Home Topic Syria And Bangladesh: बांग्लादेश और सीरिया में तख्तापलट! इस साल की चर्चित घटनाओं में रही शुमार

Syria And Bangladesh: बांग्लादेश और सीरिया में तख्तापलट! इस साल की चर्चित घटनाओं में रही शुमार

by Divyansh Sharma
0 comment
Syria And Bangladesh Coup, similarities, differences, causes

Introduction

Coup in Syria and Bangladesh: साल 2024 खत्म होने वाला है. इस साल कई देशों में राजनीतिक उथल-पुथल देखी गई. बांग्लादेश से लेकर सीरिया और बुर्किना फासो तक मौजूदा सरकारों को सेना और विरोधियों की ओर से हिंसक तरीके से उखाड़ फेंकने की कोशिशें की गई. हालांकि, इनमें से कुछ लोकतांत्रिक देश भी हैं, जहां लोकतंत्र को समान विकास और सद्भाव सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है.

इन तख्तापलट की घटनाओं ने उन देशों के समाज को हाशिये पर धकेल दिया और उन राष्ट्रों को नियंत्रित करने वाली राजनीतिक प्रणालियों की नाजुकता को भी उजागर किया. साल 2024 में पहली बार सैन्य तख्तापलट की कोशिश 26 जून को बोलीविया में हुई थी. इस दौरान सैनिकों ने राष्ट्रपति भवन पर धावा बोला और ला पाज के मुख्य चौक पर कब्जा कर लिया. राष्ट्रपति को हटाने के लिए जनरल जुआन जोस जुनिगा ने सैनिकों और टैंकों का सहारा लिया. हालांकि, बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया है.

Table Of Content

  • बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार का पतन
  • 5 अगस्त को देश छोड़कर भागीं शेख हसीना
  • सीरिया में बशर अल-असद के शासन का अंत
  • अरब स्प्रिंग ने कैसे बदला सीरिया का नक्शा?

इसके बाद तख्तापलट की घटनाओं की झड़ी लग गई. तख्तापलट की यह घटनाएं भारत के पड़ोस में बांग्लादेश के साथ ही मीडिल-ईस्ट के सीरिया में भी देखने को मिली. इस विशेष स्टोरी में हम बांग्लादेश और सीरिया में हुए तख्तापलट की घटनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे. इसके साथ ही इन तख्तापलट की घटनाओं का अन्य देशों पर क्या असर देखने को मिलेगा यह भी देखना अहम होगा.

Syria And Bangladesh Coup, similarities, differences, causes - Live Times
शेख हसीना

बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार का पतन

साल 1971 बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ने वालों स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार के सदस्यों को सिविल सेवा नौकरियों में दिए गए आरक्षण को लेकर 1 जुलाई को पहली बार प्रदर्शन देखने को मिला. लाखों की संख्या में छात्र सड़कों पर उतर आए. छात्र के प्रदर्शन को देखते हुए सरकार ने अधिकांश कोटा वापस ले लिया. फिर भी छात्रों ने प्रदर्शन जारी रखा. वह चाहते थे कि बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना पद से इस्तीफा सौंप दें.

शेख हसीना के समर्थकों ने उनके इस्तीफे से इन्कार कर दिया. शेख हसीना ने हिंसा को समाप्त करने की इच्छा जताते हुए छात्र नेताओं के साथ बिना शर्त बातचीत की पेशकश भी की. हालांकि, प्रदर्शनकारियों ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. 16 जुलाई को झड़पें तेज हो गई और पुलिस की कार्रवाई में कम से कम छह लोग मारे गए. जुलाई के महीने में करीब 200 से अधिक लोग मारे गए थे. प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि कई लोगों की मौत पुलिस की गोली से हुई थी. साथ ही सुरक्षा बलों की ओर से की गई कार्रवाई में कथित तौर पर लगभग दस हजार लोगों को हिरासत में लिया गया था.

Syria And Bangladesh Coup, similarities, differences, causes - Live Times
शेख हसीना की तस्वीर

यह भी पढ़ें: Syrian Civil War: सीरिया में गृह युद्ध की क्या है वजह और पूरी कहानी

5 अगस्त को देश छोड़कर भागीं शेख हसीना

इसके बाद 4 अगस्त को अचानक से छात्रों ने राजधानी ढाका कूच किया. बढ़ती हिंसा और अशांति के बीच हजारों प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास गणभवन पर हमला कर दिया. इस बीच सेना ने व्यवस्था बहाल करने के प्रयास में कर्फ्यू लगा दिया. अगले दिन ही खबर आई कि शेख हसीना ने 5 अगस्त को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और अपनी बहन शेख रेहाना के साथ देश छोड़ दिया. इस बीच खबर सामने आई कि उनका इरादा राष्ट्र को संबोधित करने का था. हालांकि, वह ऐसा करने में सफल नहीं हो पाई. इस दौरान करीब 700 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, जिसमें प्रदर्शनकारी और पुलिसकर्मी भी शामिल थे.

इसके बाद बांग्लादेश की सेना चीफ वकर-उज-जमान ने शांति और स्थिरता बहाल करने के लिए अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा की. नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार प्रमुख बनाया गया. हरनेट फाउंडेशन और हरनेट टीवी की संस्थापक ने बांग्लादेशी ढाका ट्रिब्यून में लिखे अपने लेख में इस प्रदर्शन को अरब स्प्रिंग के समान बताया था. उन्होंने दावा किया था कि बांग्लादेश उन देशों के रास्ते पर न चले जो छात्र आंदोलनों के बाद बिखर गए या अरब स्प्रिंग जैसी विफल क्रांतियों में फंस गए. हालांकि, देश में तनाव अभी भी बना हुआ है. दरअसल, इस्लामी कट्टरपंथी और शेख हसीना के विरोधी अल्पसंख्यकों पर हमले कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें: गलियारों में गूंजती चीखें, सामूहिक फांसी और महिलाओं के साथ दुष्कर्म; सीरिया का कत्लखाना था सैदनाया जेल

Syria And Bangladesh Coup, similarities, differences, causes - Live Times
बशर अल-असद

सीरिया में बशर अल-असद के शासन का अंत

7 दिसंबर को विद्रोहियों ने बशर अल-असद के शासन को उखाड़ फेंक दिया. देश की सत्ता विद्रोही ताकतों के हाथों में चली गई है. विद्रोहियों ने दावा किया कि सीरिया में असद परिवार के क्रूर शासन को खत्म कर वह नियंत्रण स्थापित करना शुरू कर चुके हैं. उन्होंने दमिश्क में सार्वजनिक इमारतों के बाहर मोर्चा संभाल लिया. अभी यह तय नहीं है कि नई सरकार का नेतृत्व कौन करेगा. हालांकि, यह तय माना जा रहा है कि HTS यानी हयात तहरीर का लीडर मोहम्मद अल-जुलानी नेतृत्व कर सकता है.

बता दें कि 27 नवंबर को HTS ने अलेप्पो, दारा और हमा शहर पर अचानक हमला कर कब्जा कर लिया. इसके बाद सिर्फ एक हफ्ते में ही सीरिया की राजधानी दमिश्क में घुस गए और बिना किसी लड़ाई के शहर पर कब्जा कर लिया. सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद को लेकर दावा किया जा रहा है कि वह रूस भाग गए हैं. रूसी सरकारी मीडिया और दो ईरानी अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है. क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा है रूस बशर अल-असद के ठिकाने का खुलासा नहीं करेगा.

यह भी पढ़ें: 6 घंटे तक सड़कों पर राइफल ताने खड़े रहे सैनिक, डरे-सहमे लोग! साउथ कोरिया में जानें क्या हुआ

अरब स्प्रिंग ने कैसे बदला सीरिया का नक्शा

बता दें कि 1970 में हाफिज अल-असद सत्ता में आए और मार्च 1971 में आधिकारिक रूप से सीरिया के राष्ट्रपति बने थे. हाफिज अल-असद के मौत के बाद साल 2000 में उनके बेटे बशर अल-असद सीरिया के राष्ट्रपति बने. साल 2011 में अरब स्प्रिंग यानी अरब क्रांति ने सीरिया को पूरी तरह से बदल दिया. अरब स्प्रिंग के दौरान लोकतंत्र समर्थक विद्रोहों ने बढ़ते बेरोजगारी दर, भ्रष्टाचार और राजनीतिक स्वतंत्रता की कमी सीरिया को अशांत कर दिया.

Syria And Bangladesh Coup, similarities, differences, causes - Live Times
बशर अल-असद का पोस्टर

बशर अल-असद ने इन्हें कुचलने के लिए घातक बल का इस्तेमाल किया, तो पूरे देश में विरोध प्रदर्शन भड़क गए और क्रूर युद्ध में बदल गया. इस संघर्ष में कई समूह शामिल हो गए और सभी गुट अलग-अलग हितों के लिए एक-दूसरे के खिलाफ लड़ने लगे. इसमें हिज्बुल्लाह, ISIS यानी इस्लामिक स्टेट, फ्री सीरियन आर्मी (FSA), कुर्द विद्रोही लड़ाके, सीरियाई राष्ट्रीय सेना (JWS), जबात फतह अल-शाम, सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज (SDF) और हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के लड़ाके बड़े पैमाने पर शामिल हैं.

इस संघर्ष में रूस और ईरान ने बशर अल-असद का साथ दिया था. वहीं, वहीं विपक्षी गुटों को तुर्की, कई पश्चिमी ताकतों और कुछ खाड़ी अरब देशों का समर्थन मिला. सीरिया के कुर्द लड़ाके सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्सेज के बैनर तले सीरिया में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में संयुक्त राज्य अमेरिका की मुख्य भागीदार हैं. गृहयुद्ध की शुरुआत के बाद से तुर्की की सेना ने HTS यानी हयात तहरीर अल-शाम को समर्थन दिया है. अब सीरिया में सरकार बदल चुकी है. ऐसे में देश के शासन, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था को लेकर कई अहम सवाल खड़े होते हैं.

यह भी पढ़ें: आजादी के नायक की यादों को पूरी तरह से मिटाने चली बांग्लादेश सरकार, जानें क्या है नया आदेश

Conclusion

बांग्लादेश में तख्तापटल की ताजा घटना वास्तव में पूरे क्षेत्र के लिए चिंताजनक है. भारत के पड़ोस में इससे पहले साल 2022 में श्रीलंका में भी इस तरह की घटना देखने को मिली थी. अब राजनीतिक अस्थिरता में फंसे बांग्लादेश की हालात लगातार बदतर होते जा रहे हैं. धार्मिक कट्टरता हावी होती जा रही है और अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के लोगों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं. इसके साथ ही यह तय माना जा रहा है कि बांग्लादेश में साल 2026 से पहले अगले संसदीय चुनाव नहीं होंगे. मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली कार्यवाहक सरकार ने यह साफ कर दिया है कि जब तक सिस्टम सही नहीं होता, तब तक कोई चुनाव नहीं होगा.

दूसरी ओर से सीरिया के भविष्य को लेकर भी कई तरह से सवाल खड़े हो रहे हैं. हालांकि यह तय है कि विद्रोही राजधानी को सुरक्षित करने और अराजक सत्ता शून्यता को रोकने की कोशिश करेंगे, लेकिन इस बीच यह भी अहम है कि वह पूरे देश पर अपना नियंत्रण कितनी दूर और कितनी तेजी से बढ़ाएंगे और क्या विद्रोही एकजुट हो पाएंगे. पिछले हफ्ते एक साक्षात्कार में अल-जोलानी ने कहा था कि HTS अपना आक्रमण शुरू करने से पहले ही समूह अपने अगले कदमों के बारे में सोच चुका है. इसके साथ ही साल 2011 में शुरू हुए गृह युद्ध ने आधुनिक युग के सबसे बड़े शरणार्थी संकटों में से एक को जन्म दिया है. सीरिया में युद्ध के कारण लाखों लोग मारे गए हैं और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं. ऐसे में उन्हें फिर से देश में वापस लाना बहुत बड़ी चुनौती है. वैश्विक प्रतिबंधों के बोझ तले सीरिया की अर्थव्यवस्था भी तबाह हो चुकी है.

यह भी पढ़ें: US ने रखा करोड़ों का इनाम, ISIS ने किया मौत की सजा देने का एलान, कौन है विद्रोह का चेहरा जोलानी?

Syria And Bangladesh Coup, similarities, differences, causes - Live Times
ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई

श्रीलंका, बांग्लादेश और अब सीरिया में सत्ता परिवर्तन के लिए विरोध प्रदर्शनों की श्रृंखला एक ही पैटर्न को दिखाती है, जहां जनता के बढ़ते असंतोष आंदोलनों में बदल गए. साथ ही लंबे समय से चली आ रही सरकारों को गिराने में सक्षम है. ऐसे में मीडिल-ईस्ट में ईरान की स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं. सीरिया में बशर अल-असद के शासन के पतन के बाद और हिज्बुल्लाह के कमजोर होने से ईरान के क्षेत्रीय प्रभाव और अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ा है. कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि ईरान में आंतरिक असंतोष बढ़ रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह है आर्थिक तंगी और शासन की कथित कमजोरी. हिज्बुल्लाह को लंबे समय से ईरान का सबसे शक्तिशाली गैर-राज्य सहयोगी माना जाता रहा है. हिज्बुल्लाह को सीरिया और इजराइल के खिलाफ भारी नुकसान उठाना पड़ा है. सीरिया में ईरान के बड़े पैमाने पर निवेश, तेल निकालने के संयंत्र गायब हो गए हैं.

बता दें कि लोकतंत्र को समान विकास और सद्भाव सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है. हालांकि, लोकतंत्र का पालन करने वाले देशों के बीच अभी भी असमानताएं मौजूद हैं. साथ ही लोकतांत्रिक सरकारों के खिलाफ जिस देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, उन सरकारों में तर्क, धैर्य, आपसी समझ और जवाबदेही की कमी है. इन सबके बीच माना जा रहा है कि आने वाले वर्षों में बढ़ते सैन्य तख्तापलट लोकतंत्र के लिए चुनौती बन सकते हैं. ऐसे में मानवीय एजेंसियों को सशस्त्र बलों और सत्तारूढ़ पार्टी के बीच सामंजस्य के लिए एक आदर्श स्थिति बनाने पर विचार करना अब बेहद जरूरी हो गया है.

साथ ही लोकतांत्रिक विकास के साथ जुड़ी अखंडता और ईमानदारी को बनाए रखने के लिए लोकतांत्रिक संरचनाओं की नींव को मजबूत करने की भी सख्त से सख्त जरूरत है. इसके साथ ही लोकतांत्रिक देश की सरकारों को नौकरियां, शिक्षा और नस्लवाद और हिंसा के खिलाफ सुरक्षा को समान रूप से बढ़ावा देने पर ध्यान देना चाहिए, जिससे नागरिक विकल्प के रूप में सेना का समर्थन करने के लिए प्रवृत्ति न पनप सके, क्योंकि लगातार हो रहे तख्तापलट अक्सर लोकतांत्रिक पतन की ओर ले जाते हैं.

यह भी पढ़ें: Syrian Civil War: सीरिया में गृह युद्ध की क्या है वजह और पूरी कहानी?

Follow Us On: Facebook | X | LinkedIn | YouTube Instagram

You may also like

Leave a Comment

Feature Posts

Newsletter

Subscribe my Newsletter for new blog posts, tips & new photos. Let's stay updated!

@2024 Live Time. All Rights Reserved.

Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?
-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00