Introduction Of Varanasi Dev Deepawali 2024
Varanasi Dev Deepawali 2024: पूरे देश में त्योहारों का सीजन चल रहा है. दीपावली का त्योहार हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है. रोशनी का पर्व दीवाली हम सब धूमधाम से मनाते हैं. इसके बाद हम एक त्योहार मनाते हैं, जिसे हम देव दीपावली कहते हैं. यह त्योहार वाराणसी में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन काशी में खुद देवताओं का आगमन होता है.
Table Of Content
- क्या है भगवान राम से कनेक्शन?
- इस साल कब मनाई जाएगी देव दीपावली?
- क्या है देव दीपावली की पौराणिक कथा?
- देव दीपावली के दिन किस राक्षस का हुआ था वध?
- काशी में देवताओं के प्रवेश पर क्यों लगा था प्रतिबंध?
- अहिल्याबाई होलकर ने की शुरुआत
- क्या है देव दीपावली का शिव और काशी से संबंध?
- इस साल देव दीपावली में क्या होगा खास?
- देव दीपावली पर लेजर शो लगाएगा चार चांद
- देव दीपावली के दिन क्या करना चाहिए?
- इन जगहों पर भी खास तरीके से मनाई जाती है देव दीपावली
- काशी में पिछले साल कैसे मनाई गई थी देव दीपावली ?
- गंगा समिति और काशी के धर्माचार्य के बीच विवाद
क्या है भगवान राम से कनेक्शन?
बता दें कि भगवान शिव की नगरी वाराणसी की परंपरा प्राचीन काल से ही धार्मिक रही है. इस कड़ी में कार्तिक माह की अमावस्या के दिन भगवान राम ने बुराई पर अच्छाई की जीत पाई थी. यानी रावण का वध किया था और 14 साल का वनवास काटकर अपने राज्य अयोध्या लौटे थे. इसलिए कार्तिक अमावस्या के दिन दीवाली का पर्व मनाया जाता है. दीवाली के 15 दिन बाद एक और त्योहार मनाया जाता है, जो हिंदू मान्यता के दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण होता है. इस पर्व को देव दीपावली के नाम से जाना जाता है.
इस साल कब मनाई जाएगी देव दीपावली?
आपको बता दें कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है. इसके साथ ही इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने की पुरानी प्रथा है. ऐसा माना जाता है कि पवित्र नदियों में स्नान करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और मन चाहा फल देते हैं. देव दीवाली कार्तिक की पूर्णिमा की रात मनाई जाती है, जो दीवाली के 15 दिन बाद पड़ता है. इस साल देव दीपावली का त्योहार 15 नवंबर को मनाया जाएगा. 15 नवंबर को दोपहर 12 बजे से शुरू होकर 19 नवंबर, 2024 को शाम 5:10 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा.
क्या है देव दीपावली की पौराणिक कथा?
लोगों के मन में यह सवाल जरूर आता है कि आखिर क्यों दीवाली के बाद देव दीपावली का त्योहार मनाया जाता है? देव दीपावली को लेकर हिंदू धर्म में कई पौराणिक कथाएं हैं. देव दीपावली का अर्थ होता है देवताओं की दीपावली. ऐसा माना जाता है कि इस दिन सभी देवी-देवता दीवाली का पर्व मनाने के लिए धरती पर उतरते हैं, जिसके लिए वाराणसी के घाटों को बेहद खूबसूरत तरीके से सजाते हैं. देव दीपावली को लेकर ऐसा कहा जाता है कि यह भारत में त्योहारों के सीजन का आखिरी त्योहार होता है.
देव दीपावली के दिन किस राक्षस का हुआ था वध?
देव दीपावली से जुड़ी यह पौराणिक कथा बहुत प्रसिद्ध है. कर्णपर्व नामक जगह पर तरकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली नाम के तीन राक्षस भाई रहते थे. इन्हें त्रिपुरासुर राक्षस भी कहा जाता था. अपने शक्तियों से उन्होंने सोने, चांदी और लोहे से तीन नगरों का निर्माण किया था. इन नगरों को त्रिपुर के नाम से जाना जाता था. बता दें कि त्रिपुरासुर राक्षसों ने घोर तपस्पा से भगवान ब्रह्मा का आशीर्वाद प्राप्त किया और बहुत शक्तिशाली बन गए. इसके बाद से उन्होंने लोगों के साथ-साथ देवताओं को भी परेशान करना शुरु कर दिया. इन राक्षसों से परेशान होकर देवताओं ने भगवान शिव से त्रिपुरासुर राक्षसों का अंत करने की प्रार्थना की. बाद में भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर राक्षसों का वध कर दिया. तभी से उन्हें त्रिपुरारि या त्रिपुरांतक नाम भी दिया गया. राक्षसों के अंत से देवताओं में खुशी की लहर दौड़ गई. उन्होंने स्वर्ग लोक में दीपोत्वस मनाया, इसे देव दीपावली कहा गया. इसके बाद से हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली का त्योहार मनाया जाता है.
काशी में देवताओं के प्रवेश पर क्यों लगा था प्रतिबंध?
इसके अलावा स्कंद पुराण में एक और कथा का जिक्र किया गया है. ऐसा माना जाता है कि जब काशी के राजा दिवोदास काशी में राज किया करते थे, तब एक बार उन्होंने काशी में देवताओं के आने पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस घटना के बाद से कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव वेष बदलकर काशी पहुंचे और पंचगंगा घाट पर स्नान किया था. जब इस बात की जानकारी राजा दिवोदास को हुई, तो उन्होंने देवताओं पर लगे इस प्रतिबंध हटा दिया. इससे देवता खुश हो गए और काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपोत्सव मनाया.
अहिल्याबाई होलकर ने की शुरुआत
ऐसा माना जाता है कि देव दीपावली की शुरुआत भगवान भोलेनाथ से जुड़ी है, लेकिन घाटों पर दीप जलाने की कहानी पंचगंगा घाट से शुरु हुई है. साल 1785 में आदि शंकराचार्य से प्रेरणा लेकर महारानी अहिल्याबाई होलकर ने काशी विश्वनाथ मंदिर का उद्धार कराया था. इसके बाद अहिल्याबाई ने पंचगंगा घाट पर पत्थर से बने हजारों स्तंभों पर दीप जलाकर देव दीपावली की शुरुआत की थी. इसके बाद इस त्योहार को और भव्य बनाने में अपना योगदान काशी नरेश महाराज विभूति नारायण सिंह ने दिया था.
क्या है देव दीपावली का शिव और काशी से संबंध?
काशी और शिव का बहुत पुराना संबंध है. त्रिपुरासुर राक्षसों यानी तरकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली का वध करने के बाद भगवान शिव ने गंगा में स्नान किया. इस दौरान सभी देवी-देवता पृथ्वी पर काशी में गंगा स्नान किया और स्वर्ग के साथ ही काशी में भी दीपोत्सव मनाया. ऐसे में देव दीपावली का भगवान शिव और काशी से गहरा संबंध है.
इस साल देव दीपावली में क्या होगा खास?
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में इस बार की देव दीपावली बेहद खास होने वाली है. इस साल काशी में गंगा दोनों किनारों पर स्थित घाटों पर दीये जलाएं जाएंगे. इसकी तैयारी जोरों-शोरों से चल रही है. घाटों पर दीये जलाने के साथ लेजर शो और थ्री डी मैपिंग शो की भी तैयारियां की गई हैं. इस शो के जरिए काशी, शिव और गंगा की महिमा को ऐतिहासिक स्मारक पर दर्शाया जाएगा. इसके अलावा काशी विश्वनाथ धाम के सामने गंगा उस पार म्यूजियम फायर क्रैकर शो का आयोजन भी होगा. वाराणसी के डीएम एस राजलिंगम ने बताया कि इस बार देव दीवाली पर वाराणसी के घाटों पर कुल 17 लाख दीये जलाएं जाएंगे. इसमें 12 लाख दीप जिला प्रशासन की ओर से और 5 लाख दीप स्थानीय समितियों के की ओर से घाटों पर जलाए जाएंगे.
देव दीपावली पर लेजर शो लगाएगा चार चांद
इस बार काशी में देव दीपावली के मौके पर प्रशासन की ओर से लेजर शो का भी आयोजन कराया जाएगा. काशी में देव दीवाली के दिन चेतसिंह घाट पर होने वाला लेजर शो और 3 डी मैपिंग प्रोजेक्शन चार चांद लगाएगा. यह शो यहां आने वाले पर्यटकों को शिव, काशी और धरती पर गंगा अवतरण की कथा बताएगा. देव दीवाली के दिन इस शो का 3 बार आयोजन होगा. ऐसे में यहां आने वाले पर्यटकों को बेहद पसंद आता है. इसके साथ ही काशी में देव दीवाली के समय दशाश्वमेध और अस्सी घाट पर होने वाली महाआरती भी खास आकर्षण का केंद्र होती है. साल में सिर्फ एक बार इसका आयोजन होता है, जिसमें 21 बटुक और 42 कन्याएं रिद्धि-सिद्धि के तौर पर यहां आरती करती हैं.
देव दीपावली के दिन क्या करना चाहिए?
देव दीपावली के दिन सुबह नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर नहाएं या हो सके तो गंगा में स्नान करें. इसके बाद साफ कपड़े पहनकर दीपक में घी डालकर दान करें. देव दीपावली के दिन विधिवत रूप से भगवान शिव की पूजा करें. शाम के समय में दीपक जलाएं और दीपदान करें. इसके बाद अंत में कुछ खास मंत्रों का जाप करें और आरती करें. इससे आपको लाभ मिल सकता है.
इन जगहों पर भी खास तरीके से मनाई जाती है देव दीपावली
देव दीपावली का यह पवित्र पर्व काशी में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है. लेकिन सिर्फ वाराणसी ही नहीं देश भर में कई ऐसी जगहें हैं, जहां पर बेहद धूमधाम से देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है. इसमें ऋषिकेश, हरिद्वार, अयोध्या समेत कई महत्वपूर्ण शहर शामिल हैं. इन जगहों पर भी काशी की तरह पूरे शहर को लाइट और दीयों के साथ सजाया जाता है.
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काशी में पिछले साल कैसे मनाई गई थी देव दीपावली ?
काशी के घाटों पर हर साल भव्य रूप से देव दीपावली का आयोजन किया जाता रहा है. देव दीपावली को देखने के लिए दूर-दराज से भारी संख्या में लोग काशी पहुंचते हैं. साल 2023 में 27 नवंबर को देव दीपावली मनाया गया था. इसको लेकर पर्यटन विभाग, गंगा समितियां, जिला प्रशासन व मंदिर प्रशासन की तरफ से जबरदस्त तैयारियां की गई थी. इस देव दीपावली को देखने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद पहुंचे थे. साथ ही 70 देशों के राजनयिक भी देव दीपावली की दिव्यता के साक्षी बने थे. इसमें इंडोनेशिया, इटली, चीन, पोलैंड, रूस, नेपाल, भूटान, ग्रीस समेत अन्य देशों के राजदूत, उच्चायुक्त और शीर्ष अधिकारी शामिल थे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नमो घाट से दीप जलाकर दीपोत्सव की शुरुआत की थी.
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Dev Deepawali पर गंगा समिति और काशी के धर्माचार्य के बीच विवाद
पिछले साल देव दीपावली के दिन बनारस के सभी 84 घाटों पर भारी संख्या में दिये जलाए गए थे. इसके साथ ही अलग-अलग घाटों को विभिन्न आकृतियों और रंगोली बनाकर सजाया गया था. पिछले साल इस पर विवाद भी देखने को मिला था. वैसे तो कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है और पिछले साल इस तिथि को लेकर काफी हंगामा हुआ था. गंगा समितियां और काशी के धर्माचार्य के बीच विवाद देखा गया था. काशी के धर्माचार्य के अनुसार तिथि 26 नवंबर की तिथि को योग्य बताया गया था, जबकि गंगा समिति के सदस्य 27 नवंबर को ही देव दीपावली मनाने पर अड़ गए थे. बाद में किसी तरह मामले को सुलझा लिया गया था.
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