Home Religious Pitru Paksha 2024: आखिर पितृ पक्ष में सत्तू खाने की क्यों है मनाही? कहां होता है अकाल मृत्यु से मरने वालों का पिंडदान?

Pitru Paksha 2024: आखिर पितृ पक्ष में सत्तू खाने की क्यों है मनाही? कहां होता है अकाल मृत्यु से मरने वालों का पिंडदान?

by Pooja Attri
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Pitru Paksha 2024: आखिर पितृ पक्ष में सत्तू खाने की क्यों है मनाही? कहां होता है अकाल मृत्यु से मरने वालों का पिंडदान?

Pitru Paksha 2024: क्या आप जानते हैं अकाल मृत्यु से मरने वाले लोगों का तर्पण और पिंडदान कहां किया जाता है. इसके बारे में आइए जानते हैं विस्तार से.

27 September, 2024

Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष (Shradh Paksha 2024) चल रहा है. इन दिनों पितरों का पिंडदान और तर्पण किया जाता है. गरुड़ पुराण के अनुसार, पितृ आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में धरती पर आते हैं. मान्यतानुसार, इस दौरान पितरों का तर्पण और दान-पुण्य करने से मोक्ष प्राप्त होता है. धार्मिक मान्यता यह भी है कि जिस घर के पितृ प्रसन्न रहते हैं वहां के लोगों को सभी सांसारिक सुख प्राप्त होते हैं. साथ ही वंश में विकास होता है. मगर क्या आप जानते हैं अकाल मृत्यु से मरने वाले लोगों का पिंडदान कहां किया जाता है. आइए जानते हैं विस्तार से.

क्या है अकाल मृत्यु?

गरुड़ पुराण में वर्णित है कि मृत्यु दो तरह से होती है एक प्राकृतिक और दूसरी अप्राकृतिक. किसी की समय से पहले मृत्यु हो जाती है तो इसे अकाल मृत्यु कहा जाता है. अकाल मृत्यु के प्रकार कुछ इस प्रकार हैं- नदी में डूबना, दुर्घटना में मौत और आत्महत्या करना आदि. जिस जातक की अकाल मृत्यु होती है उसका श्राद्ध प्रेतशिला में किया जाता है. अगर ऐसे जातक का श्राद्ध घर पर ही किया जाता है तो उसकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती, उसकी आत्मा प्रेतयोनि में भटकती रहती है.

वहीं, अगर जातक का पिंडदान प्रेतशिला में किया जाता है तो उसकी आत्मा को यथाशीघ्र मुक्ति प्राप्त होती है. इसी के चलते पितृपक्ष के दौरान बड़ी संख्या में लोग अपने पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए प्रेतशिला में पिंडदान करते हैं. दरअसल, प्रेतशिला में पितरों को सत्तू का पिंडदान करने का विधान है इसलिए इस दौरान सत्तू (Sattu Prohibition Pitru Paksha) खाना वर्जित होता है.

प्रेतशिला कहां है?

दुनियाभर में गया अपनी धार्मिक विरासत के लिए मशहूर है. पितृ पक्ष के दौरान इस शहर में फल्गु नदी के तट पर पितरों का पिंडदान और तर्पण किया जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितरों का तर्पण और पिंडदान गया में करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस पावन तीर्थ स्थल का नाम श्रीहरि विष्णु के परम भक्त गयासुर के नाम पर पड़ा. यह एक ऐसा धार्मिक स्थल है जो न केवल सनातन बल्कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए खास महत्व रखता है. बोधगया में ही भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था.

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