Home Entertainment Suraiya-Dev Anand: आधी रात की वो मुलाकात, जिसके बाद कभी नहीं मिले देव-सुरैया, वो अफसाना जो मजहब की दीवारों में दफ्न हो गया

Suraiya-Dev Anand: आधी रात की वो मुलाकात, जिसके बाद कभी नहीं मिले देव-सुरैया, वो अफसाना जो मजहब की दीवारों में दफ्न हो गया

by Preeti Pal
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suraiya devanand

Suraiya- Dev Anand Love Story: देवानंद और सुरैया की ये प्रेम कहानी हिंदी सिनेमा की दुनिया के सबसे खूबसूरत अफसानों में से एक मानी जाती है. मशहूर एक्ट्रेस और सिंगर सुरैया की 95वीं बर्थ एनिवर्सरी पर आज उसी अफसाने की याद में….

15 June, 2024

Suraiya- Dev Anand Love Story: कहते हैं मुहब्बत में हैसियत कभी दीवार नहीं बनती. देवानंद और सुरैया की प्रेम कहानी में भी कुछ ऐसा ही हुआ. 1940 के दशक में एक्टर बनने का ख्वाब लेकर देवानंद बंबई (तब यही नाम था) पहुंचे, तब सुरैया हिंदी सिनेमा की बड़ी स्टार बन चुकी थीं. उनकी अदाकारी, उनकी गायकी सब कुछ आला दर्जे की.

सुरैया का ये स्टारडम, उनके रुतबे का एहसास देवानंद को लाहौर के दिनों से ही था. सुरैया उनकी पसंदीदा अभिनेत्रियों में से एक बन चुकी थीं. देवानंद अपनी बायोग्राफी ‘Romancing with Life’ में लिखते भी हैं, ‘मेरे जैसे एक साधारण नौजवान के अंदर अगर अदाकारी की चाह पैदा हुई, तो कुछ नायिकाओं की वजह से. सुरैया उनमें से एक थीं’

सुरैया की जिंदगी में बुलंदी का वो दौर

1940 के दशक में सुरैया का ग्लैमर ऐसा था, कि उनको देखते ही फैन्स की धड़कने तेज हो जाया करती थीं. अकेले उनके नाम से ही फिल्में हिट हो जाया करती थीं. सुरैया ने एक तरफ बड़े शानदार किरदार निभाए, तो दूसरी तरफ उनके गाए गीत महफिलों में गूंजा करते थे.

देव साहब उन दिनों को याद करते हुए अपनी बायोग्राफी में लिखते हैं, ‘जब मैं स्टूडियोज में काम की तलाश के लिए जाता था, तब सुरैया का जलवा देखते ही बनता था. अपनी इंपाला कार में सवार होकर जैसे ही स्टूडियो के गेट पर पहुंचतीं, भीड़ उमड़ पड़ती. अंदर सेट पर पहुंचतीं, तो बिलकुल सन्नाटा हो जाता. लोग सुरैया को देखते ही रह जाते. ‘ तब देवनांद के ख्याल में सुरैया से इश्क तो दूर, दोस्ती की बात भी नहीं आती थी. वो थीं ही इतनी बड़ी स्टार.

पहली फिल्म और पहली मोहब्बत

वो साल था 1948 का और फिल्म थी ‘विद्या’. इसी फिल्म पर साथ काम करते-करते सुरैया और देव आनंद एक-दूसरे के करीब आए. देव आनंद अपनी किताब में इस फिल्म के एक सीन का जिक्र करते हैं. वो सीन कुछ ऐसा था- ‘सेट पर कैमरा रोल हुआ, गाना चला और सुरैया ने मुझे पीछे से गले लगाया. उनकी सांसों की गर्माहट मैं साफ महसूस कर सकता था. मैंने उनके हाथों को चूमकर उन्हें फ्लाइंग किस दी. तभी डायरेक्टर ने जोर से कहा- ग्रेट शॉट’.

यही वो सीन था, जहां से शुरू हुआ सुरैया और देव आनंद की मोहब्बत का सिलसिला.

परवान चढ़ी मुहब्बत, नानी बनी विलेन

सुरैया को फूल बहुत पसंद थे. देव साहब इस बात का ख्याल हमेशा रखते थे. वो जब भी सुरैया से मिलते तो फूल देते थे. दूर जाते तो फूलों के साथ खत भेजते थे. दरअसल फिल्म ‘विद्या’ के बाद से ही देवानंद ने अपनी दुनिया का खाका सुरैया के साथ बना लिया था. उन्होंने सुरैया के साथ मिलकर ‘नवकेतन’ नाम की फिल्म प्रोडक्शन कंपनी बनाने की भी ठान ली थी.

इसी बैनर की कल्पना में सुरैया और देवानंद ने 1950 में फिल्म ‘अफसर’ का ताना-बाना बुना था. लेकिन फिल्म के पूरा होते होते देवानंद को सुरैया की तरफ से एक अजीब सी झिझक महसूस होने लगी. देव साहब को ये बात अक्सर खटकती कि उनके साथ हमेशा चहकने वाली सुरैया अचानक खामोश क्यों रहने लगी हैं.

सुरैया की खामोशी

ये खामोशी तब थी, जब दोनों सगाई कर चुके थे. दोनों के रिश्ते पर आनंद परिवार की मुहर भी लग चुकी थी. मगर सुरैया के घरवालों की तरफ से ऐतराज मजहब को लेकर सख्त होने लगा था. ये बात देव आनंद को बहुत बाद में पता चली. एक दिन देव आनंद सुरैया से मिलने घर गए, तब उन्हें देखते ही सुरैया की नानी ने घर का दरवाजा बंद कर दिया.

नानी ने दी सुसाइड की धमकी

नानी के विरोध के बाद भी देवानंद और सुरैया को उम्मीद थी कि फिल्मों में उनकी कामयाबियों की बदौलत हालात बदल जाएंगे. लेकिन सुरैया की नानी पीछे हटने के मूड में कतई नहीं थीं. एक दिन उन्होंने सुरैया और उनकी मां से यहां तक कह दिया- ‘अगर सुरैया देव आनंद से शादी करेगी तो वो जान दे देंगी’.

तब देवानंद ने सुरैया से कोर्ट मैरिज करने के लिए कहा. लेकिन नानी से किया वादा सुरैया को याद आया और उन्होंने इनकार कर दिया. तब देव आनंद ने सुरैया को कायर तक कह दिया था.

सुरैया की छत और देव से वो आखिरी मुलाकात

कोर्ट मैरिज वाली बात के बाद देवानंद और सुरैया के बीच बातचीत बंद हो चुकी थी. दोनों की मुलाकात भी नहीं होती थी, क्योंकि 1951 तक दोनों की साथ वाली सभी फिल्मों की शूटिंग पूरी हो चुकी थी. एक जरिया था फोन. देव साहब सुरैया के घर फोन करते तो नानी उठाती और फोन रख देतीं.
तब सुरैया का हाल जानने के लिए देवानंद ने अपने दोस्त को उनके घर भेजा. लेकिन सुरैया ने उस दोस्त के जरिए ये संदेश भिजवा दिया कि- ‘मैं देव से शादी नहीं कर सकती…’

सुरैया की ‘ना’ पर देवानंद को जैसे यकीन नहीं हुआ. वो एक बार सुरैया से मिलकर अपनी दिल की बात बताना चाहते थे. संयोग से इस बार फोन पर बात सुरैया की मां से हुई. उन्होंने सुरैया से मिलने की इजाजत दे दी. वक्त तय हुआ रात के 11.30 बजे, जब नानी सो चुकी होती हैं.

उस रात जब सुरैया के घर की छत पर पहुंचे देवानंद, तब वो वहां पहले से ही मौजूद थीं. देव साहब अपनी बायोग्राफी में लिखते हैं, ‘मुझे देखते ही सीने से लग गईं सुरैया. हम दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई- बस इसी तरह सीने से लगे आधे घंटे तक रोते रहे.’

‘जाओ देव, मैं तुम्हे भुला दूंगी!’

छत पर वो मुलाकात आधे घंटे की ही मुकर्रर थी. वो पूरा हुआ तो जाते वक्त सुरैया ने देवानंद से कहा- जाओ देव, मैं तुम्हें अपने दिल-ओ-दिमाग से निकाल दूंगी. तब देव आनंद ने कहा- तुम ऐसा नहीं कर पाओगी.

देव आनंद ने सही ही कहा था. सुरैया उन्हें कभी भुला नहीं पाई. एक इंटरव्यू में उन्होंने माना था कि देव से शादी का साहस न कर उन्हेंने गलती की थी. देवानंद ने तो कल्पना कार्तिक के साथ शादी कर अपना घर बसा लिया, लेकिन सुरैया ने ताउम्र शादी नहीं की.

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