Home Topic अमृता प्रीतम का इमरोज-साहिर से था कैसा रिश्ता ? आखिर क्यों अधूरा रह गया मोहब्बत का अफसाना   

अमृता प्रीतम का इमरोज-साहिर से था कैसा रिश्ता ? आखिर क्यों अधूरा रह गया मोहब्बत का अफसाना   

by JP Yadav
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Amrita Pritam Love Story know everything you need to know about this famous writer of India

Amrita Pritam Love Story: पंजाबी भाषा की मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम की जिंदगी का अफसाना फिल्म के किसी चरित्र के मानिंद है. अमृता की साहिर लुधियानवी से मोहब्बत किसी रहस्य से कम नहीं है, जिसकी कई गिरह अभी खुलनी बाकी हैं.

Amrita Pritam Love Story : अमृता प्रीतम सिर्फ लेखिका नहीं बल्कि एक युग थीं और एक परंपरा भी… जिन्होंने जिंदगी जीने का अलग ही तरीका और सलीका दिया. जो लिव इन रिलेशनशिप आज के युवाओं का फैशन बन गया है वह अमृता प्रीतम ने उस युग में जिया जब इसके बारे में हममें से ज्यादातर लोग जानते भी नहीं थे. उन्होंने प्यार की वह परिभाषा गढ़ी, जिसमें खोना ही पाना था और पाना ही खोना था. अमृता प्रीतम और साहिर का रिश्ता एक मायने में अनोखा था, जहां एक-दूसरे को पाने की चाहत तो थी लेकिन कोशिश नहीं. यह अलग बात है कि साहिर और अमृता में एक-दूसरे को पाने की कसक ताउम्र रही. कहा जाता है कि साहिर ने अमृता से इश्क ना किया होता तो हमराज फिल्म का गीत ‘वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा…’ कभी लिखा नहीं जाता.

अमिताभ बच्चन, राखी, शशि कपूर और ऋषि कपूर अभिनीत फिल्म ‘कभी-कभी’ फिल्म का टाइटल सॉन्ग दरअसल, साहिर की मुकम्मल जिंदगी है, जिसे वह कुछ यूं कहते हैं- मैं जानता हूं कि तू गैर है मगर यूं ही… कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है’ यह गीत ऐसा ब्रेकअप सॉन्ग है जो बिछड़े प्रेमियों को एक अलग ही तरह की ऊर्जा देता है.

Amrita Pritam Love Story : स्कूल में लिख डाली थी नज्म

अमृता प्रीतम बचपन से ही साहित्य प्रेमी थीं. कविताओं का शौक था. पढ़ने-लिखने का भी जुनून था. कहा जाता है कि अमृता के जेहन में एक काल्पनिक प्रेमी था. लेखिका ने इस प्रेमी को बाकायदा नाम दिया था- राजन. कल्पनाओं का यह राजन अमृता के जेहन से उनकी ख्यालात भरी जिंदगी में शामिल हो गया. अमृता की दीवानगी देखिये कि उन्होंने इसी नाम को अपनी ज़िंदगी की पहली नज़्म का सब्जेक्ट बनाया. प्रतिष्ठित लेखिका के तौर पर एक नामी मीडिया हाउस को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया था- ‘जब स्कूल में पढ़ती थी तो मैंने एक नज्म लिखी थी. फिर यह सोचकर अपनी जेब में रख लिया कि वह स्कूल जाकर अपनी करीबी सहेली को दिखाएंगी.’ वहीं, बैरागी पिता के पास अमृता कुछ पैसे मांगने गईं. इस दौरान उनके पिता ने पैसे अमृता प्रीतम के हाथ में न देकर उनकी जेब में डालने चाहे और उसी जेब में वो नज़्म रखी हुई थी. पिता का हाथ उस नज़्म पर पड़ा तो उन्होंने उसे निकालकर पढ़ लिया. यह बहुत असहज करने वाली स्थिति थी. पिता ने पूछ लिया- क्या इसे तुमने लिखा है? खैर परिस्थिति को काबू करने के लिए अमृता ने झूठ बोला और कहा- ‘यह नज़्म उनकी सहेली ने लिखी है.

जाहिर है पिता ने उस झूठ को पकड़ लिया गया और नज्म को दोबारा पढ़ा. पढ़ने के बाद पूछा कि यह राजन कौन है? इस सवाल के जवाब में अमृता खामोश थीं. इस पर पिता ने झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ा और कागज फाड़ दिया. अमृता प्रीतम ने बड़ी ही साफगोई से कहा था- ‘झूठ बोलकर अपनी नज्म किसी और के नाम लगानी चाही थी, लेकिन वह नज्म एक चपत को साथ लिए फिर से मेरे नाम लग गई. यह हश्र था मेरी पहली नज्म का.’

Amrita Pritam Love Story : जिसके साथ पत्नी की तरह रहीं, कभी नहीं कहा ‘प्यार है’

मैंने ऊपर ही लिख दिया है कि साहिर और अमृता की प्रेम कहानी बेहद अनूठी थी. अमृता की लाइफ में एक तरह का लव ट्राएंगल था. सही मायनों में वह मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी से प्यार करती थीं, लेकिन उन्होंने जीवन गुजारा इमरोज के साथ. बेशक हर प्रेमी की चाहत होती है कि वह इजहार-ए-इश्क जरूर करे, लेकिन इमरोज और अमृता का इश्क अजीब था. ऐसा कहा जाता है कि इमरोज और अमृता ने एक-दूसरे से कभी कहा ही नहीं कि वे एक-दूसरे से प्यार करते हैं. इस पर इमरोज ने एक बार कहा था- हिंदी फिल्मों में भी आप उठने-बैठने के तरीके से बता सकते हैं कि हीरो-हीरोइन एक-दूसरे से मोहब्बत करते हैं लेकिन वो फिर भी बार-बार कहते हैं कि वो एक-दूसरे से प्यार करते हैं. जब प्यार है तो बोलने की क्या जरूरत है? वो सच्चा प्यार करते हैं जैसे कि प्यार भी कभी झूठा होता है.

What was Amrita Pritam's relationship with Imroz-Sahir? Why did the story of love remain incomplete? - Live Times

Amrita Pritam Love Story : इमरोज करते थे अमृता की प्राइवेसी की इज्जत

अमूमन पति-पत्नी का एक-दूसरे की जिंदगी में पर्याप्त दखल होता है. इसके तहत पति-पत्नी दोनों एक ही कमरे में रहते हैं. इमरोज का कहना था कि हम पहले दिन से ही एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरों में रहते रहे. उन्होंने स्वीकारा कि रात के समय अमृता प्रीतम लिखती थीं. उन्होंने इस वक्त को चुना जब न कोई आवाज होती हो और न ही टेलीफोन की घंटी बजती हो. … और सबसे बड़ी बात कि उस दौरान कोई आता और जाता भी ना हो. इमरोज ने अमृता की आदता का ख्याल रखा. इतना ही नहीं अमृता ने जब चाहा तब इमरोज ने उन्हें लिखने के लिए तन्हा छोड़ा.

इमरोज ने स्वीकार किया था कि अमृता प्रीतम लिखने के दौरान चाय पीने की शौकीन थीं, लेकिन वह कभी भी बीच में लिखना छोड़कर चाय नहीं बनाती थीं. इसका मतलब यह है कि वह चाय नहीं बनाती थीं. मगर लिखने के दौरान वह चाहतीं कि उन्हें चाय मिले. उस समय मैं सो रहा होता था. फिर इरादा किया और रात के एक बजे उठना शुरू कर दिया. इस दौरान इमरोज चाय बनाकर उनके आगे चुपचाप रख आते थे. उस वक्त अमृता प्रीतम लिखने में इतनी खोई होती थीं कि वह इमरोज की ओर देखती भी नहीं थीं. यह सिलसिला करीब 5 दशक यानी 50 सालों तक चला. जाहिर है इमरोज ने हजारों रातें इसलिए जागकर गुजारीं कि जब भी अमृता को चाय की तलब लगे तो वह मौजूद रहें.

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Amrita Pritam Love Story : अमृता एंड इमरोज़- ए लव स्टोरी

अमृता ने प्रीतम सरनेम अपने साथ ऐसा जोड़ा कि उम्र भर जुड़ा रहा. लेकिन एक हकीकत यह भी है कि पहली शादी उनकी असफल रही. दरअसल, साल 1935 में अमृता ने लाहौर (अब पाकिस्तान में) के अनारकली बाजार के एक होजरी व्यापारी के बेटे प्रीतम सिंह से शादी की. दोनों के 2 बच्चे भी हुए- एक बेटा और एक बेटी. लेकिन अमृता प्रीतम को शायर साहिर लुधियानवी से एकतरफा लगाव था. वह प्रीतम सिंह से अलग हो गईं. बताया जाता है कि दोनों सहमति से अलग हुए. जाने-अनजाने अमृता की जिंदगी में तब इमरोज की एंट्री हो चुकी थीं. इन दोनों की जानकार थी लेखिका उमा त्रिलोक. अमृता दोनों की नज़दीकी दोस्त रही थीं और उन पर उन्होंने एक किताब भी लिखी है- ‘अमृता एंड इमरोज़- ए लव स्टोरी.’ उमा ने लिखा है कि अमृता और इमरोज का लव रिलेशनशिप तो रहा है लेकिन इसमें आजादी बहुत है. उमा त्रिलोक का कहना है कि बहुत कम लोगों को पता है कि वो एक ही घर में रहते हुए अलग-अलग कमरों में रहते थे. जब इसका ज़िक्र होता था तो इमरोज़ कहा करते थे कि एक-दूसरे की ख़ुशबू तो आती है. ऐसा जोड़ा मैंने बहुत कम देखा है कि एक दूसरे पर इतनी निर्भरता है लेकिन कोई दावा नहीं है.

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Amrita Pritam Love Story : एक इश्क ऐसा भी…

साल 1958 की बात है. इमरोज को मुंबई (तब बोम्बे) में नौकरी मिल गई, कहा जाता है कि अमृता प्रीतम को दिल ही दिल में यह अच्छा नहीं लगा. अमृता को यह एहसास हुआ कि साहिर लुधियानवी की तरह इमरोज भी उनसे अलग हो जाएंगे. उन्हें यह डर क्यों सताया इसकी भी वजह है… दरअसल, साहिर लुधियानवी लेखिका अमृता प्रीतम से इश्क करते थे या नहीं, यह तो दफ्न हो गया, लेकिन अमृता प्रीतम गीतकार साहिर से एकतरफा इश्क जरूर करती थीं. यहां तक कि वह उनकी सिगरेट का आखिरी हिस्सा अपने पास रखती थीं. यह उनकी दीवानगी थी, लेकिन साहिर ने कभी अपने प्यार का इजहार अमृता के सामने नहीं किया. बावजूद इसके दुनिया यही जानती है कि साहिर और अमृता एक-दूसरे से इश्क करते थे. इसका सबसे दर्दनाक पहलू यह है कि अमृता और इमरोज ने कभी भी एक दूसरे से नहीं कहा कि वो एक-दूसरे से प्यार करते हैं.

Amrita Pritam Love Story : …. जब इमरोज को देखते ही उतर गया अमृता का बुखार

खैर बात हो रही है साल 1958 की और इमरोज के मुंबई पहुंचने की. इमरोज ने खुद कबूला है कि मशहूर फिल्म मेकर और एक्टर गुरु दत्त उन्हें अपने साथ रखना चाहते थे, लेकिन सैलरी पर बात नहीं बन पा रही थी. फिर एक दिन दरवाजे पर दस्तक हुई तो सामने अपॉइंटमेंट-लेटर था और वो उतने पैसे देने के लिए राजी हो गए जितना इमरोज चाहते थे. इमरोज के मुताबिक, वह बहुत खुश थे. दिल्ली में अमृता इकलौती अच्छी जानकार थीं, जिनसे वह अपनी खुशी शेयर कर सकते थे. इमरोज को देखकर अमृता खुश तो हुईं, लेकिन उनकी आंखें आंसुओं से भर आईं. मुंबई जाने के बाद अमृता को इमरोज ने फोन किया और उधर से आवाज आई और पूछा सब ठीक है ना. इस पर इमरोज बोले ठीक तो है, लेकिन वह मुंबई में नहीं रह सकते. यहां तक कि दिल्ली लौटने तक का फैसला ले लिया. उस वक्त अमृता की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी. मगर जब इमरोज दिल्ली पहुंचे तो अमृता कोच के बाहर खड़ी थीं और उन्हें देखते ही अमृता का बुखार उतर गया.

Amrita Pritam Love Story : एक इश्क जो बन गया मिसाल

अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी की प्रेम कहानी अजब थी, जिसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती. यह तो जमाना भी जानता है कि अमृता को साहिर लुधियानवी से मोहब्बत थी. इसका जिक्र अमृता प्रीतम ने अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘रसीदी टिकट’ में भी किया है. उन्होंने बताया कि कैसे साहिर लाहौर (अब पाकिस्तान) में उनके घर आया करते थे. उन्होंने लिखा है कि कैसे साहिर एक के बाद एक सिगरेट पिया करते थे. साहिर के जाने के बाद वो उनकी सिगरेट की बटों को दोबारा पिया करती थीं और बचने पर संभाल कर रख लिया करती थीं. अमृता की मानें तो उन्हें इस तरह सिगरेट की लत लग गई और फिर साहिर को अमृता ताउम्र नहीं भुला पाईं. यह कम रोचक नहीं है कि अमृता शायर साहिर से बेपनाह प्यार करती थीं.

यह जानकर भी इमरोज अमृता से एकतरफा इश्क कर बैठे. अमृता और इमरोज की दोस्ती के बारे में उमा त्रिलोक ने भी किताब में लिखा है कि, कोई अजीब बात नहीं थी. दोनों इस बारे में काफी सहज थे. उमा ने कहा भी था कि ‘साहिर एक तरह से आसमान हैं, जबकि इमरोज मेरे घर की छत’ साहिर और अमृता का प्लैटोनिक इश्क. इमरोज ने खुद उमा त्रिलोक से इस बात का जिक्र किया था कि जब उनके पास कार नहीं थी वो अक्सर अमृता को स्कूटर पर ले जाते थे. स्कूटर पर पीछे बैठने के दौरान अमृता की अंगुलियां हमेशा कुछ न कुछ लिखती रहती थीं. जैसे उनके हाथ में कलम हो. इमरोज ने खुद स्वीकार किया है कि अमृता प्रीतम ने कई बार पीछे बैठे हुए उनकी पीठ पर साहिर का नाम लिख दिया. इससे उन्हें पता चला कि वो साहिर को कितना चाहती थीं. इमरोज का कहना था कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर वो साहिर को चाहती हैं, तो चाहती हैं. मैं भी अमृता प्रीतम को चाहता हूं.

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Amrita Pritam Love Story : एक इंतजार जो मरकर भी न खत्म हुआ

अमृता और इमरोज अब इस दुनिया में नहीं है. दिसंबर, 2023 में इमरोज ने 97 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया, जबकि अमृता ने 31 अक्टूबर, 2005 को दुनिया से विदा ली. अमृता के जाने के 18 साल बाद इमरोज ने दुनिया छोड़ी, लेकिन वह इमरोज के जेहन में हमेशा रहीं. जब भी वह दिल्ली में मिलते तो सिर्फ और सिर्फ अमृता प्रीतम की जिंदगी को लेकर बात करते. यह भी एक सच है कि अमृता जहां भी जाती थीं इमरोज को साथ लेकर जाती थीं. दरअसल जब अमृता प्रीतम को राज्यसभा के लिए नॉमिनेट किया गया तो इमरोज रोज सुबह उनके साथ संसद भवन जाते थे और बाहर बैठकर उनका इंतजार किया करते थे. हालांकि, बड़े सरकारी आयोजन या फिर खाने पर जब अमृता जातीं तो इमरोज उनके साथ जाने की कोशिश तक नहीं करते थे. वह बाहर ही अमृता का घंटों इंतजार किया करते थे.

Amrita Pritam Love Story : मर कर भी नहीं मरीं अमृता

31 अक्तूबर 2005 को भले ही अमृता ने दुनिया को अलविंद कह दिया, लेकिन इमरोज के लिए वह कभी मरी ही नहीं. इमरोज कहते थे- उसने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं. वो अब भी मिलती है कभी तारों की छांव में कभी बादलों की छांव में कभी किरणों की रोशनी में कभी ख़्यालों के उजाले में. हम उसी तरह मिलकर चलते हैं चुपचाप… हमें चलते हुए देखकर फूल बुलाते हैं. हम फूलों के घेरे में बैठकर एक-दूसरे को अपना अपना कलाम सुनाते हैं. उसने जिस्म छोड़ है साथ नहीं. ‘

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