Who Is Sant Siyaram Baba: संत सियाराम बाबा हर रोज अपने आश्रम में इस उम्र में भी बिना चश्मे के रामायण पढ़ते थे. साथ ही वह अपना काम खुद किया करते थे.
Who Is Sant Siyaram Baba: आध्यात्मिक गुरु संत सियाराम बाबा का बुधवार को 94 साल की आयु में निधन हो गया. मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में नर्मदा नदी के किनारे स्थित आश्रम में संक्षिप्त बीमारी के बाद निधन हुआ. बता दें कि सियाराम बाबा को लेकर इलाके में कई तरह की कथाएं प्रसिद्ध हैं. कहा जाता है कि उन्होंने 10 सालों तक एक पैर पर खड़े होकर साधना की थी.
रोज करते थे रामचरितमानस का पाठ
संत सियाराम बाबा हर रोज अपने आश्रम में इस उम्र में भी बिना चश्मे के रामायण पढ़ते थे. साथ ही वह अपना सारा काम खुद ही किया करते थे. वह शांत और सरल स्वभाव के थे और बहुत कम बोलते थे. हालांकि, इसके बाद भी उनके दर्शन के लिए बड़ी संख्या में उनके भक्त पहुंचे रहते थे.
बाबा के चरणों में कोटि-कोटि नमन 🙏
— Gajendra Singh Patel (@gajendra4bjp) December 11, 2024
परम पूज्य श्री सियाराम बाबा जी ने जीवन पर्यंत रामायण का पाठ करते हुए समाज को धर्म, भक्ति और सदाचार का संदेश दिया तथा उनका सम्पूर्ण जीवन मानवता, धर्म और नर्मदा मैया की सेवा में समर्पित रहा। उनके सान्निध्य में शांति, दिव्यता और सकारात्मक ऊर्जा का… pic.twitter.com/S4A5d6IjRK
भगवान हनुमान की भक्ति में समर्पित बाबा भक्तों से सिर्फ 10 रुपये का दान लेते थे और उस धन का भी उपयोग वह नर्मदा नदी के घाटों के जीर्णोद्धार, धार्मिक संस्थानों और मंदिरों के विकास में करने के लिए दे देते थे. दावा यहां तक किया जाता है कि एक बार उन्होंने नर्मदा नटी पर घाटों के लिए उन्होंने करीब एक बार में 2 करोड़ 57 लाख रुपए दान कर दिए थे. संत सियाराम बाबा अपने गहरे आध्यात्मिक जुड़ाव के लिए जाने जाते थे. अपनी सादगीपूर्ण जीवनशैली के लिए जाने जाने वाले बाबा भट्याण आश्रम के संत थे.
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12 साल तक मौन व्रत भी किया धारण
बाबा ने करीब 12 साल तक मौन व्रत भी धारण कर रखा था. बाबा की वास्तविक उम्र को लेकर भी कई तरह की बात सामने आती है. कोई उन्हें 109 या 110 साल का बताता था. कई लोग उन्हें 130 साल का बताते रहे. हालांकि, बाबा ने कभी भी अपनी उम्र पर कभी चर्चा नहीं की. वहीं, उनके जन्मस्थान को लेकर भी मतभेद है. कई लोग कहते हैं कि उनका जन्म महाराष्ट्र के किसी जिले में हुआ है.
स्थानीय लोगों के मुताबिक बाबा ने 7वीं तक पढ़ाई. बाद में वह किसी संत के साथ रहने लगे. साधना और तप में वह इतना लीन हो गए कि बाद में उन्होंने अपना घर और परिवार भी त्याग दिया. वह तपस्या के लिए हिमालय में भी कई दिनों तक रुके थे और फिर मध्य प्रदेश में रहने लगे. बता दें कि ध्यान और साधना के जरिए उन्होंने अपने शरीर को मौसम के अनुकूल बना लिया था. कड़ाके की ठंड हो या फिर भीषण गर्मी बाबा केवल लंगोट में ही रहते थे.
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