Mahakumbh Mela 2025: महाकुंभ में जंगम संन्यासियों का संगम किनारे छावनी में प्रवेश पारंपरिक शोभायात्रा के साथ हुआ है. मंत्रोच्चार के बीच साधुओं ने श्रद्धालुओं को आशीर्वाद दिया.
MahaKumbh Mela 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संगम के किनारे महाकुंभ का आयोजन होने में बस कुछ दिन ही बचा है. इसी के साथ महाकुंभ में अखाड़ों का प्रवेश भी शुरू हो चुका है. इसी क्रम में मंगलवार को जंगम संन्यासियों ने महाकुंभ में अपनी छावनी में प्रवेश किया है. इस दौरान उन्होंने अपनी परंपरागत शोभायात्रा यानी पेशवाई के दौरान अलग ही आभा बिखेरी.
वीरशैव परंपरा का हिस्सा हैं जंगम संन्यासी
बता दें कि जंगम संन्यासी प्रमुख रूप से शैव संप्रदाय से जुड़े हुए हैं. जंगम का अर्थ होता है ‘चलता हुआ शिवलिंग’, जो किसी भी समागम में शिव की उपस्थिति को ले जाने वाले साधकों का प्रतीक है. इसके साथ ही इस संन्यासियों को वीरशैव परंपरा का हिस्सा माना जाता है, जो भगवान शिव के प्रति अपनी अटूट भक्ति और समाज में धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए पूरी दुनिया में विख्यात हैं. इनका जिक्र बसव पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है.
दिव्य, भव्य और डिजिटल
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महाकुम्भ 2025
अध्यात्म एवं आधुनिकता का महासमागम 'महाकुम्भ 2025'
सनातन गर्व
महाकुम्भ पर्व
🗓️ 13 जनवरी – 26 फरवरी, 2025
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पुराणों के मुताबिक जंगम संन्यासी शिवभक्ति और धर्म की सच्ची भावना के प्रचार-प्रसार के साक्षी माने गए हैं. धार्मिक पुराणों में मान्यता है कि शिव ने जंगम ऋषियों को अपने माथे के पसीने से उत्पन्न किया था और उन्हें अमरता का वरदान भी दिया था. ऐसे में कहा जाता है कि जंगम साधुओं ने प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय में समाज में धर्म और नैतिक मूल्यों को स्थापित करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. संन्यासी शिव और पार्वती से जुड़ी सभी कथाएं सुनाकर भक्ति और साधना का संदेश फैलाते हैं.
जंगम संन्यासियों के प्रमुख कार्य
- आध्यात्मिक संदेश: जंगम संन्यासी शिव और पार्वती से जुड़ी सभी कथाएं सुनाकर सुनाकर भक्ति और साधना का संदेश फैलाते हैं.
- शिव मंदिरों के पुजारी: जंगम शिव मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों की अध्यक्षता करते हैं.
- समाज सुधारक: वीरशैव आंदोलन के जरिए उन्होंने जातिवाद और भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया.
- शिवभक्ति का प्रचार: भारत के विभिन्न राज्यों जैसे कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में जंगम परंपरा का गहरा प्रभाव है.
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नेपाल में भी फैली है परंपरा
बता दें कि जंगम साधुओं की परंपरा भारत के साथ-साथ नेपाल और अन्य देशों तक फैली हुई है. पुराणों और अभिलेखों के मुताबिक 9वीं शताब्दी में स्थापित इन मठों ने भारत के बाहर वीरशैव परंपरा को नेपाल में प्रचारित किया. उत्तर प्रदेश के काशी में स्थित जंगमवाड़ी मठ वीरशैव धर्म का प्रमुख केंद्र है.
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ऐसे में मंगलवार को भी महाकुंभ में जंगम संन्यासियों का छावनी में प्रवेश पारंपरिक शोभायात्रा के साथ हुआ. वाद्ययंत्रों, शंखध्वनि और मंत्रोच्चार के बीच साधुओं ने शिव का गुणगान करते हुए श्रद्धालुओं को आशीर्वाद दिया. उनकी उपस्थिति ने महाकुंभ को और भी आध्यात्मिक बना दिया. जंगम संन्यासियों का महाकुंभ में प्रवेश ने धार्मिक परंपरा को जीवंत किया है और शिवभक्ति और समाज सेवा का संदेश भी देता है.
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