बशीर बद्र के बेहतरीन शेर
न जी भर के देखा न कुछ बात की,
बड़ी आरजू थी मुलाकात की.
आरजू थी मुलाकात
कुछ तो मजबूरियां रही होंगी,
यूं कोई बेवफा नहीं होता.
कुछ तो मजबूरियां
जिंदगी तू ने मुझे कब्र से कम दी है जमीं,
पांव फैलाऊं तो दीवार में सर लगता है.
कब्र से कम
यहां लिबास की कीमत है आदमी की नहीं,
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे.
लिबास की कीमत
मुसाफिर हैं हम भी मुसाफिर हो तुम भी,
किसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी.
हम भी मुसाफिर
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं,
उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में.
पत्थर को लोग