'हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में...' गुलजार साहब के पढ़ें 'इश्क' पर सदाबहार शेर.

कितनी लम्बी खामोशी से गुजरा हूं, उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की.

लंबी खामोशी

कोई खामोश जख्म लगती है, जिंदगी एक नज्म लगती है.

खामोश जख्म

हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते, वक्त की शाख से लम्हे नहीं तोड़ा करते.

वक्त की शाख

तुम्हारे ख्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं, सजाएं भेज दो हम ने खताएं भेजी हैं.

तुम्हारे ख्वाब

जिस की आंखों में कटी थीं सदियां, उस ने सदियों की जुदाई दी है.

आंखों में कटी

हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में,   रुक कर अपना ही इंतिजार किया.

इंतिजार किया