'तिरे इश्क की इंतिहा चाहता हूं', पढ़ें अल्लामा इकबाल के मशहूर शेर.
माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं,
तू मेरा शौक देख मिरा इंतिजार देख.
दीद के काबिल
सितारों से आगे जहां और भी हैं,
अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं.
सितारों से आगे
तिरे इश्क की इंतिहा चाहता हूं,
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूं.
इश्क की इंतिहा
तू शाहीं है परवाज है काम तेरा,
तिरे सामने आसमां और भी हैं.
शाहीं है परवाज
फकत निगाह से होता है फैसला दिल का,
न हो निगाह में शोखी तो दिलबरी क्या है.
निगाह में शोखी
इल्म में भी सुरूर है लेकिन,
ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं.
जिस में हूर