Dusshera 2024 : राजस्थान के जोधपुर में भगवान राम की नहीं बल्कि रावण की पूजा की जाती है और इसकी वजह यह है कि यहां रावण के वंशज रहते हैं.
Dusshera 2024 : हर साल दशहरा का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. विभिन्न प्रदेशों और शहरों में इसकी परंपराओं और मान्यताओं का अलग अलग जिक्र सुनने को मिलता है, लेकिन राजस्थान के जोधपुर की दशहरे को लेकर एक अलग पहचान है. आपको जानकार हैरानी होगी कि यहां भगवान राम की नहीं बल्कि रावण की पूजा की जाती है और इसकी वजह यह है कि यहां रावण के वंशज रहते हैं. इसलिए जब पूरी दुनिया रावण के दहन पर बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए खुशियां मनाती है तो यहां के लोग रावण दहन के समय शोक मनाते हैं.
जोधपुर आकर बस गए रावण के वंशज
शनिवार को जहां पूरा देश दशहरा का त्योहार मना रहा है तो जोधपुर में रावण के वंशज शोक मनाते नजर आ रहे हैं. ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर दिया था तो उनके वंशज जोधपुर आ गए और यहीं बस गए. आज भी यहां के लोग उसी माता की पूजा करते हैं, जो रावण की कुलदेवी थी. यहां के लोगों ने रावण का मंदिर भी बनवाया है, जो कि मेहरानगढ़ फोर्ट के पास ही स्थित है.
कौन हैं श्रीमाली गोदा ब्राह्मण
जोधपुर में श्रीमाली समुदाय के लिए दशहरा का दिन शोक का होता है. श्रीमाली समुदाय के लिए दशहरा शुद्धिकरण अनुष्ठान करने का दिन होता है. इस समुदाय का मानना है कि रावण की भक्ति से उन्हें विरासत में ताकत और ज्ञान मिला है और यहां के लोग भगवान शिव के विद्वान भक्त के रूप में रावण की विरासत को कायम रखे हुए हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण का विवाह राजकुमारी मंदोदरी से हुआ था, जो जोधपुर की रहने वाली थीं. वहीं, ऐसा भी माना जाता है कि रावण की बारात में शामिल होकर आये कुछ लोग जोधपुर में बस गये और रावण के वही वंशज अब श्रीमाली गोदा ब्राह्मण के नाम से जाने जाते हैं.
लंका दहन के बाद बदला जाता है जनेऊ
लंका दहन के बाद यहां के लोग सबसे पहले स्नान करते हैं, जो कि इनके लिए अनिवार्य होता है. इसके बाद जनेऊ बदला जाता है और फिर मंदिर में रावण व शिव की पूजा की जाती है. इस दौरान रावण की पत्नी मंदोदरी की भी पूजा की जाती है. पूजा के बाद श्रीमाली गोदा ब्राह्मण प्रसाद ग्रहण करते हैं. बता दें कि इस समुदाय को लोग रावण का दहन कभी नहीं देखते हैं. यहां के लोगों का मानना है कि रावण बहुत ज्ञानी था. उनकी बहुत अच्छाई थी, जिन्हें हम निभाते हैं. रावण दहन के दिन शोक की प्रथा लंबे समय से चली आ रही है.
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