Introduction
Places of Worship Act, 1991: साल 2024 खत्म होने में कुछ ही समय बचा है. इस बीच भारत में एक बात की चर्चा बहुत जोरों पर हो रही है कि देश के कई पौराणिक मंदिरों को तोड़कर मुगल आक्रांताओं ने मस्जिदें बनवाई. कई लोग राम मंदिर के लिए छिड़े अयोध्या आंदोलन को पुनर्जागरण बताते हैं. BJP यानी भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता विनय सहस्रबुद्धे ने इसी साल 2 जनवरी को लिखे अपने एक लेख में कहा था कि राम मंदिर के लिए छिड़ा 500 साल पुराना अयोध्या आंदोलन यूरोप के पुनर्जागरण की तरह था. BJP के ही नेता श्याम जाजू ने अपने लेख में कहा कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण और अभ्युदय का अमृतकाल है.
Table Of Content
- ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ विवाद- वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
- कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद- मथुरा (उत्तर प्रदेश)
- शाही जामा मस्जिद, संभल (उत्तर प्रदेश)
- टीले वाली मस्जिद- लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
- अटाला मस्जिद: जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
- शमशी मस्जिद: बदायूं (उत्तर प्रदेश)
- जामा मस्जिद और दरगाह शेख सलीम चिश्ती, फतेहपुर सीकरी- आगरा (उत्तर प्रदेश)
- अजमेर शरीफ दरगाह: अजमेर (राजस्थान)
- कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद: कुतुब मीनार (दिल्ली)
- कमाल मौला मस्जिद- भोजशाला परिसर (मध्य प्रदेश)
- जुमा मस्जिद और मलाली मस्जिद- मैंगलोर (कर्नाटक)
बाद में इस पुनर्जागरण का असर ऐसा देखने को मिला कि सुप्रीम कोर्ट से लेकर निचली अदालतों में उपासना स्थलों पर दावेदारी की फाइलों का अंबार लग गया. कई इलाकों में तनाव बढ़ गया. कोर्ट में चुनौती दी गई ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991’ को. अदालतों में सुनवाई होती रही. सुनवाई के बाद सर्वे के आदेश दिए जाने लगे. इस बीच 24 नवंबर को संभल में शाही जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर हिंसा भड़क गई और नतीजन 5 लोगों की मौत हो गई.
12 दिसंबर को देश में बढ़ते मस्जिदों और मंदिरों के दावे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत बड़ा निर्देश जारी कर दिया. निर्देश के मुताबिक ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991’ को लेकर जब तक सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पेंडिंग है, तब तक देशभर की निचली अदालतें धार्मिक स्थल पर दावे के नए मुकदमे रजिस्टर्ड नहीं करेंगी और न ही पेंडिंग मामलों पर कोई प्रभावी अंतरिम या अंतिम यानी फाइनल आदेश देंगी. इस दौरान सर्वे का भी आदेश नहीं दिया जाएगा.
दावेदारी की कोशिशें के बीच सुप्रीम कोर्ट का ताजा निर्देश कहीं न कहीं राहत देने वाला है. ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991’ एक कानून है, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने पारित किया था. इस एक्ट के मुताबिक अयोध्या को छोड़कर देश के सभी उपासना स्थल आजादी के समय यानी साल 1947 की ही यथास्थिति में रहेंगे. इसका मकसद था कि मौजूदा धार्मिक संरचनाओं के धार्मिक चरित्र को लेकर विवाद न बढ़े. ऐसे में हम आपको बताते हैं कि देशभर में कितने बड़े मामले हैं, जो कई कोर्ट में विचाराधीन हैं.
ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ विवाद- वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
देशभर में 11 बड़े मामले ऐसे हैं, जो कई कोर्ट में विचाराधीन हैं. इसमें सबसे खास बात यह है कि 11 में से 7 तो सिर्फ उत्तर प्रदेश में हैं. इसमें सबसे पहला है ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ विवाद. काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर विवाद काफी हद तक अयोध्या की तरह ही है. फर्क सिर्फ इतना है कि अयोध्या में सिर्फ मस्जिद थी, लेकिन ज्ञानवापी विवाद में मंदिर और मस्जिद दोनों हैं.
यह पूरा मामला ज्ञानवापी मस्जिद परिसर को लेकर है. दरअसल, हिंदू पक्ष का तर्क है कि साल 1993 तक मस्जिद के तहखाने में हिंदू समुदाय और व्यास परिवार के लोग पूजा करते थे. कथित तौर पर कहा जाता है कि साल 1993 में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के दौरान व्यास परिवार को पूजा बंद करने का मौखिक आदेश दिया गया था. दावा यहां तक किया जाता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब के शासन के दौरान मस्जिद से पहले यह विश्वेश्वर मंदिर था. औरंगजेब के निर्देश पर इसे साल 1669 में तोड़कर मस्जिद बना दिया गया था.
हिंदू पक्ष का दावा है कि वह इस मंदिर के लिए साल 1670 से लड़ाई लड़ रहा है. दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष इन दावों से इन्कार करता है और मस्जिद पर उनका कब्जा औरंगजेब के शासनकाल से पहले का है. पिछले साल ASI यानी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने परिसर के सर्वे की अनुमति दी थी. यह मामला साल 2022 में दायर किया गया था और वाराणसी के जिला न्यायाधीश के सामने पेंडिंग है. हाल में सुप्रीम कोर्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद से संबंधित पंद्रह पेंडिंग मामलों को इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया था.
कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद- मथुरा (उत्तर प्रदेश)
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और ईदगाह मस्जिद के कुल 13.37 एकड़ जमीन को लेकर विवाद जारी है. 11 एकड़ जमीन पर मंदिर बनाया गया है और 2.37 एकड़ जमीन पर मस्जिद का निर्माण किया गया है. इसके लिए पिछले साल याचिका दायर की गई थी. हिंदू पक्ष ने सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दायर कर दावा किया कि शाही ईदगाह मस्जिद कृष्ण जन्मभूमि भूमि पर बनाई गई थी.
मुकदमा भगवान कृष्ण और कई हिंदू भक्तों की ओर से दायर किया गया था. हिंदू पक्ष ने मांग रखी कि मस्जिद को मंदिर की जमीन से हटाया जाए. हिंदू पक्ष का दावा है कि इस मस्जिद का भी निर्माण औरंगजेब की ओर से साल 1969-70 में कराया गया था. इसके लिए उसने केशवनाथ मंदिर को तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद बनवाई थी.
मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित है. हाल के दिनों में एक सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने मीडिया को इस मामले को लेकर रिपोर्टिंग करते समय सावधानी बरतने का निर्देश दिया था. वहीं, मुस्लिम पक्ष इन दावों को खारिज करता है. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि हिंदू पक्ष की दलीलों मे दिए गए कोई सबूत मस्जिद में मौजूद नहीं हैं. शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट ने भी इलाहाबाद हाई कोर्ट के 14 दिसंबर के फैसले को ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991’ के तहत चुनौती दी गई है.
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शाही जामा मस्जिद- संभल (उत्तर प्रदेश)
संभल की शाही जामा मस्जिद को लेकर 20 नवंबर को तनाव देखने को मिला था. हिंदू पक्ष के मुताबिक मस्जिद के नीचे हरिहर मंदिर है. हिन्दू धर्म के अठारह प्रमुख पुराणों में सबसे बड़े स्कंद पुराण में उल्लिखित है कि कलयुग के अंत में हरिहर मंदिर से ही विष्णु के दशावतारों में से एक कल्कि का अवतार होने वाला है. मंडलीय गजेटियर ने भी साल 1913 में जामा मस्जिद को भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ बताते हुए इसे पौराणिक और प्रसिद्ध मंदिर होने का दावा किया. मंडलीय गजेटियर में इसे संभल के कोतवाली क्षेत्र के कोट पूर्वी मोहल्ले के नजदीक बताया गया है. मंडलीय गजेटियर में इस बात का भी जिक्र है कि अब मंदिर अस्तित्व में नहीं है.
हिंदू पक्ष ने इन सभी को आधार बनाते हुए याचिका दाखिल की है. हिंदू पक्ष ने कहा है कि मस्जिद में उन्हें जाने नहीं दिया जाता है. वहीं, मुगल आक्रांता बाबर की आत्मकथा ‘बाबर नामा’ में कहा गया है कि बाबर के आदेश पर साल 1526 में मीर बेग ने इस मस्जिद का निर्माण कराया था. मुस्लिम पक्ष इन सभी दावों को खारिज करता है. इसी साल दायर यह मुकदमा संभल में सिविल जज यानी सीनियर डिवीजन की कोर्ट में पेंडिंग है. 24 नवंबर को हुई हिंसा के मामले में पुलिस और राज्य अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर दो जनहित याचिकाएं इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी पेंडिंग हैं.
टीले वाली मस्जिद- लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी इसी तरह का मामला देखने को मिल रहा है. लखनऊ की मशहूर टीले वाली मस्जिद के बगल में स्थित भगवान शेष नागेश टीलेश्वर महादेव मंदिर को लेकर कहा जाता है कि टीले वाली मस्जिद के अंदर ही असली भगवान शेषनाग का मंदिर है. उनका दावा है कि मंदिर को धीरे-धीरे नष्ट किया जा रहा है. हिन्दू पक्ष के मुताबिक मुगल शासक औरंगजेब ने अपने शासन के दौरान लक्ष्मण टीला पर स्थित मंदिर को तोड़ा और मंदिर के आधे हिस्से में मस्जिद बना दी. दावा यहां तक किया जाता है कि बाउंड्री के बाहर अब भी शेषनाग कूप, शेषनागेष्ट टीलेश्वर महादेव मंदिर और पुराने हिंदू मंदिर आज भी मौजूद हैं.
हिंदू पक्ष की ओर से मस्जिद का सर्वे कराए जाने की भी मांग की गई है. हिंदू पक्ष की मांग है कि शेषावतार मंदिर और लक्ष्मण टीला यानी टीले वाली मस्जिद परिसर के अन्य स्थलों पर पूजा, आरती और हनुमान चालीसा के पाठ करने से न रोका जाए. यह मामला भी साल 2023 से कोर्ट में लंबित है, जिस पर लखनऊ जिला न्यायालय के सिविल जज सुनवाई कर रहे हैं. बता दें कि, इसी साल फरवरी में लखनऊ की एक अदालत ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज करते हुए हिंदू पक्ष के मुकदमे को स्वीकार कर लिया था.
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अटाला मस्जिद- जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
उत्तर प्रदेश के जौनपुर में अटाला मस्जिद को लेकर भी विवाद है. दावा किया जाता है कि 13वीं शताब्दी में राजा विजय चंद्र ने अटाला देवी की मूर्ति स्थापित कर अटाला देवी मंदिर बनवाया था. इसमें लोग पूजा करते थे. स्वराज वाहिनी की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि 13वीं शताब्दी में फिरोज शाह तुगलक ने जौनपुर पर आक्रमण कर अपना आधिपत्य स्थापित किया. अटाला देवी मंदिर की भव्यता देखकर फिरोज शाह तुगलक ने मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया और मस्जिद बनवा दिया. हिंदू धर्मावलंबियों की ओर से किए गए प्रबल विरोध की वजह से मंदिर पूरी तरह से टूट नहीं पाया.
बाद में मंदिर के खंभों पर ही मस्जिद बनवा दिया गया था. शर्की वंश के इब्राहिम शाह साल 1408 में इस मस्जिद को फिर से बनवा दिया. इतिहासकार अबुल फजल की रचना आईने अकबरी में भी इस बात का जिक्र किया गया है. हिंदू पक्ष कहता है कि उसके पास मंदिर में पूजा करने का अधिकार है. वहीं, मुस्लिम पक्ष की ओर से पीस कमेटी का कहना है कि उन्हें पूरी तरह से संपत्ति पर कब्जा दिया जाए और गैर-हिंदुओं के प्रवेश करने से रोकने के लिए अनिवार्य निषेधाज्ञा जारी की जाए. इस मामले की अगली सुनवाई 2 फरवरी को होगी.
शमशी मस्जिद- बदायूं (उत्तर प्रदेश)
भगवान नीलकंठ महादेव महाकाल के मंदिर को तोड़कर शमशी मस्जिद बनवाने का विवाद काफी पुराना है. अखिल भारतीय हिन्दू महासभा की ओर से स्थानीय अदालत में एक याचिका दायर कर दावा किया कि जामा मस्जिद शमशी का निर्माण नीलकंठ महादेव मंदिर को ध्वस्त करके किया गया था. दावा यहां तक किया जाता है कि हिंदू राजा महिपाल के किले का एक हिस्सा था. इसे 13वीं शताब्दी की शुरुआत में शम्सी वंश का तीसरे राजा इल्तुतमिश किले और मंदिर को तोड़ने का आदेश दे दिया. साल 2022 में दायर मामला बदायूं के सिविल जज की कोर्च में पेंडिंग है. बार एसोसिएशन के चुनाव के मद्देनजर इस मामले पर 18 जनवरी को सुनवाई होने वाली है.
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जामा मस्जिद और दरगाह शेख सलीम चिश्ती, फतेहपुर सीकरी- आगरा (उत्तर प्रदेश)
क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट की ओर से दायर याचिका में शेख सलीम चिश्ती की दरगाह और जामा मस्जिद परिसर को माता कामाख्या का मंदिर बताया गया है. दावा किया गया है कि विवादित संपत्ति पर अतिक्रमण किया गया, जिसे पहले विजयपुर सीकरी कहा जाता था. साथ ही इलाके में सिकरवार राजवंश का शासन था. कहा जाता है कि बुलंद दरवाजे के नीचे दक्षिण पश्चिम में एक अष्टभुजीय कुआं है.
ASI के अभिलेखों में भी इस बात का जिक्र मिलता है. ASI के रिटायर्ड अधिकारी डॉ. डीवी शर्मा ने ‘आर्कियोलॉजी ऑफ फतेहपुर सीकरी- न्यू डिस्कवरीज’ किताब में लिखा है कि उनके कार्यकाल के दौरान छबीली टीले की खोदाई में सरस्वती और जैन मूर्तियां मिली थी. वह करीब एक हजार साल पुरानी थी. साल 2024 में दायर मामला आगरा के अतिरिक्त सिविल जज की कोर्ट में लंबित है. 9 जनवरी को फिर से इस मामले पर सुनवाई होगी.
अजमेर शरीफ दरगाह- अजमेर (राजस्थान)
संभल मामले के साथ ही अजमेर शरीफ को लेकर विवाद देखने को मिला. हिंदू सेना की ओर से दायर याचिका में दरगाह समिति को हटाने के लिए कहा गया है. याचिका में दावा किया गया है कि ऐतिहासिक अभिलेखों में इस स्थान पर महादेव मंदिर और जैन मंदिर होने की बात कही गई है. रिटायर्ड जज हरबिलास सारदा की साल 1911 में लिखी किताब ‘अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव’ में लिखा है कि दरगाह के निर्माण में मंदिर का मलबा दबा है.
साथ ही गर्भगृह और परिसर में एक जैन मंदिर छिपा है. याचिकाकर्ता ने कहा कि औरंगजेब पर लिखी गई मसीर-ई-आलमगीरी किताब में लिखा है कि औरंगजेब ने जोधपुर और उदयपुर के कृष्ण मंदिर को तोड़कर जामा मस्जिद की सीढ़िया में मूर्तियों के अवशेष लगवाए थे. यह साल 1689 का मामला है. औरंगजेब के सिपहसालार खान जहां बहादुर ने ही मंदिरों को तोड़ा था. दरगाह कमेटी ने इन दावों को सिरे से खारिज किया है. मामला अजमेर के जूनियर डिवीजन जज की कोर्ट में पेंडिंग है.
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कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद- कुतुब मीनार (दिल्ली)
इस तरह के विवादों से देश की राजधानी दिल्ली भी अछूती नहीं है. भगवान विष्णु और भगवान ऋषभदेव की ओर से उनके अधिवक्ताओं ने मुकदमा दायर किया गया है. हिंदू राजा पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद मुहम्मद गौरी दिल्ली का शासन कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप देता है. 1200 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने महरौली इलाके में कुतुब मीनार का निर्माण कराया.
इसी दौरान कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद भी बनवाई गई. हिंदू देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियों को लेकर दावा किया जाता है कि मंदिर तोड़कर ही मस्जिद बनाई गई थी. इसके उलट मुस्लिम पक्ष का तर्क है कि हिंदू पक्ष का मुकदमा गलत है. इस मामले में वादी भगवान हैं ऐसे में प्रतिनिधि हैसियत से मुकदमा दायर करने का कानूनी आधार नहीं है. इसे जुड़े दो मामले साकेत के जिला कोर्ट में साल 2022 से पेंडिंग हैं.
कमाल मौला मस्जिद- भोजशाला परिसर (मध्य प्रदेश)
हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की ओर से दायर याचिका में दावा किया गया है कि भोजशाला परिसर को फिर से हिंदुओं को सौंप दिया जाए. साथ ही मुसलमानों को परिसर में नमाज अदा करने से रोकने की मांग की गई थी. हिंदू पक्ष इसे राजा भोज के समय का इमारत बताता है. हिंदुओं का तर्क है कि पहले यह देवी सरस्वती का मंदिर था. बाद में कुछ मुस्लिम समुदाय के लोगों को नमाज अदा करने की अनुमति दी गई थी. बाद में उन्होंने इस पर कब्जा कर लिया.
दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह दावे गलत है. वह सालों से यहां नमाज पढ़ते आ रहे हैं. इस मामले में ASI सर्वे की मांग की गई थी. मुस्लिम पक्ष ने रेस जुडिकाटा के सिद्धांत का हवाला देते हुए मुकदमे की स्थिरता का विरोध किया था. मामला साल 2022 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में दायर किया गया था. 1 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने भोजशाला परिसर के ASIस सर्वे पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया था. जुलाई में ASI ने हाई कोर्ट में कहा था कि मौजूदा संरचना पहले के मंदिरों के हिस्सों से बनी है.
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जुमा मस्जिद और मलाली मस्जिद- मैंगलोर (कर्नाटक)
विश्व हिंदू परिषद ने भूमि विवाद का हवाला देते हुए ज्ञानवापी मस्जिद की तरह ही मलाली मस्जिद के सर्वे की मांग की थी. हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद परिसर में मंदिर की तरह संरचनाएं मौजूद है और सर्वे के बाद ही सच सबके सामने आ सकता है. वहीं, मुस्लिम पक्ष जमीन पर अपना स्वामित्व जताता है और सर्वे का विरोध करता है. साल 2022 में दायर मामला दक्षिण कन्नड़ के मैंगलोर के सिविल जज की कोर्ट में पेंडिंग है.
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Conclusion
सुप्रीम कोर्ट में हिंदू पक्ष ने ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991’ को चुनौती दी है. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस मनमोहन की तीन जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है. इस मामले में हिंदू पक्ष की तरफ से विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ, सुब्रह्मण्यन स्वामी और अश्विनी उपाध्याय की ओर से अब तक कुल छह याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं. इसके विरोध में मुस्लिम पक्ष की ओर से जमीअत उलमा-ए-हिंद ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है.
हिंदू पक्ष की मांग है कि मुहम्मद बिन कासिम ने पहली बार साल 712 में भारत में हमला करने आया था. इसे (Places of Worship Act-1991) तारीख 15 अगस्त 1947 से बदल कर 712 किया जाना चाहिए. दरअसल, राम मंदिर आंदोलन को लेकर 90 के दशक में आंदोलन अपने चरम पर था. BJP के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली. 29 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचने से पहले ही उन्हें बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया था. गिरफ्तारी के बाद BJP के समर्थन से चल रही केंद्र में जनता दल की वीपी सिंह सरकार गिर गई.
वीपी सिंह के हटते ही कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर ने सरकार बनाई. कांग्रेस की भी सरकार गिर गई. इसके बाद हुए चुनाव में पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने और उन्होंने ही बढ़ते विवाद को रोकने के लिए यह प्रस्ताव रखा. इस दौरान भी BJP ने इस कानून का विरोध किया था. साल 2019 में अयोध्या बाहरी केस में फैसला आने के बाद देशभर के करीब 100 पूजा स्थलों पर मंदिर होने का दावा किया जा रहा है. हालांकि, ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991’ के चलते दावा करने वाले कोर्ट नहीं जा सकते और यही विवाद की मूल वजह है.
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