UP Politics: उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले यह खबर राजनीतिक गलियारे में तैर रही थी कि क्या लोकसभा चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी हटा दिए जाएंगे.
26 July, 2024
नई दिल्ली, धर्मेन्द्र कुमार सिंह: नेता भले क्यों न बलवान हो और रणनीति कितनी भी मजबूत क्यों न हो, लेकिन समय का सहारा न तो मिले तो सब ढाक के तीन पात साबित हो जाते हैं. वही हो रहा है जो उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले यह खबर राजनीतिक गलियारे में तैर रही थी कि क्या लोकसभा चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश से मुख्यमंत्री की कुर्सी हटा दिए जाएंगे? इस कयासबाजी को लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हवा दी कि लोकसभा चुनाव के बाद योगी को मुख्यमंत्री पद से हटा दिए जाएंगे.
हालांकि, अरविंद केजरीवाल ने यह भी कहा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लिए उनके उत्तराधिकारी के रूप में कार्यभार संभालने का रास्ता साफ कर रहे हैं. केजरीवाल के बयान का अमित शाह ने खंडन किया और कहा कि मोदी ही प्रधानमंत्री बने रहेंगे लेकिन योगी को हटाए जाने पर अमित शाह चुप रह गए और इससे यह शक गहरा गया कि लोकसभा चुनाव के बाद योगी के वाकई खेला हो सकता है. संशय का बादल और तब मंडरा गया जब BJP प्रदेश में सिर्फ सीटें 33 पर सिमट गई और राजनीतिक हवा चली कि योगी की कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा है, लेकिन संयोग कहें या प्रयोग केंद्र में भी मोदी सरकार को पूर्ण बहुमत नहीं मिला.
कौन कर रहा है साजिश?
लोकसभा चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ के खिलाफ आवाज उठने लगी और माहौल भी तैयार होने लगा, क्योंकि कैबिनेट की बैठक में प्रदेश के दो उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक लगातार नदारद रहे. अब सवाल यह भी उठता है कि दो उपमुख्यमंत्री योगी की बैठक में क्यों नदारद रहते हैं? जबकि सरकार के मुखिया योगी खुद हैं. सवाल यह भी है किसके इशारे पर दो डिप्टी सीएम कैबिनेट की बैठक में भाग नहीं लेते हैं? साफ बात है कि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. इसकी बानगी है कि BJP की कार्यसमिति की बैठक में योगी ने कहा, ‘कहीं पर हमलोग मानकर चलते हैं कि आत्मविश्वास में जीत ही रहें हैं तो स्वाभाविक रूप से वहां पर कहीं न कहीं हमें खामियाजा भी भुगतना पड़ता है.’ लेकिन केशव प्रसाद मौर्य ने यह बोल कर माहौल को गरमा दिया कि यूपी BJP में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. मौर्य ने कहा, ‘संगठन, प्रदेश और देश के नेतृत्व के सामने कह रहा हूं कि संगठन सरकार से बड़ा है, संगठन से बड़ा कोई नहीं होता है.’ ऐसा लगा कि मौर्य की इस भाषा को कहीं न कहीं से हवा मिल रही है.
इसके बाद विधायक से लेकर मंत्री और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के हाव-भाव में अंतर दिखने लगा. जो आवाज पहले नहीं उठती थी, वह अचानक क्यों राजनीतिक चिंगारी बनने लगी. लेकिन योगी भी डरने और झुकने वाले में से नहीं है. यह भी साफ है कि यूपी में हार के लिए सिर्फ योगी ही नहीं पूरी पार्टी जिम्मेदार है. इस तनातनी के बाद यूपी की लड़ाई दिल्ली तक पहुंची. केशव प्रसाद मौर्य पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिले और प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री मोदी से भी मिले, लेकिन इसके बाद भी केशव प्रसाद मौर्य के हाव-भाव में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है. वह लगातार विधायकों, मंत्रियों और सांसदों से मिलकर फोटो सोशल मीडिया में डाल रहे हैं. वहीं ब्रजेश पाठक भी योगी से दूरी बनाकर चल रहे हैं. इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है केशव प्रसाद मौर्य के बाद अब ब्रजेश पाठक भी सीएम योगी की मीटिंग में प्रयागराज नहीं पहुंचे, लेकिन योगी पहले ही 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए अपनी टीम की घोषणा कर चुके हैं, जिसमें न तो मौर्य हैं न ही पाठक हैं. अब योगी दिल्ली पहुंच गये हैं और संभावना है कि पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा से मिलेंगे और दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है.
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योगी पर खतरा है क्या?
लखनऊ से लेकर दिल्ली तक योगी पर चर्चा हो रही है आखिरकार क्या होगा? दरअसल राजनीति में होने को तो कुछ हो सकता है. मध्य प्रदेश में पार्टी को जीत दिलाने वाले शिवराज सिंह को फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं मिली. राजस्थान में वसुंधरा राजे किनारे कर दी गई और छत्तीसगढ़ में कमान विष्णुदेव साय को सौंप दी गई थी. ऐसे में योगी को किनारे करने में कितनी देरी लगेगी? दरअसल इस खेल में बहुमत का मामला है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस बार बहुमत नहीं मिला है, अगर कहीं से मोदी के मन में यूपी में बदलाव करने का सपना भी आया होगा तो, बहुमत नहीं मिलने की वजह से इसे अंजाम देने में दिक्कत हो रही हो. दूसरी बात है कि योगी आदित्यनाथ की टक्कर में कोई नेता नहीं है जो योगी के विकल्प के तौर पर देखा जा सकता है. तीसरी बात है कि योगी BJP के स्टार प्रचारक रहे हैं. उनकी पकड़ यूपी ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी है.
चौथी बात है कि योगी जिस प्रकार से यूपी में कानून व्यवस्था को काबू किया है, वह दूसरे नेताओं के बस की बात नहीं है क्योंकि अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी को गिरफ्तार करने की बात तो दूर बड़े बड़े नेता कार्रवाई करने से डरते थे. पांचवी बात है कि योगी जिस गति से यूपी का विकास कर रहें हैं, शायद ही दूसरे नेता ऐसा कर सकते हैं. यूपी को एक ट्रिलियन इकोनॉमी बनाने का सपना और 40 लाख करोड़ का इंवेस्टमेंट करना आसान बात नही है. छठी बात है कि योगी ने फायर ब्रांड हिंदू नेता की छवि को बहुत अच्छे से बनाया है और उनकी छवि BJP और RSS के हिंदुत्व के एजेंडे से भी मिलता जुलता है. सातवीं बात है कि अभी महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में योगी को मुख्यमंत्री पद से हटाना, मतलब तीन राज्यों के चुनाव में खतरा मोल लेना है. क्योंकि BJP अगर तीन राज्यों में चुनाव हारती है तो, केंद्र की राजनीति की दिशा और दशा बदल सकती है. क्योंकि BJP की राजनीति के लिए योगी मजबूती भी हैं और मजबूरी भी हैं. अगर योगी को सीएम पद से हटाया जाता है तो वह चुप नहीं बैठेंगे और पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं. शायद इसी कारण BJP आला नेतृत्व के लिए योगी को हटाना आसान नहीं है. भले ही लखनऊ से लेकर दिल्ली तक कयासबाजी जबरदस्त चल रही है.
धर्मेन्द्र कुमार सिंह (इनपुट एडिटर, लाइव टाइम्स)
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