Introduction
Bihar Election 2025: बिहार में विधानसभा का कार्यकाल नवंबर महीने में खत्म होने वाला है. इससे पहले ही सियासी हलचल तेज हो गई है. RJD यानी राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने 5 जनवरी को एक बार फिर से एलान किया है कि चुनाव के बाद अगर सत्ता में उनकी सरकार आती है, तो उनकी पार्टी बिहार में ‘माई बहन मान योजना’ लाएगी. इसके तहत महिलाओं के खाते में सीधे 2.5 हजार रुपये ट्रांसफर किए जाएंगे. तेजस्वी यादव ने कहा था कि चुनाव के बाद महागठबंधन की सरकार बनने के एक महीने के भीतर इस योजना की शुरुआत हो जाएगी.
इससे पहले उन्होंने 14 दिसंबर को एलान किया था कि इस योजना के तहत नए बिहार के साथ ‘समृद्ध महिला, सुखी परिवार’ का सपना भी सच होगा. बिहार के फिर से निर्माण की नींव महिलाओं की समृद्धि के बिना अधूरी है. ऐसे में तेजस्वी यादव के इस एलान के कई मायने निकाले जा रहे हैं. साथ ही यह भी माना जा रहा है कि नीतीश कुमार की तरह ही तेजस्वी यादव भी महिलाओं को साधने का प्रयास कर रहे हैं. बता दें कि वर्तमान में कई ऐसे राज्य हैं, जहां पर महिला वोटर्स को लुभाने के लिए इस तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं.
Table Of Content
- क्यों पड़ी तेजस्वी यादव को जरूरत?
- क्या कहते हैं पिछले चुनाव के आंकड़े?
- किन-किन राज्यों में लागू है इस तरह की योजना?
- क्या है नीतीश कुमार का ब्रह्मास्त्र?
क्यों पड़ी तेजस्वी यादव को जरूरत?
बिहार में जैसे ही तेजस्वी यादव ने इस बात का एलान किया, वैसे सियासी हलचल तेज हो गई. बिहार में सत्ता पक्ष के नेताओं ने तेजस्वी यादव के इस एलान को झूठा बताते हुए दावा किया कि महिलाएं उनके वादों पर यकीन नहीं करेंगी. वहीं, सियासी जानकारों का भी दावा है कि साल 2005 में नीतीश कुमार महिला सशक्तिकरण के वादे पर बिहार (Bihar Election 2025) की सत्ता पर काबिज हुए थे. इसके बाद से खुद नीतीश कुमार और उनकी पार्टी JDU यानी जनता दल यूनाइटेड के नेता भी इस बात को दोहराते रहते हैं कि बिहार में महिलाओं के लिए जितना काम नीतीश कुमार ने किया उतना अभी तक किसी ने भी नहीं किया था.
ऐसे में माई-बहन मान योजना के एलान के बाद से यह समझा जा रहा है कि तेजस्वी यादव की रणनीति में कहीं न कहीं महिला वोटर्स को साधने की जरुरत पड़ गई है. बेरोजगारी, अपराध और नौकरी के मुद्दे पर तेजस्वी यादव ने सरकार को खूब घेरा है और कई तरह के वादे भी कर चुके हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि RJD और तेजस्वी यादव के लिए यह रणनीति साल 2025 के चुनावों के लिए एक बहुत बड़ा दांव है. गौरतलब है कि बिहार की आधी आबादी यानी महिला वोटर्स का दबदबा सबसे अधिक है. इस बात के गवाह खुद पिछले कुछ चुनाव में मतदान के आंकड़े हैं. हालांकि, यह प्रयोग बिहार से बाहर कुछ राज्यों में पहले किया जा चुका है, जिसका लाभ भी राजनीतिक पार्टियों को मिलते हुए देखा गया है.
क्या कहते हैं पिछले चुनाव के आंकड़े?
हाल के समय में बिहार में निर्वाचन विभाग ने एक सर्वे कराया था. इस सर्वे के मुताबिक राज्य में पुरुष वोटर्स की संख्या महिला वोटर्स की संख्या की तुलना में कहीं ज्यादा अधिक है. एक हजार पुरुष वोटर्स पर महिला वोटर्स का औसत 907 है. हालांकि, जब यही आंकड़े मतदान में परिवर्तित होते हैं, तो बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिलता है. मतदान के समय यह अनुपात एक हजार पुरुष वोटर्स की तुलना में 1017 तक हो जाता है. ऐसे में यह आंकड़े किसी भी सियासी दल की चिंता बढ़ाने के लिए काफी हैं. इसके अलावा पिछली बार यानी साल 2020 के चुनाव में भी महिला वोटर्स ने पूरा खेल पलट दिया था.
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निर्वाचन आयोग के मुताबिक बिहार में साल 2020 में कुल मतदाताओं की संख्या 7 करोड़ 79 लाख थी. इसमें महिलाओं की संख्या 3 करोड़ 39 लाख थी. वहीं , पुरुष वोटर्स की संख्या 3 करोड़ 79 लाख थी. फिर भी महिलाओं ने 59.7 फीसदी वोट किया था. वहीं, पुरुषों ने 54.7 प्रतिशत मतदान किया था. साल 2015 के चुनाव में 56.66 फीसदी मतदान पूरे बिहार में देखने को मिला थी. इसमें भी अकेले महिलाओं ने 54.49 फीसदी वोट कास्ट किया था और पुरुषों का वोट प्रतिशत 51.12 प्रतिशत ही था. इसी तरह साल 2015 के चुनावों में 56.66 फीसदी मतदान हुआ और इसमें महिलाओं का वोट प्रतिशत जहां 60.48 फीसदी रहा. वहीं, पुरुष का वोट प्रतिशत 53.32 फीसदी था. आंकड़ों के आधार पर यह पूरी तरह से साफ है कि महिला वोटर्स जिसे चाहें उसे बिहार के सत्ता की चाबी सौंप सकती हैं.
किन-किन राज्यों में लागू है इस तरह की योजना?
बता दें कि देश के किसी राज्य में यह प्रयोग पहली बार नहीं होगा. इससे पहले पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक और हिमाचल में भी इस तरह की योजनाओं का एलान किया जा चुका है. हिमाचल प्रदेश में इस समय इंदिरा गांधी प्यारी बहना सुख सम्मान निधि योजना लागू की गई है. इसके तहत कांग्रेस की सरकार महिलाओं को 1500 रुपये की आर्थिक मदद दे रही है. कांग्रेस शासित कर्नाटक में भी गृह लक्ष्मी योजना शुरू की गई है. इसके योजना में कर्नाटक सरकार 2,000 रुपये महिलाओं को दे रही है. यह कांग्रेस के चुनावी वादे का हिस्सा था.
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साल 2021 में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लक्ष्मी भंडार योजना को शुरू किया था. इस योजना के तहत महिलाओं को 1200 रुपये तक की मदद दे रही है और इसका असर भी चुनाव में देखने को मिला था. मध्य प्रदेश की लाडली बहन योजना भी इस लिस्ट में शामिल है. साल 2023 में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने चुनाव से ठीक पहले इस योजना का एलान किया था, जिसके तहत हर महीने 1250 रुपया उनके खाते में भेजा जा रहा है. इसके बल पर ही एंटीकबेंसी के बावजूद राज्य में BJP यानी भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गई. झारखंड में मईंया सम्मान योजना की शुरुआत हेमंत सोरेन की ओर से की गई है. इसके तहत एक हजार रुपये की मदद दी जा रही है. पिछले साल हुए चुनाव में इस राशि को बढ़ाकर 2.5 हजार करने का एलान किया गया. इसका असर चुनाव में दिखा और हेमंत सोरेन एक बार फिर से सत्ता पर काबिज हो गए.
महाराष्ट्र में लाडकी बहिन योजना की शुरुआत पिछले साल चुनाव से पहले से जून के महीने में की गई थी. इस योजना के तहत 1500 राशि दी जा रही है, जिसका असर विधानसभा चुनाव में दिखा और BJP के नेतृत्व में महायुति सरकार फिर से बन गई. अगले महीने तक दिल्ली में चुनाव होने वाले हैं. इस बीच AAP यानी आम आदमी पार्टी ने महिला सम्मान योजना की घोषणा कर दी है. इसके तहत 18 साल या उससे ज्यादा उम्र की सभी महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपये की मदद दी जाएगी, जिसे बाद में बढ़ाकर 2100 रुपये कर देगी. वहीं, कांग्रेस की ओर से एलान कर दिया है कि विधानसभा चुनाव के बाद अगर कांग्रेस सत्ता में आती है, तो दिल्ली की महिलाओं को हर महीने 2,500 रुपये दिए जाएंगे.
क्या है नीतीश कुमार का ब्रह्मास्त्र?
दूसरी ओर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी साल 2005 की तरह बिहार की आधी आबादी को साधने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं. आधी आबादी के लिए उन्होंने भी कई तरह की योजनाएं चला रखी हैं. इसके तहत स्कूल जाने वाली बच्चियों को साइकिल खरीदने के लिए मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना, गर्भवती महिलाओं को 3 हजार तक की वित्तीय मदद, पति की मौत या तलाकशुदा महिलाओं के 2 बच्चों के लिए 4 हजार रुपये, मुख्यमंत्री महिला उद्यमी योजना, बेटी पैदा होने पर अभिभावकों को 5 हजार रुपये की मदद की जाती है. इन सभी योजनाओं का मकसद भी आधी-आबादी का वोट हासिल करना है.
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दरअसल, साल 2020 के चुनाव में JDU की सीटें घटकर 43 हो गई थी. ऐसे में इस बार कोई चूक ना हो, इसके लिए राज्य में कई तरह की योजनाएं चलाई गई हैं. महिला सशक्तिकरण को लेकर नीतीश कुमार ने कई बड़े फैसले लिए हैं. पंचायत में 50 फीसदी का आरक्षण से लेकर नौकरियों में 35 प्रतिशत तक का आरक्षण तक का फैसला उन्होंने लिया है. इसी के साथ हाल में नीतीश कुमार राज्य की 2 करोड़ महिलाओं से संवाद कर रहे हैं. इस दौरान बिहार की 7 लाख 64 हजार 710 जीविका दीदियां महिला संवाद में नीतीश कुमार से अपना अनुभव शेयर कर रही हैं. इसके आधार पर फीडबैक लिया जाएगा और समस्याओं के हल के लिए समाधान भी निकाला जाएगा. उम्मीद यह भी जताई जा रही है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महिलाओं से संवाद के बाद कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं.
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Conclusion
गौरतलब है कि साल 2016 में जीविका दीदी की मांग पर ही बड़ा फैसला लेते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूरे राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू की थी. शराबबंदी के फैसले ने उन्हें बिहार की महिलाओं के बीच हीरो बनाया है. ऐसे में कई फैसलों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि नीतीश कुमार को सत्ता में आने के बाद शुरू से ही आधी आबादी का भरपूर सहयोग मिलता रहा है. इसके साथ ही नीतीश कुमार भी राज्य की आधी आबादी को अपने पक्ष में रखने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं. साथ ही साल 2005 से ही वह कई योजनाओं के सहारे उनको साधने की जुगत में रहते हैं.
दूसरी ओर विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तेजस्वी यादव ने बहुत बड़ा एलान करते हुए नीतीश कुमार की चिंता बढ़ा दी है. तेजस्वी यादव ने बिहार की महिलाओं से वादा किया कि सत्ता में आने के एक महीने के भीतर इस योजना को अमली जामा पहना दिया जाएगा. इससे बिहार की हर माता, बहन को स्वांलबी, सुखी, समृद्ध, सम्पन्न, स्वस्थ और उनके जीवन को सुगम बनाने का काम किया जाएगा. बिहार की महिला वोटर्स को भरोसा दिलाने में जुटे हुए हैं कि महिला सशक्तिकरण में की दिशा में एक सीधा और प्रभावशाली कदम होगा. उनका कहना है कि घर की महिला अगर सुख-समृद्ध होगी, तभी परिवार भी तरक्की करेगा और जब हर घर तरक्की करेगा तो पूरा गांव भी तरक्की करेगा. और पूरे गांव के तरक्की में बिहार कि तरक्की होगी.
ऐसे में राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि तेजस्वी यादव की इस योजना के काट के लिए नीतीश कुमार राज्य की 2 करोड़ महिलाओं से संवाद कर रहे हैं. बता दें कि बिहार में नवंबर तक विधानसभा के चुनाव हो सकते हैं और इस बीच नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव कई तरह की अन्य योजनाओं का भी एलान कर सकते हैं. ऐसे में यह चुनाव बेहद दिलचस्प हो सकते हैं और देखना यह भी होगा कि महिलाएं इस बार किसे बिहार के सत्ता की चाबी सौंपती हैं.
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