परवीन शाकिर की वह चुनिंदा शायरी जिन्हें पढ़कर मोहब्बत का दर्द छलक जाए
मैं सच कहूंगी मगर फिर भी हार जाऊंगी, वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा.
मैं सच कहूंगी
इतने घने बादल के पीछे,
कितना तन्हा होगा चांद.
तन्हा होगा चांद
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी,
इंतिजार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे.
कुछ सोच कर
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने,
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की.
कैसे कह दूँ
कुछ तो तिरे मौसम ही मुझे रास कम आए,
और कुछ मिरी मिट्टी में बगावत भी बहुत थी.
मिट्टी में बगावत
अब तो इस राह से वो शख्स गुजरता भी नहीं,
अब किस उम्मीद पे दरवाजे से झांके कोई.
वो शख्स गुजरता