बाजार से गुजरा हूं खरीदार नहीं हूं; पढ़ें अकबर इलाहाबादी के बेहतरीन शेर.
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,
वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता.
हम आह भी करते हैं
इश्क नाज़ुक-मिजाज है बेहद,
अक्ल का बोझ उठा नहीं सकता.
इश्क नाज़ुक-मिजाज
दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं,
बाजार से गुजरा हूं खरीदार नहीं हूं.
दुनिया में हूं
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना,
हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना.
अदा से मुस्कुरा
जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर,
हंस के कहने लगा और आप को आता क्या है.
हंस के कहने लगा
मजहबी बहस मैं ने की ही नहीं,
फालतू अक्ल मुझ में थी ही नहीं.
मजहबी बहस