'गुलजार साहब' की प्रेम और जिंदगी पर पढ़ें शानदार शायरी
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ,
किसी की आँख में हम को भी इंतिजार दिखे.
किसी की आँख
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते,
वक्त की शाख से लम्हे नहीं तोड़ा करते.
शाख से लम्हे
रुके रुके से कदम रुक के बार बार चले,
करार दे के तिरे दर से बे-करार चले.
रुके रुके से कदम
आंखों के पोछने से लगा आग का पता,
यूं चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआं.
छुपता नहीं धुआं
भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आंखों में,
उजाला हो तो हम आंखें झपकते रहते हैं.
हम आंखें झपकते
आंखों से आंसुओं के मरासिम पुराने हैं,
मेहमां ये घर में आएं तो चुभता नहीं धुआं.
आंखों से आंसुओं