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राहत इंदौरी की 7 बेहतरीन शायरी 

उस की याद आई है सांसों जरा आहिस्ता चलो, धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है.

सांसों जरा आहिस्ता

न हम-सफर न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा.

पांव का कांटा

शाखों से टूट जाएं वो पत्ते नहीं हैं हम, आंधी से कोई कह दे कि औकात में रहे.

पत्ते नहीं हैं

हम से पहले भी मुसाफिर कई गुजरे होंगे, कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते.

मुसाफिर कई गुजरे

रोज तारों को नुमाइश में खलल पड़ता है, चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है.

नुमाइश में खलल

नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक पुराना चल रहा है.

नए किरदार

बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर, जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं.

बहुत गुरूर है