फैज अहमद फैज की पढ़ें 'प्रेम' पर सदाबहार शायरी

हम परवरिश-ए-लौह-ओ-कलम करते रहेंगे. जो दिल पे गुजरती है रकम करते रहेंगे.

दिल पे गुजरती

दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया, तुझ से भी दिल-फरेब हैं गम रोजगार के.

दिल-फरेब हैं

ये आरज़ू भी बड़ी चीज है मगर हमदम, विसाल-ए-यार फकत आरज़ू की बात नहीं.  

विसाल-ए-यार फकत

इक फुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन, देखे हैं हम ने हौसले परवरदिगार के.

फुर्सत-ए-गुनाह

तेरे कौल-ओ-करार से पहले, अपने कुछ और भी सहारे थे.

कौल-ओ-करार

न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है. अजीब रंग में अब के बहार गुजरी है.

अजीब रंग में