Maha Kumbh 2025 : उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ को लेकर तैयारियां तेज हो गई हैं. यहां पर हम बता रहे हैं कि कौन-कौन से डॉक्टर, इंजीनियर और विद्वान अपना पेशा छोड़ साधु बन गए हैं.
Maha Kumbh 2025 : उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ को लेकर लोगोंं में उत्साह देखा जा रहा है. ऐसे में कई साधु-संत नजर आएंगे जो कभी इंजीनियर, डॉक्टर, स्कॉलर या दूसरे क्षेत्रों के पेशेवर रहे हैं. आध्यात्मिक जीवन शुरू करने से पहले ये अपने-अपने फील्ड में समाज के लिए योगदान दे रहे थे. जैसे-जैसे दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन महाकुंभ नजदीक आ रहा है, इसकी प्रेरक कहानियां सामने आ रही है.
अखाड़ा परिषद के सचिव ने दिया बयान
राम रतन गिरी, सिविल इंजीनियर (सचिव, अखाड़ा परिषद) का कहना है कि हमारे अखाड़े में तो मुख्य तरह से लगभग 50 पर्सेंट संत पढ़े-लिखे हैं. जैसे मैं ही सिविल इंजीनियर हूं. मैंने 78 में लखनऊ से हिबिट पॉलिटेक्निक का नाम लखनऊ में सुना होगा, उससे सिविल इंजीनियरिंग करी थी और दो साल की सर्विस करने के बाद मेरा मन नहीं लगा सर्विस में, उसके बाद में 80 में अपने अखाड़े में शामिल हो गया था, दो साल की सर्विस के बाद.
सिविल इंजीनियर ने छोड़ा पेशा
दिगंबर कृष्णा गिरी (सिविल इंजीनियर) का कहना है कि मैंने कजारिया, डालमिया, बिरला, एसीसी कंक्रीट जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ काम किया है. तब मुझे आखिरकार पैसे की असली कीमत समझ में आई. जब मुझे जो पैसे की असली कीमत पता चली तो मैंने निरंजन अखाड़े में संन्यास ले लिया. सच बात यह है कि ये साधु-संत बताते हैं कि आध्यात्मिक अनुशासन का जीवन अपनाना कोई आसान यात्रा नहीं है. इसके लिए परंपराओं का सख्ती से पालन करना और सांसारिक बंधनों को त्यागने का साहस चाहिए. अखाड़े में शामिल होने के लिए परिवार को पूरी तरह से छोड़ना, त्याग और आध्यात्मिक जीवन के लिए मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत होती है.
रवींद्र पुरी, पीएचडी
महंत रवींद्र पुरी (पीएचडी, अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष) ने बताया कि हमारी परंपरा आप लोगों से बहुत भिन्न है. जब हमारे पास कोई संयासी संयस्त हो जाता है, जो भी व्यक्ति आएगा, उसको हम ब्रह्मचर्य की दीक्षा देंगे और जब हमें ये लगेगा कि ये व्यक्ति अखाड़े की परंपराओं का पालन करेगा, उसी समय उसको सन्यास दिया जाता है. संयस्त होने के पश्चात वो वापस घर नहीं जाएगा, हमारी परंपरा है वो वापस घर नहीं जाएगा और वो घर से संबंध नहीं रखेगा. तो जो उस परंपराओं का पालन कर पाता है, वही अखाड़े के जो हमारे मुख्य पद होते हैं, उसी को दिए जाते हैं. गौरतलब है कि अलग-अलग मठों में शामिल होने वाले कुछ लोगों का मानना है कि तपस्वी जीवन अपनाकर वे सामान्य व्यक्ति की तुलना में देश और दुनिया की ज्यादा अच्छे से सेवा कर सकते हैं.
स्वामी बालकानंद गिरि
आचार्य स्वामी बालकानंद गिरि (आनंद अखाड़ा) की मानें तो एक संयासी पढ़ा-लिखा है. डॉक्टर है या इंजीनियर है तो वह अपनी भौतिकता में रहते हुए जितनी देश की सेवा कर सकता है, उससे कई गुनी ज्यादा संयास की परंपरा में आने के बाद देश की सेवा कर सकता है, क्योंकि अगर वो गृहस्थ में रहकर कार्य करता है तो गृहस्थ में रहकर कहीं न कहीं उसको किसी न किसी व्यक्ति से मोह-ममता रहती है.
परंपराओं का पालन
इस पर बात करते हुए साधु-संत बताते हैं कि आध्यात्मिक अनुशासन का जीवन अपनाना कोई आसान यात्रा नहीं है. इसके लिए परंपराओं का सख्ती से पालन करना और सांसारिक बंधनों को त्यागने का साहस चाहिए. अखाड़े में शामिल होने के लिए परिवार को पूरी तरह से छोड़ना, त्याग और आध्यात्मिक जीवन के लिए मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत होती है. अलग-अलग मठों में शामिल होने वाले कुछ लोगों का मानना है कि तपस्वी जीवन अपनाकर वे सामान्य व्यक्ति की तुलना में देश और दुनिया की ज्यादा अच्छे से सेवा कर सकते हैं.
कब से शुरू होगा महाकुंभ?
हर 12 साल में आयोजित होने वाला महाकुंभ 13 जनवरी से शुरू होगा और 45 दिनों के बाद 26 फरवरी को खत्म होगा. इसमें देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु आने वाले हैं.
अधिकारियों ने दी जानकारी
इस मुद्दे पर बात करते हुए एक अधिकारी ने बताया कि महाकुंभ को लेकर तैयारियां जोरों पर है. सुरक्षा से लेकर रहने की सुविधा तक हर तरह से इंतजाम पुख्ता किए जा रहे हैं. इस बीच डॉक्टरों की भी टीम को तैनात किया गया है.
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