'हिन्दू चला गया न मुसलमां चला गया...' पढ़ें जाएं मजाज के शेर.

क्या क्या हुआ है हम से जुनूं में न पूछिए, उलझे कभी जमीं से कभी आसमां से हम.

हम से जुनूं

आंख से आंख जब नहीं मिलती, दिल से दिल हम-कलाम होता है.

दिल से दिल

हिन्दू चला गया न मुसलमां चला गया, इंसां की जुस्तुजू में इक इंसां चला गया.

इंसां की जुस्तुजू

तुम्हीं तो हो जिसे कहती है नाखुदा दुनिया, बचा सको तो बचा लो कि डूबता हूं मैं.

नाखुदा दुनिया

हाए वो वक्त कि जब बे-पिए मद-होशी थी, हाए ये वक्त कि अब पी के भी मख्मूर नहीं.

बे-पिए मद-होशी

 या तो किसी को जुरअत-ए-दीदार ही न हो, या फिर मिरी निगाह से देखा करे कोई.

जुरअत-ए-दीदार