Jammu and Kashmir: जम्मू-कश्मीर में रहने वाले एक शख्स बशीर अहमद तेरू दर्द-शिना समुदाय की परंपराओं और संस्कृति को बचाने के मिशन पर लगे हुए हैं. ये समुदाय कश्मीर घाटी के आस-पास के इलाकों में रहता है.
28 June, 2024
Dard-Shina Community: जम्मू कश्मीर के बांदीपोरा जिले में रहने वाले बशीर अहमद तेरू, दर्द-शिना समुदाय की संस्कृति और परंपराओं को बचाने के मिशन पर हैं. वे युवा पीढ़ी को समुदाय की परंपराओं और संस्कृति से रूबरू कराने में जुटे हैं. इसके लिए उन्होंने अपने घर को एक ऐसे म्यूजियम में बदल दिया है जहां दर्द-शिना समुदाय की संस्कृति की चीजों को रखा गया है.
पुरानी चीजों को भूल रहे हैं लोग
दर्द-शिना समुदाय से जुड़ा म्यूजियम बनाने वाले बशीर अहमद तेरू का कहना है कि लोग पुरानी चीजों को भूल रहे हैं. मैं इसे पाप मानता हूं, क्योंकि पुरानी पीढ़ियों के लोगों में सादगी थी, वे प्रेम से भरे हुए थे. साथ ही वे भाईचारे की भावना से एक साथ रहते थे. यही वजह है कि मैंने पुरानी चीजों को इकट्ठा करना शुरू किया. आज मेरे पास 75 सामान हैं, मैंने अपने घर को एक म्यूजियम में बदल दिया है. यहां एक व्यक्ति है जो विजिटर्स को यह चीजें दिखाता है. यहां आकर लोग खुश होते हैं और अपनी पुरानी चीजें यहां रखने के लिए मुझे देते हैं.
आजादी से पहले की चीजें
दर्द-शिना समुदाय मुख्य रूप से कश्मीर घाटी के आसपास के इलाकों में रहता है. इस समुदाय की घटती आबादी को लेकर बशीर अहमद तेरू परेशान रहते हैं. इस बारे में तेरू ने कहा कि मेरे पास (म्यूजियम में) एक घड़ी है जो 74 साल पुरानी है. 88 साल पुराना आभूषण भी है, जिसे महिलाएं पहनती थीं. इसके अलावा लकड़ी से बनी घोड़े की नाल भी है. यहां एक चीज ऐसी भी है जो 1965 की है. इसके अलावा कई चीजें और भी हैं जो 1965, 1961 की हैं.
यहां पर आपको सन 1947 से पहले की चीजें भी आसानी से देखने को मिल जाएंगी. इसके अलावा तेरू, दर्द-शिना समुदाय की शिना भाषा को बचाने की भी कोशिश कर रहे हैं. आपको बता दें कि इस समुदाय का कुछ हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान इलाके में भी रहता है.
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