'आंखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमां हो...' पढ़ें जां निसार अख्तर के लाजवाब शेर.
ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें, इक शख्स की यादों को भुलाने के लिए हैं.
सौ चांद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी, तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी.
आंखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमां हो, नजरों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है.
दिल्ली कहां गईं तिरे कूचों की रौनकें, गलियों से सर झुका के गुजरने लगा हूँ मैं.
फुर्सत-ए-कार फकत चार घड़ी है यारों, ये न सोचो की अभी उम्र पड़ी है यारों.
आंखों में जो भर लोगे तो कांटों से चुभेंगे, ये ख्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं.