो अपने पिता से बगावत कर चुका था. संभाजी महाराज के इस फैसले ने मुगल सम्राट को और ज्यादा गुस्सा दिला दिया. उस वक्त औरंगजेब इतने गुस्से में था कि उसने संभाजी को हराने तक बेताज रहने की कसम खाई थी. खैर. जवाबी कार्रवाई में, औरंगजेब ने 5 लाख लोगों की एक सेना इकट्ठी करके नासिक और बगलाना पर हमला कर दिया. वहां मराठों के कई किले थे जिन पर मुगलों ने कब्जा करने का मिशन बनाया. इसके बाद उन्होंने खिरकी (आज का औरंगाबाद) तक मार्च किया.
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खूब लड़े संभाजी
संभाजी महाराज के शासन में, राज्य ने एबिसिनियन सिद्दी शासकों, पुर्तगालियों और यहां तक कि एक वोडेयार शासक के खिलाफ भी कई बार लड़ाई छिड़ीं. साल 1681 में संभाजी ने मैसूर पर कब्जा करने की कोशिश की, जो उस वक्त वोडेयार राजा चिक्कदेवराज के शासन के अधीन था. हालांकि, मैसूर राजा की सेना और हथियार संभाजी महाराज की सेना पर भारी पड़ गए. यही वजह है कि संभाजी महाराज की सेना को अपने कदम पीछे हटाने पड़े. फिर साल 1683 के अंत में, संभाजी महाराज ने गोवा के पुर्तगालियों के खिलाफ हमला किया. इस लड़ाई में पुर्तगालियों ने लगभग हार मान ली थी. लेकिन जनवरी 1684 में जब मुगल सेना और नौसेना बंदरगाह पर पहुंची, तो मराठों के पास पीछे हटने के अलावा कोई ऑप्शन ही नहीं बचा.
विश्वासघात ने ली जान
एक शासक के रूप में संभाजी महाराज के आखिरी कुछ साल विश्वासघाती लोगों की वजह से बहुत ही कठिन गुजरे. औरंगजेब ने कई मराठा राजाओं को पैसों का लालच दिया और उन्हें अपनी तरफ मिला लिया. भले ही वो संभाजी महाराज के साथ खड़े थे लेकिन काम मुगलों के लिए कर रहे थे. कहा जाता है कि जब औरंगजेब ने संभाजी से उनके सभी मराठा किले, जमीन और धन की मांग की तो मराठा शासक ने इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया. इसलिए मुगल सम्राट ने संभाजी और उनके सहयोगियों को पकड़कर फांसी देने का आदेश दिया. हालांकि, संभाजी महाराज की मौत बेहद ही दर्दनाक तरीके से हुई. मुगलों ने जब संभाजी महाराज और उनके समर्थकों को पकड़ा तो कई दिनों तक उन्हें तड़पाया. इसके बावजूद भी संभाजी डरे नहीं और ना ही मुगलों के सामने झुके. आखिरी दिनों में औरंगजेब ने संभाजी की जुबान कटवाई और उनकी आखें भी फोड़ दी थीं. इतना सब कुछ सहन करने के बाद भी आखिरी वक्त में संभाजी महाराज ने वाकई में शेर के बच्चे की तरह अपनी मौत को गले लगाया.
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फिर से जुटे मराठा सैनिक
हालांकि, संभाजी महाराज के साथ ऐसा करना औरंगजेब की सबसे बड़ी गलती थी. संभाजी की निर्मम हत्या ने मुगलों की जीत का मजा किरकिरा कर दिया. संभाजी की हत्या का बदला लेने के लिए मराठा सैनिक एक बार फिर से इकट्ठा हुए और उन्होंने मुगलों के खिलाफ मुहिम छेड़ी. आज भी भारत के लोग संभाजी महाराज को एक ऐसे शासक के रूप में याद करते हैं जिसने अपने साम्राज्य की अखंडता से समझौता करने के बजाय मौत को लगे लगाना सही समझा. अब जब मराठा साम्राज्य के इस असली हीरो पर फिल्म बनी तो लोग इसे देखने के लिए सिनेमाघरों की ओर खिंचे चले आ रहे हैं.
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छावा का कलेक्शन
मजह 4 दिनों में ही विक्की कौशल, रश्मिका मंदाना और अक्षय खन्ना की ‘छावा’ ने 145 करोड़ रुपये की शानदार कमाई कर ली है. जहां लक्ष्मण उतेकर के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म में विक्की कौशल छत्रपति संभाजी महाराज का किरदार निभाकर लोगों का दिल जीत रहे हैं तो वहीं, रश्मिका मंदाना उनकी पत्नी येसुबाई भोंसले के रोल में नजर आ रही हैं. अक्षय खन्ना के काम की भी जमकर तारीफ हो रही है जो ‘छावा’ में औरंगजेब के रोल में हैं. इनके अलावा फिल्म में दिव्या दत्ता (सोयराबाई), आशुतोष राणा, संतोष जुवेकर, प्रदीप राम सिंह रावत, डायना पेंटी और विनीत कुमार सिंह जैसे कलाकार भी अहम भूमिकाओं में हैं. एआर रहमान का म्यूजिक और इरशाद कामिल के गीतों ने छावा में और जान डाल दी. 14 फरवरी को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज हुई ये फिल्म हर दिन दर्शकों का दिल जीत रही है. 161 मिनट की इस फिल्म में वैसे तो कई आइकॉनिक सीन हैं लेकिन एक सीन लोगों को खूब पसंद आ रहा है जिसमें संभाजी यानी विक्की कौशल गड्ढे में गिर जाते हैं और तब उनका सामना एक शेर से होता है. बिना किसी हथियार के वो शेर पर काबू पाकर उसे मार देते हैं. खैर, 130 करोड़ रुपये के बजट में बनी ये फिल्म अब तक दुनियाभर में 200 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई कर चुकी है.
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