'अकबर इलाहाबादी' के वह शेर जिन्हें बार-बार पढ़ने का दिल करें.

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता.

कत्ल भी करते हैं

 इश्क नाज़ुक-मिजाज है बेहद, अक्ल का बोझ उठा नहीं सकता.

नाज़ुक-मिजाज

दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं, बाजार से गुजरा हूं खरीदार नहीं हूं.

दुनिया का तलबगार

मजहबी बहस मैं ने की ही नहीं, फालतू अक्ल मुझ में थी ही नहीं.

मजहबी बहस

आई होगी किसी को हिज्र में मौत, मुझ को तो नींद भी नहीं आती.

हिज्र में मौत

रहता है इबादत में हमें मौत का खटका, हम याद-ए-खुदा करते हैं कर ले न खुदा याद.

मौत का खटका