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Bihar Politics: नीतीश टायर्ड, लालू नजरबंद…! चुनाव से पहले बिहार में बढ़ी सियासी गर्मी

by Divyansh Sharma
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Bihar Politics: Political turmoil intensifies in Bihar ahead of elections, Nitish silence, Lalu-Tejashwi strategy and rising crime spark debates.

Introduction Of Bihar Politics

Bihar Politics: बिहार में इसी साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. इससे पहले सियासी हलचल तेज है. बिहार की राजनीति में इन दिनों टायर्ड CM और रिटायर्ड ऑफिसर्स की खूब चर्चा है. बड़े-बड़े मामलों पर नीतीश कुमार की चुप्पी ने विपक्ष को हमलावर होने का मौका दे दिया है. दूसरी ओर, चर्चा नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार के राजनीति में आने को लेकर भी है.

लालू यादव के बराबर फैसला लेने का अधिकार मिलने के साथ ही तेजस्वी यादव ने भी बड़ा निर्णय लेते हुए टिकट बंटवारे को लेकर अपनी रणनीति साफ कर दी है. तेजस्वी यादव के इस निर्णय ने सत्ता पक्ष के नेताओं को लालू यादव पर निशाना साधने का मौका दे दिया है. मोकामा से पूर्व विधायक अनंत सिंह पर हुए हमले ने भी बिहार में जंगलराज की चर्चाओं को हवा दे दिया है. ऐसे में चुनाव से पहले कई मोर्चों पर सियासी हलचल तेज हो गई है.

Table Of Content

  • नीतीश कुमार की चुप्पी ने बढ़ाई Bihar Politics की गर्मी
  • नीतीश कुमार के बेटे को लेकर Bihar Politics में चर्चा
  • लालू यादव को लेकर हाई है Bihar Politics का पारा
  • अनंत सिंह पर हमले से Bihar Politics में जंगलराज की चर्चा
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नीतीश कुमार की चुप्पी ने बढ़ाई Bihar Politics की गर्मी

दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री और JDU यानि जनता दल यूनाइटेड के मुखिया नीतीश कुमार की चुप्पी इन दिनों सियासी चर्चाओं को जोर दे दिया है. विपक्षी नेता इन दिनों नीतीश कुमार को टायर्ड CM बता रहे हैं और रिटायर्ड ऑफिसर्स पर हमला बोल रहे हैं. कुछ दिनों पहले RJD यानि राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव कई मौकों पर नीतीश कुमार को थका हुआ मुख्यमंत्री बताया है. साथ ही दावा किया है कि बिहार में रिटायर्ड ऑफिसर्स के सहारे सरकार चल रही है.

कभी नीतीश कुमार के सलाहकार रहे जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मेडिकल बुलेटिन जारी करने तक की मांग कर डाली. सियासी गलियारों में सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर नीतीश कुमार को हो क्या गया है. बिहार की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले नीतीश कुमार कुछ दिनों पहले तक विरोधियों को अपने सटीक बयानों के बाण से छलनी कर देते थे, आजकल बड़े-बड़े मुद्दों पर चुप्पी साध ले रहे हैं.

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हाल में उनकी चुप्पी ने तो NDA का साथ छोड़कर विपक्षी महागठबंधन में शामिल होने की अटकलों को जन्म दे दिया था. हालांकि, बाद में नीतीश कुमार ने हाथ जोड़कर इन दावों को खारिज कर दिया था. फिर भी नीतीश कुमार अब न तो मीडिया के सामने और नहीं खुले मंच से विपक्ष पर हमले कर रहे हैं. हाल में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रगति यात्रा को लेकर पूरे बिहार का दौरा कर रहे हैं.

ऐसे में जब उन्होंने जीविका दीदियों से बात की तो भी विवाद हो गया. दरअसल, महिलाओं के कपड़ा पहनने और महिलाओं की सुंदरता पर उनके बयानों ने JDU समेत BJP और NDA की किरकिरी करा दी. इस मामले को संभालने के लिए ललन सिंह तक को भी उतरना पड़ा है. कुछ दिनों पहले ललन सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार थके नहीं है. नीतीश कुमार 20 साल शासन करके भी आज जिला-जिला का दौरा कर रहे हैं. छूटा हुआ विकास का काम पूरा कर रहे हैं. नीतीश कुमार केवल काम करते हैं और विपक्ष के लोग सिर्फ बात बनाते हैं.

नीतीश कुमार के बेटे को लेकर Bihar Politics में चर्चा

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी चुप्पी को लेकर ही चर्चाओं में नहीं हैं. नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार के सियासी डेब्यू को लेकर भी चर्चाएं चरम पर हैं. दावा किया जा रहा है कि नीतीश कुमार अपनी भीष्म प्रतिज्ञा तोड़ देंगे और निशांत कुमार जल्द ही JDU में बड़ी जिम्मेदारी संभाल सकते हैं. नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी को परिवार के सदस्यों के साथ-साथ पार्टी के कई नेता भी चाहते हैं कि निशांत को पार्टी की कमान सौंप दी जाए.

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क्या तेजस्वी और चिराग की तरह की तरह पिता की विरासत संभालेंगे नीतीश के बेटे निशांत कुमार?

पार्टी के वरिष्ठ नेता पार्टी हित की बात करते हुए मांग कर रहे हैं कि निशांत कुमार को सियासत की ट्रेनिंग मिल चुकी है, बस नीतीश कुमार के ग्रीन सिग्नल का इंतजार है. बिहार सरकार के वरिष्ठ मंत्री और नीतीश कुमार के नजदीकी श्रवण कुमार ने भी इस पर कई बार बयान दिया है. श्रवण कुमार का कहना है कि निशांत कुमार पार्टी में आते हैं तो यह पार्टी के अच्छा ही होगा. वह पढ़े लिखे हैं और ऐसे लोगों को राजनीति में आगे आना ही चाहिए. इतनी अच्छी सोच रखने वाले अगर युवा राजनीति में कमान संभालते हैं, तो समाज का भला ही होगा.

उन्होंने दावा किया कि निशांत कुमार अपने पिता की तरह बिहार की राजनीति और परिस्थितियों को समझते हैं. हालांकि, सियासी जानकारों का दावा है कि नीतीश कुमार न तो भ्रष्टाचार से समझौता करते हैं और नहीं परिवार को बढ़ावा देते हैं. ऐसे में नीतीश कुमार की छवि बेदाग रही है. बिहार के कई नेता भ्रष्टाचार और परिवारवाद के दलदल में फंस चुके हैं. वहीं, नीतीश कुमार की पारी अब तक बेदाग रही है और उन्होंने राजनीति में भी अपने परिवार के किसी सदस्य की उन्होंने एंट्री नहीं होने दी है. ऐसे में वह आगे भी ऐसा नहीं ही होने देंगे.

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लालू यादव को लेकर हाई है Bihar Politics का पारा

नीतीश कुमार की तरह लालू यादव भी बिहार की राजनीति का केंद्र बने हुए हैं. जिस तरह विपक्ष नीतीश कुमार को टायर्ड बताने में जुटा हुआ है, वैसे ही सत्ता पक्ष के निशाने पर लालू यादव हैं. लालू यादव को लेकर सत्ता पक्ष के नेताओं का दावा है कि उनके बेटे तेजस्वी यादव ने उन्हें नजरबंद कर दिया है. कुछ दिनों पहले JDU के प्रवक्ता नीरज कुमार ने मोतिहारी में कह दिया कि लालू यादव को राजनीतिक रूप से नजरबंद कर दिया गया है. उन्होंने यहां तक कह दिया कि लालू यादव को न तो बोलने की आजादी है और नहीं घूमने की. वह राजनीतिक रूप से नजरबंद हैं. उन्होंने इस दौरान तेजस्वी यादव को राजकुमार भी बताया.

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कुछ दिनों पहले RJD की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी के सभी फैसलों के लिए लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव को अधिकृत किया गया है. लालू यादव के बराबर फैसला लेने का अधिकार मिलते ही तेजस्वी यादव ने टिकट बंटवारे को लेकर अपनी रणनीति साफ कर दी. उन्होंने कहा है कि अपराधी और बाहुबली छवि वाले नेता को टिकट नहीं देंगे. साथ ही विधानसभा चुनाव में बहुत सोच समझकर टिकट बांटा जाएगा. ऐसे में इससे सियासी चर्चाओं ने और भी ज्यादा जोर पकड़ लिया है. माना जा रहा है कि एक तरह से लालू यादव ने तेजस्वी यादव को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया है. पार्टी और खुद लालू यादव की स्वीकृति भी इसी बात का संकेत देती है.

अनंत सिंह पर हमले से Bihar Politics में जंगलराज की चर्चा

बयानों और कारनामों से सुर्खियों में रहने वाले पूर्व बाहुबली विधायक अनंत सिंह ने भी बिहार के सियासी पारा हाई कर दिया है. अनंत सिंह एक बार फिर मुश्किलों में घिरते नजर आ रहे हैं. मोकामा सोनू-मोनू गैंग के साथ फायरिंग के मामले में अनंत सिंह को सरेंडर करना पड़ा है. वह आर्म्स एक्ट में पहले ही अपनी विधायकी गंवा चुके हैं. ऐसे में उनके सियासी भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे हैं. इस मामले पर तेजस्वी यादव की भी प्रतिक्रिया सामने आई थी.

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उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि राजधानी पटना के पास 200 राउंड गोलियां चल गई और अपराधी मीडिया में खुलेआम इंटरव्यू दे रहे हैं. उन्होंने दावा किया था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कानून बदल कर अपराधियों को जेल से छुड़वा रहे है और अपराध को बढ़ावा दे रहे हैं. साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि इस तरह का कांड अगर किसी और सरकार में हुआ होता,तो मीडिया में जंगलराज की डिबेट चल रही होती. इस मामले पर JDU और BJP समेत NDA के नेताओं ने नीतीश कुमार प्रशासन का बचाव किया था.

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इसी मामले पर बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा का भी बड़ा बयान दिय था. उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि राज्य में अपराध को किसी भी कीमत पर सरकार बर्दाश्त नहीं करेगी. हर हाल में अपराध पर लगाम लगेगा. उन्होंने कहा कि बिहार में एनकाउंटर भी हो रहे हैं और जो अपराधी सरकार की कानून व्यवस्था को चुनौती देगा, उसे किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा.

इसी मामले में केंद्रीय मंत्री ललन सिंह का नाम जोड़ने पर भी सियासी विवाद गहरा गया था. अपराधी सोनू-मोनू से मिलने के मामले में ललन सिंह ने सफाई देते हुए कह था कि वह मुंगेर से सांसद हैं और क्षेत्र के सभी लोगों से मिलते-जुलते हैं, लेकिन जवाब तो तेजस्वी यादव को देना चाहिए कि उन्होंने क्यों अनंत सिंह को RJD से टिकट दिया था. फायरिंग मामले में अनंत सिंह जेल जा चुके हैं, लेकिन उनको लेकर सियासी पारा हाई ही है.

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Conclusion

नीतीश कुमार, लालू यादव, निशांत सिंह, तेजस्वी याद और अनंत सिंह को लेकर बिहार की राजनीति अपने चरम पर है. बिहार में बढ़ते अपराध भी सियासी गर्मी को बढ़ा रहे हैं. नीतीश कुमार ने अपने 2 दशक के कार्यकाल बिहार को एक अलग पहचान दिलाई है और इसे कोई नकार भी नहीं सकता. यही कारण हैं कि उन्हें बिहार का चाणक्य भी कहा जाता है. सच यह भी है कि NDA के पास नीतीश कुमार के चेहरे का बिहार की राजनीति में तत्काल कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है. वहीं, लालू यादव का बिहार की राजनीति में कद कोई भी नहीं आंक सकता है.

किंग मेकर के रूप में काम करने वाले लालू की सियासी चुप्पी भी कई अटकलों को जन्म दे रही है. सभी मामले में दोनों तरफ से जबरदस्त बयानबाजी शुरू है. इन बातों में कई हद तक सच्चाई देखने को मिल रही है. दोनों ही नेता शांत हैं और उम्र का तकाजा भी है. फिर भी दोनों नेताओं के एक्टिव और इनएक्टिव होने पर खूब बयानबाजी हो रही है. बता दें कि बिहार में इस साल के नवंबर महीने में विधानसभा के चुनाव हो सकते हैं. ऐसे में इन तरह के मुद्दों ने अटकलों को हवा दे दी है. साथ ही चुनावी साल है. ऐसे में जाहिर है कि यह बयानबाजी आगे भी जारी रहेगी. लेकिन सवाल अब यह है कि क्या लालू-नीतीश वाकई थक गए हैं. बड़ा सवाल यह भी है कि इस साल के चुनाव में क्या यह दोनों दिग्गज चुनाव प्रचार करेंगे और मंच से भाषण देंगे.

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