'आईना देख अपना सा मुंह ले के रह गए...' पढ़ें मिर्जा गालिब के शानदार शेर.
जी ढूंडता है फिर वही फुर्सत कि रात दिन,
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानां किए हुए.
फुर्सत कि रात
करने गए थे उस से तगाफुल का हम गिला,
की एक ही निगाह कि बस खाक हो गए.
खाक हो गए
आईना देख अपना सा मुंह ले के रह गए,
साहब को दिल न देने पे कितना गुरूर था.
आईना देख
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज-ए-गुफ्तुगू क्या है.
अंदाज-ए-गुफ्तुगू
की मिरे कत्ल के बाद उस ने जफा से तौबा,
हाए उस जूद-पशीमां का पशीमां होना.
मिरे कत्ल
होगा कोई ऐसा भी कि 'गालिब' को न जाने,
शाइर तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है.
'गालिब' को न जाने