Automatic Train Protection: पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में आज सुबह कंचनजंगा एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी के बीच हुई टक्कर में कई लोगों की जान गई. ऐसे में एक बार फिर रेलवे की ‘कवच टेक्नोलॉजी’ पर सवाल उठ रहें हैं. आइए जानते हैं क्या है ये ‘कवच’ जिससे रेल हादसे रोके जा सकते हैं.
17 June, 2024
Automatic Train Protection: सोमवार सुबह एक मालगाड़ी ने कंचनजंगा एक्सप्रेस को पीछे से टक्कर मारी. इसके बाद पैसेंजर ट्रेन के 3 डिब्बे पटरी से उतरकर एक-दूसरे पर चढ़ गए. पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में हुए इस रेल हादसे में अब तक कई लोगों के मरने और घायल होने की खबर सामने आ चुकी है. इस हादसे को रोकने में रेलवे की ‘कवच टेक्नोलॉजी’ पूरी तरह से फेल हो गई. वैसे क्या है ये ‘कवच टेक्नोलॉजी’ जिससे रेल हादसों को टाला जा सकता है और क्यों इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं, हम आपको बतातें हैं.
आखिर क्या है रेलवे की ‘कवच टेक्नोलॉजी’
साल 2022 में ‘कवच टेक्नोलॉजी’ का ट्रायल किया गया. इस कवच के कारण एक ही पटरी पर दौड़ रही दो ट्रेनें आपस में टकराने से बच जाती हैं. 2 साल पहले हुए ‘कवच’ के सफल परीक्षण के बाद इसे रेलवे का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा था. वहीं, रेल मंत्रालय ने उस वक्त बताया था कि इस टेक्नोलॉजी को देश के सभी रेलवे ट्रैक और ट्रेनों में इंस्टॉल किया जाएगा. मगर अब ये दावा कमजोर दिखाई दे रहा है. वैसे RDSO ने इस सिस्टम पर 2012 में काम शुरू कर दिया था. इस प्रोजेक्ट का नाम शुरुआत में Train Collision Avoidance System (TCAS) रखा गया था. फिर साल 2016 में इसका पहला ट्रायल हुआ.
‘कवच टेक्नोलॉजी’ कैसे करती है काम
इस ‘कवच’ का काम एक ही पटरी पर दौड़ने वाली दो ट्रेनों में से एक ट्रेन को ऑटोमेटिक रोकना है. निर्धारित दूरी के अंदर जैसे ही कवच के सेंसर को पटरी पर दूसरी ट्रेन के होने का सिग्नल मिलता है तब, एक ट्रेन अपने आप रुक जाती है. इसके अलावा डिजिटल सिस्टम रेड सिग्नल के दौरान किसी तकनीकी खराबी की जानकारी मिलते ही ये ‘कवच’ एक्टिव हो जाता है. साथ ही एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनें आमने-सामने आती हैं तो ये कवच ट्रेन की स्पीड कम करके इंजन में ब्रेक लगाता है. कुल मिलाकर इस कवच तकनीक के जरिए बड़े से बड़ा हादसा टाला जा सकता है.
कैसे तैयार किया गया ‘कवच’
इस ‘कवच टेक्नोलॉजी’ को देश के तीन वेंडर्स के साथ मिलकर RDSO यानी रिसर्च डिजाइन एंड स्टेंडर्ड्स ऑर्गेनाइजेशन ने डेवलप किया है. इस टेक्नोलॉजी के तहत रेलवे ट्रैक पर दौड़ती हुई ट्रेनों की सेफ्टी सुनिश्चित की जाती है. RDSO ने इसके लिए ट्रेन की स्पीड लिमिट अधिकतम 160 किलोमीटर प्रति घंटा तय की थी. इस सिस्टम में ‘कवच’ को पटरियों के साथ-साथ ट्रेन के इंजन में भी जोड़ा जाता है. इसका एक रिसीवर पटरियों के साथ कनेक्ट होता है. वहीं, ट्रेन के इंजन में एक ट्रांसमीटर फिट किया जाता है जिससे ट्रेन की सही लोकेशन का पता चलता रहे.
‘कवच टेक्नोलॉजी’ का लक्ष्य
साल 2022 से 2023 में रेलवे की ‘कवच टेक्नोलॉजी’ को 2 हजार किलोमीटर रेल नेटवर्क पर इस्तेमाल करने का लक्ष्य बनाया गया था. इसके बाद हर साल इसका टारगेट 4000-5000 किलोमीटर रेल नेटवर्क का था. मगर जिस तेजी से इस काम की उम्मीद थी उस लेवल पर ‘कवच टेक्नोलॉजी’ को लेकर काम नहीं हुआ. पश्चिम बंगाल में सोमवार सुबह ट्रेन हादसे ने इस बात को और सही साबित कर दिया है. ऐसे में जरूरी है कि रेलवे, यात्रियों की सुरक्षा के लिए जल्द से जल्द ‘कवच टेक्नोलॉजी’ को सभी ट्रैक और ट्रेन से जोड़े. नहीं तो दार्जिलिंग जैसे ट्रेन हादसे होते रहेंगे और यात्रियों की जान जाती रहेगी.
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