'अहमियत का मुझे अपनी भी तो अंदाजा है...' पढ़ें अजीज बानो दाराब वफा सदाबहार शेर.

मेरे हालात ने यूं कर दिया पत्थर मुझ को, देखने वालों ने देखा भी न छू कर मुझ को.

देखने वालों ने देखा

 चराग बन के जली थी मैं जिस की महफिल में, उसे रुला तो गया कम से कम धुआं मेरा.

महफिल में

अहमियत का मुझे अपनी भी तो अंदाजा है, तुम गए वक्त की मानिंद गंवा दो मुझ को.

मानिंद गंवा

मैं जब भी उस की उदासी से ऊब जाऊंगी, तो यूं हंसेगा कि मुझ को उदास कर देगा.

ऊब जाऊंगी

जिंदगी के सारे मौसम आ के रुखसत हो गए, मेरी आंखों में कहीं बरसात बाकी रह गई.

रुखसत हो गए

ये हौसला भी किसी रोज़ कर के देखूंगी, अगर मैं जख्म हूं उस का तो भर के देखूंगी.

मैं जख्म हूं