मिर्जा गालिब की वह शायरी जिन्हें पढ़कर इश्क हो जाए

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन, दिल के खुश रखने को 'गालिब' ये खयाल अच्छा है.

जन्नत की हक़ीक़त

इश्क ने 'गालिब' निकम्मा कर दिया, वर्ना हम भी आदमी थे काम के.

आदमी थे काम के

मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,   उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले.

जीने और मरने

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.

हजारों ख्वाहिशें

इश्क पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'गालिब', कि लगाए न लगे और बुझाए न बने.

इश्क पर जोर

इशरत-ए-कतरा है दरिया में फना हो जाना, दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना.

दरिया में फना